फिर सांसों पर भारी पड़ा ‘सैलिब्रेशन’!

punjabkesari.in Sunday, Oct 26, 2025 - 05:06 AM (IST)

दीवाली पर पटाखेबाजी फिर दिल्ली-एन.सी.आर. की सांसों पर भारी पड़ी। त्यौहारों के जरिए वोट बैंक का खेल खेलने वाले राजनीतिक दलों के आंकड़ों को नजरअंदाज कर दें, तो भी इस साल दिल्ली में दीवाली पर प्रदूषण चार साल के टॉप पर पहुंच गया। सरकार की पहल पर सर्वेाच्च न्यायालय ने इस बार दीवाली पर दो घंटे हरित पटाखे चलाने की अनुमति देकर अमल सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकारी तंत्र पर छोड़ दी थी। तय समय रात आठ से 10 बजे तक का था,पर पटाखेबाजी शाम छह बजे शुरू हो कर आधी रात के बाद तक जारी रही। 

वायु प्रदूषण में सबसे खतरनाक माना जाने वाला पी.एम. 2.5 का स्तर दिल्ली के कई इलाकों में 1700 के भी पार चला गया। दीवाली की अगली सुबह पी.एम. 2.5 का स्तर 212 प्रतिशत तक बढ़ गया। वायु प्रदूषण केंद्रों का डेटा हर पंद्रह मिनट पर अपडेट किया जाता है  लेकिन दीवाली की रात कुछ केंद्रों पर ऐसा नहीं किया गया, जिससे उठने वाले स्वाभाविक प्रश्न अनुत्तरित हैं। दिल्ली के 26 में से 23 निगरानी केंद्रों पर पटाखेबाजी का शोर भी सीमा से ज्यादा रिकॉर्ड हुआ। दरअसल प्रदूषण का रिकॉर्ड स्तर हरित पटाखे की अवधारणा और अमल पर भी सवालिया निशान लगाता है। 

नीति आयोग के पूर्व सी.ई.ओ. अमिताभ कांत की यह टिप्पणी बहुत कुछ कह देती है कि सुप्रीम कोर्ट की समझदारी ने पटाखे जलाने के अधिकार को जीने और सांस लेने के हक पर प्राथमिकता दी है। सरकारी वकील ने अपने अंदर के बच्चे की इच्छा बताते हुए दीवाली ‘सैलिब्रेशन’ के लिए सुप्रीम कोर्ट से पटाखेबाजी की अनुमति मांगी थी। बेशक सर्वोच्च न्यायालय ने सावधानीपूर्वक सशर्त अनुमति दी लेकिन उन शर्तों की खुले आम धज्जियां उड़ाई गईं। फिर भी मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को इस साल की दीवाली की रौनक, आभा, जगमगाहट अलग दिखी और ऐसे शानदार सैलिब्रेशन पर वह आत्ममुग्ध हैं। 

आश्चर्य नहीं कि मुख्य विपक्षी दल आप उनकी सरकार पर लोगों के स्वाथ्य से खिलवाड़ करने के आरोप लगा रही है। दिल्ली सरकार के मंत्री भी अलग-अलग सुरों में बोल रहे हैं। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा दिल्लीवालों को जिम्मेदारी से दीवाली मनाने का प्रमाणपत्र दे रहे हैं तो शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने दिल्ली वालों के गैर-जिम्मेदाराना रवैये को जिम्मेदार ठहराते हुए माना है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन किया जाता तो इतना प्रदूषण नहीं होता। एन.सी.आर. के अन्य शहरों के हालात भी बेहतर नहीं रहे। कहीं-कहीं तो और भी बदतर पाए गए। दीवाली पर पटाखेबाजी से वायु प्रदूषण दिल्ली-एन.सी.आर. तक ही सीमित नहीं रहा। कानपुर, लखनऊ, पटना, भोपाल, जयपुर और चंडीगढ़ तक धुंध की मोटी परत छाई रही। 

ए.क्यू.आई. आंकड़े बताते हैं कि कमोबेश पूरा उत्तर भारत ही गैस चैंबर में तबदील हो गया पर आयुष्मान भारत के नारे के बावजूद जन स्वास्थ्य की सामान्य ङ्क्षचता भी व्यवस्था के चेहरे और चाल में कहीं नजर नहीं आती। यह ज्यादा ङ्क्षचताजनक इसलिए भी है क्योंकि हर साल दिल्ली-एन.सी.आर. इन्हीं दिनों सांसों के इसी संकट से गुजरता है, जब पटाखेबाजी को ही प्रकाश पर्व दीवाली का असली ‘सैलिब्रेशन’ मानने वालों की कारगुजारियों की कीमत बच्चों और बुजुर्गों को कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों से चुकानी पड़ती है। स्कूल तो अक्सर बंद कर ही दिए जाते हैं,हर साल चिकित्सक सलाह देते हैं कि कुछ दिन के लिए दिल्ली ही छोड़ जाएं, वरना बिना मास्क घर से बाहर न निकलें। कुछ दिनों तक सैर आदि भी घर के अंदर ही करें। इस सलाह पर कितने लोग अमल कर पाते हैं? यह उनकी परिस्थितियों पर निर्भर करता है,पर इस संकट के स्थायी समाधान की सोच कहीं नजर नहीं आती। वैसे जहरीली हवा खिड़की, दरवाजों से भी घर के अंदर तक पहुंचती ही है। 

जनता की सांसों पर गहराते संकट के समाधान के लिए सरकार के पास विभिन्न चरणों में प्रतिबंधों के अलावा कोई योजना नजर नहीं आती। ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान के तहत पहले ग्रैप-वन और फिर ग्रैप-टू के प्रतिबंध दिल्ली में लागू किए जा चुके हैं। वायु प्रदूषण के साथ-साथ ये प्रतिबंध भी बढ़ते जाएंगे। नतीजतन दिल्ली और एन.सी.आर. के लोग दोहरी मार झेलने को मजबूर होंगे।

इस साल अप्रत्याशित रूप से कथित हरित पटाखे दो घंटे जलाने की अनुमति देने वाला सर्वोच्च न्यायालय पिछले साल विवेकहीनता और निष्क्रियता के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के साथ-साथ पंजाब और हरियाणा सरकारों को भी फटकार लगा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि शुद्ध हवा न मिलना प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन है, पर इस अधिकार का साल-दर-साल हनन करने के लिए जिम्मेदार लोगों को सही मायने में दंडित कौन करेगा? 

इन दिनों बढऩे वाले वायु प्रदूषण में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली का बड़ा योगदान बताया जाता है। उससे निपटने के प्रयासों के दावे भी राज्य सरकारों द्वारा किए जाते हैं, पर वांछित परिणाम नजर नहीं आते। वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए बना आयोग भी जिम्मेदारी के निर्वाह में नाकाम नजर आता है। सुप्रीम कोर्ट भी जानता है और सरकारें भी कि दिल्ली निवासियों को साल में गिने-चुने दिन ही स्वच्छ हवा नसीब होती है, वरना तो वे अस्वस्थकर हवा में ही सांस लेने को अभिशप्त हैं।-राज कुमार सिंह 
 


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