फिर सीमाओं पर सैनिक क्यों जान दें

Wednesday, Aug 22, 2018 - 04:31 AM (IST)

पंजाब सरकार के मंत्री, पूर्व क्रिकेटर और हंसोड़ कलाकार नवजोत सिद्धू की पाकिस्तान यात्रा और पाकिस्तान के सेना प्रमुख बाजवा से गले मिलने पर हंगामा मचना स्वाभाविक है। राष्ट्रवादी तो नाराज हैं ही, इसके अलावा पंजाब के कांग्रेसी भी कम नाराज नहीं हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह नाराजगी पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह तक पहुंच चुकी है। अमरेन्द्र सिंह का कहना है कि सिद्धू को पाकिस्तान सेना प्रमुख से गले नहीं मिलना चाहिए था, सीमा पर हमारे सैनिक रोज मर रहे हैं, इसे देखते हुए पाकिस्तान के सेना प्रमुख से इस तरह से गले मिलना गैर-जरूरी था। 

यह कौन नहीं जानता है कि सेना में सर्वाधिक पंजाबी हैं, सिख रैजीमैंट नाम की एक बटालियन है, जिसकी  देशभक्ति और वीरता सर्वश्रेष्ठ रही है। पंजाब के शहीद सैनिकों के कई पीड़ित परिवार भी सिद्धू के खिलाफ आगे आए हैं। निश्चित तौर पर गले लगने की इस घटना ने सेना की भावनाओं को चोट पहुंचाई है, वैसे परिवारों को दुख पहुंचाया है जिनके परिजन पाकिस्तान के सैनिकों और पाक प्रायोजित आतंकवाद से लड़ कर शहीद हुए हैं। सेना के बीच भी यह भावना बढ़ रही है कि हमारे देश के शासक और सैलीब्रिटीज अगर पाकिस्तान के साथ दोस्ती का खेल लेंगे, क्रिकेट खेलेंगे, चिकन-बिरयानी की कूटनीति करेंगे तो फिर सेना सीमा पर पाकिस्तानी सैनिकों की गोलियां खाकर देश की सुरक्षा क्यों करेगी? 

सिर्फ सिद्धू ही सेना की भावनाओं को नजरअंदाज करने का दोषी नहीं, इतिहास उठा कर देख लीजिए, कटघरे में कई और भी होंगे। सच तो यह है कि सत्ता बदलती है पर सत्ता की सोच नहीं बदलती। नरेन्द्र मोदी से लेकर मनमोहन सिंह तक कटघरे में खड़े होंगे। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ  ने मनमोहन सिंह को ‘देहाती औरत’ कहा था, जिसका अर्थ चुगलखोर औरत से है, फिर भी मनमोहन सिंह की वीरता नहीं जगी थी। सीमा पर सैनिकों के सिर काटे जा रहे थे, फिर भी मनमोहन सिंह विदेशी दौरों पर नवाज शरीफ  से गले लगना नहीं भूलते थे। मनमोहन सिंह का पतन हुआ और देश की सत्ता पर नरेन्द्र मोदी का राज कायम हुआ। फिर भी कुछ नहीं बदला। 

जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठे थे तब खूब दहाड़ते थे कि मेरे पास 56 इंच का सीना है, हम पाकिस्तान को जैसे के तैसे में ऐसा जवाब देंगे कि फिर कभी वह भारत के खिलाफ  आंख उठा कर नहीं देखेगा। यह दहाड़ हवा-हवाई साबित हुई। पाकिस्तान की कारस्तानी नहीं बदली, उसकी आतंकवादी सोच जारी रही। सीमा पर भारतीय सैनिकों की जान जाती रही। एक दिन देश को अचंभित करते हुए नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान पहुंच गए, नवाज शरीफ  से मिल आए। मोदी नवाज शरीफ  से जरूर मिल आए, उनको जरूर गले लगा लिए पर सीमा पर पाकिस्तान की कारस्तानी नहीं बदली, पाकिस्तानी सैनिकों की करतूत जारी रही।

कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पहले की तरह जारी है। कभी अटल बिहारी वाजपेयी ने भी गले लगने और पाकिस्तानी सेना को बदलने की सोच और खुशफहमी रखी थी। समझौता बस लेकर लाहौर गए थे जहां पर पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने सलामी न देकर वाजपेयी को अपमानित किया था। फिर भारत की पीठ में छुरा घोंपते हुए पाकिस्तानी सेना ने कारगिल हमला कर दिया, घुसपैठियों को हथकंडा बना कर वहां कब्जा जमा बैठी। कारगिल को मुक्त कराने में हमारे हजारों वीर सैनिकों को जान देनी पड़ी थी। 

