रिश्वतखोरी के साथ-साथ भ्रष्टाचार के भी अनेक रूप हैं
punjabkesari.in Saturday, Nov 04, 2017 - 01:33 AM (IST)
हमारे देश में रिवाज है कि किसी मुद्दे पर ज्यादा से ज्यादा लोगों का ध्यान आकॢषत करने के लिए सप्ताह, पखवाड़े या महीना भर चलने वाले आयोजन किए जाएं। मिसाल के तौर पर 30 अक्तूबर से 4 नवम्बर तक सतर्कता सप्ताह मनाने की घोषणा कर दी गई। इसका लक्ष्य रखा गया ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’।
आमतौर से इस तरह के आयोजनों का आरम्भ और समापन भाषणबाजी, खाने-पीने और कुछेक चुने हुए व्यक्तियों को उपहार या पुरस्कार देने से होता है, अपनी वाहवाही का ढोल पीटने का क्रम चलता रहता है। उद्देश्य होता है कि जनता का ध्यान इस तरफ न जाए कि इस ढोल में कितनी पोल है। हमारी प्रशासनिक व्यवस्था चाहे केन्द्र हो या राज्य सरकार, कुछ ऐसी है कि उसमें कहीं भी छेद किया जा सकता है। यह छेद कानून का भी हो सकता है या नौकरशाही द्वारा नियमों की अपने मन मुताबिक व्याख्या करने से भी बन सकता है। छेद दिखाई देते ही उसे भरने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। एक छोटा-सा उदाहरण है; मुम्बई में बांद्रा-कुर्ला सी लिंक बनाने की योजना का खर्च 660 करोड़ रुपए था जो इसके पूरा होने तक 1600 करोड़ हो गया और 700 करोड़ के ब्याज की देनदारी अलग से हो गई। कुछेक वर्षों में पूरे होने वाले काम में 10 साल भी लग गए। यह रकम बढ़ती कैसे है और क्यों बढ़ाई जाती है, सब जानते हैं।
रुकावट का भ्रष्टाचार: प्रशासन द्वारा कुछ योजनाएं बनाई ही इसलिए जाती हैं कि उनसे सत्ताधारी राजनीतिक दल का भला हो। मिसाल के तौर पर नोएडा में महामाया फ्लाईओवर है जो निर्माण के दौरान मायावती और मुलायम सिंह की सरकारों के बीच झूलता रहा। एक दल के नेता के कार्यकाल में शुरू की गई योजना दूसरे दल के नेता की सरकार आते ही बन्द कर दी गई और तब पूरी हुई जब जिस दल ने योजना शुरू की थी उसकी सरकार फिर से आ गई। राजनीतिक कारणों अर्थात् वोट बैंक पर आधारित सत्ताधारी या विपक्षी दल जिस तरह का भ्रष्टाचार करते हैं उनमें अयोग्य व्यक्ति को जिम्मेदारी का पद देना, अपनी ही जाति बिरादरी के लोगों को नौकरियों की रेवडिय़ां बांटना, सबसिडी के नाम पर सरकारी खजाने का दुरुपयोग करना और नौकरशाही के साथ मिलकर घोटाले करना शामिल हैं।
यह भी भ्रष्टाचार ही है कि राजनीतिक व्यक्तियों पर आपराधिक मुकद्दमों के बावजूद उन्हें चुनाव लडऩे से लेकर मंत्री बनने तक की सुविधा है। इससे ‘जनता त्रस्त और अपराधी मस्त’ रहता है। सुप्रीम कोर्ट कीयह पहल स्वागत योग्य है कि राजनीतिज्ञों के मुकद्दमों का फैसला करने के लिए विशेष अदालतों का गठन होजहां एक वर्ष की निर्धारित अवधि में उन पर लगे अपराधों का निर्णय हो जाए। अभी तो 20-25 वर्ष मुकद्दमाचलता है जिसमें आरोपी सभी तरह की सुविधाएं पाने का अधिकारी है। विकास कार्यों में रुकावट पैदा कर देना प्रशासन और नेताओं के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह है। इसे हम रुकावट का भ्रष्टाचार कह सकते हैं।