दुनिया में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलेगा जब किसी हमलावर या फिर अपने हजारों सैनिकों के बलिदान के दोषी को गले लगाया जाए। परवेज मुशर्रफ  को गले लगाना हजारों बलिदानी सैनिकों का अपमान था पर हमारी सत्ता कारगिल के वीर और बलिदानी सैनिकों का सम्मान भूल गई। चरणवंदना के लिए परवेज मुशर्रफ  को आगरा आमंत्रित किया जाता है। वहां उनका सम्मान होता है। यह अलग बात है कि आगरा में मुशर्रफ  की दाल गली नहीं।  उस समय लाल कृष्ण अडवानी की वीरता जगी थी और परवेज मुशर्रफ को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा था। 

मणिशंकर अय्यर जैसे लोग पाकिस्तान जाकर भारतीय सेना को खलनायक और भारतीय सरकार को हिंसक बताने से नहीं चूकते हैं। देश में कई एन.जी.ओका और अन्य संगठन ऐसे हैं जो पाकिस्तान जाकर भारतीय सेना की भावनाओं को कुचलते रहे हैं। तथाकथित सैक्युलर और उदारवादी लोग भारतीय तिरंगे से नफरत करते हैं पर पाकिस्तानी झंडे के नीचे खड़े होकर फोटो खिंचवाने में गर्व महसूस करते थे। कुछ साल पहले तक भारतीय बुद्धिजीवी अमरीका जाकर भारतीय सेना और भारतीय गुप्तचर एजैंसियों को हिंसक कहना नहीं भूलते थे। पाकिस्तानी करंसी उनके सिर चढ़ कर बोलती थी। ऐसे भारतीय बुद्धिजीवियों के प्रायोजक आजकल अमरीकी जेलों में बंद हैं। अमरीका ने उनको अमरीकी कानून तोडऩे के आरोप में जेल में बंद कर रखा है। 

इस बात को कौन अस्वीकार कर सकता है कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन देश है, हम लाख कोशिश कर लें पर न तो दुश्मन देश की सोच बदलती है और न ही उसकी आतंकवादी कारस्तानी। भारत की बात छोड़ दीजिए, पूरी दुनिया पाकिस्तान को सुधारने में लगी थी जो असफल साबित हुई है। अमरीका और यूरोप ने पाकिस्तान की आतंकवादी नीति को जमींदोज करने के लिए अरबों डालर खर्च कर दिए पर परिणाम कुछ भी नहीं निकला। पाकिस्तान कहता रहा था कि ओसामा बिन लादेन उसके यहां नहीं है और न ही उसका उससे कोई लेना -देना है। अमरीका पाकिस्तान के अंदर ही ओसामा बिन लादेन को मार गिराता है। 

भारत के शासक और  सैलिब्रिटीज यह सोचते हैं कि गले मिलने और फेज थ्री टाइप के सैमीनारों के माध्यम से भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती सुनिश्चित हो जाएगी तो यह एक बड़ी खुशफहमी है। पाकिस्तान के लोकतांत्रिक शासन की कोई औकात नहीं होती है, लोकतांत्रिक शासक तो नाममात्र का शासक होता है। असली शासक तो सेना होती है। सेना ने ही नवाज शरीफ  को हरवाया है। सेना और न्यायपालिका ने चुनाव से ठीक पहले हाथ मिला लिए और नवाज शरीफ  को जेल में डाल दिया गया। सेना ने यह खेल नवाज शरीफ से मुक्ति के लिए खेला था जिन्होंने सेना को आंख दिखाने की कोशिश की थी। 

दुनिया यह जानती है कि इमरान खान की अपनी कोई औकात नहीं है, उसके पास बहुमत भी नहीं है।  सेना कठपुतली की तरह इमरान खान को नचाएगी। वह भी सेना और आतंकवादियों के विश्वास पर प्रधानमंत्री बने हुए हैं। इसलिए यह उम्मीद नहीं है कि इमरान खान आतंकवाद और हिंसा रोक देंगे। जब आतंकवाद और हिंसा नहीं रुकेगी तो फिर भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती कैसे संभव होगी? भारतीय शासकों और सैलिब्रिटीज की तरह ही भारतीय सेना भी पाकिस्तान के साथ दोस्ती का खेल खेलने लगेगी तो फिर भारत की सुरक्षा कैसे संभव हो सकती है?-विष्णु गुप्त

Pardeep

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