व्यावसायिक भ्रष्टाचार: इसमें वह सब शामिल है जो देश को विकास करने से रोकता है। एक हकीकत है: हमारे देश में एक से एक विद्वान, वैज्ञानिक और शोधकत्र्ता हैं। उन्होंने पढ़ाई-लिखाई और अपनी बौद्धिक क्षमता से स्वयं को सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब जब वे व्यावहारिक दुनिया में कदम रखते हैं तो उनका सामना वास्तविकता से होता है। पिछले दिनों एक सरकारी वैज्ञानिक अनुसंधान केन्द्र में 30 साल पहले बनी एक टैक्नोलॉजी पर आधारित मकान बनाने में इस्तेमाल होने के लिए ईंट बनाने की मशीन पर फिल्म बनानी थी। इस मशीन का वजन 100 किलो था। आज उससे अच्छी ईंट बनाने वाली मशीन 20 किलो वजन की आयात की जा सकती है जो यह काम करने में आसान और लागत में कम है। इसके बावजूद हम पुरानी टैक्नोलॉजी से चिपके रहने और उसे देशवासियों पर थोपने में ही लगे हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में कुछ बड़े और महंगे स्कूलों को छोड़ दीजिए, आज सरकारी क्षेत्र के सभी शिक्षा संस्थानों में पढ़ाई-लिखाई का तरीका, पाठ्यक्रम, पुस्तकें और चिकित्सा जैसे विषयों की भी शिक्षा पुराने जमाने की पद्धति और प्रणालियों से दी जाती है। यह शिक्षा का भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या है? शिक्षा के भ्रष्टाचार का ही नतीजा है कि स्टार्टअप शुरू करने वाले उद्यमी असफल सिद्ध हो रहे हैं क्योंकि जिस तरह के शिक्षित युवा उन्हें अपने उद्यम के लिए चाहिए होते हैं, वे उपलब्ध ही नहीं हैं। इसी तरह स्किल इंडिया इसलिए असफल नहीं है कि योजना में कोई कमी है बल्कि इसलिए है कि उसके अनुरूप शिक्षित व्यक्ति नहीं मिलते।
व्यापार में आसानी: विश्व बैंक द्वारा हमें काम कर सकने की सहूलियत वाले देशों की सूची में 100वें स्थान पर रखने से हम अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रहे। इस सूची में हमारे आसपास के वे देश आते हैं जो पिछड़ेपन के प्रतीक हैं, विकास की पहली मंजिल भी नहीं चढ़ पाए हैं और दुनिया में उनके नागरिकों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। इन देशों में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार चरम पर है। आज भी हमारे देश में व्यापार करना कोई खाला जी का घर नहीं है। विदेशी यहां निवेश करने से पहले सरकार से यह तय कर लेना चाहते हैं कि उन्हें अपना उद्यम शुरू करने के लिए लाल फीताशाही का सामना किस सीमा तक करना पड़ेगा। हमारा टैक्स सिस्टम है, अनेक उत्साहवर्धक और दूरगामी परिणाम दे सकने में सक्षम आर्थिक सुधारों के बावजूद अभी भी इतना पेचीदा है कि उसे समझने के लिए विशेषज्ञों की सेवाएं लेनी पड़ती हैं।
आजकल ज्यादातर टैंडर, लेन-देन तथा फार्म आदि जमा करने का काम ऑनलाइन कर दिया गया है, जबकि इंटरनैट की दौड़ में हम इतने पीछे हैं कि दस्तावेज सबमिट करने से पहले ही खिड़की बंद हो जाती है। इसके बाद पिछले दरवाजे से अपने चहेतों को काम देना पहले की तरह शुरू हो जाता है। जब तक हमारी रैंकिंग उन देशों के बराबर नहीं हो जाती जिनसे हम प्रतियोगिता करने की बात करते हैं और जो पहले 10 में आते हैं तब तक हमारे यहां व्यापार करना या अपना रोजगार करना आसान नहीं है।-पूरन चंद सरीन
