फिर एन.डी.ए. में शामिल हो सकता है अकाली दल!

punjabkesari.in Friday, Jul 08, 2022 - 06:23 AM (IST)

पिछले साल 3 कृषि कानूनों और किसान आंदोलन के मसले पर केंद्र सरकार और एन.डी.ए. से रिश्ता तोडऩे वाले शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में एन.डी.ए. की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को जिस अंदाज में समर्थन का ऐलान किया है, उससे नई चर्चा छिड़ गई है।

कहा जा रहा है कि अकाली दल की एन.डी.ए. में पुन: वापसी हो सकती है। इसकी तैयारी शुरू हो गई है। अकाली दल का विरोध सिर्फ कृषि कानूनों को लेकर था, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वापस ले चुके हैं। अकाली दल गठबंधन का शुरूआती सहयोगी रहा है। 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण अडवानी ने एन.डी.ए. बनाने का फैसला किया, उस वक्त जॉर्ज फर्नांडीज की समता पार्टी, जयललिता की अन्नाद्रमुक, बाला साहेब की शिवसेना के साथ प्रकाश सिंह बादल के अकाली दल ने इसे सबसे पहले ज्वाइन किया था। 

आजादी के बाद से ही दलगत राजनीति पर नजर डालें तो साफ हो जाता है कि वक्त आने पर कोई भी किसी को दगा दे सकता है और कोई भी किसी से विमुख होने का ऐलान कर सकता है। ऐसे में भाजपा यह मान कर चल रही है कि जिस तरह से पूर्वोत्तर के राज्यों में छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन कर उसने पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी राजनीति को मजबूत किया है, ठीक उसी तरह से एन.डी.ए. का विस्तार कर आगामी चुनाव में विपक्ष को कमजोर किया जा सकता है।

यही वजह है कि भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव को अपने पक्ष में फुल-प्रूफ करने के लिए देश की दर्जनभर से ज्यादा पार्टियों को एन.डी.ए. में लाने को तैयार है। भाजपा की यह तैयारी कितनी सफल होती है, यह देखना होगा, क्योंकि आज भले ही विपक्ष बिखरा हुआ है, लेकिन अगर उसकी एकता की गुंजाइश बन जाती है और एन.डी.ए. के कई साथी फिर से विपक्ष के पाले में चले जाते हैं तो खेल मनोरंजक होगा।

नांदेड़ साहिब गुरुद्वारा कमेटी बर्खास्त, प्रशासक नियुक्त : गुरुद्वारा तख्त श्री सचखंड हजूर साहिब नांदेड़ की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को महाराष्ट्र सरकार के एक आदेश पर बर्खास्त कर दिया गया है। साथ ही कमेटी भी भंग कर दी गई है। गुरुद्वारा बोर्ड के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह मन्हास के खिलाफ कई शिकायतें थीं। इसी को लेकर सरकार ने एक्शन लेते हुए जांच बिठा दी है। सरकार ने कमेटी की निगरानी के लिए महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक एवं सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस अधिकारी डॉ. पी.एस. पसरीचा को प्रभार सौंप दिया है। पसरीचा कमेटी के प्रशासक होंगे और उनकी देखरेख में गुरुद्वारा साहिब एवं कमेटी के जरूरी काम संचालित होंगे। 

भाजपाई बन रहे दिल्ली के बड़े सिख चेहरे  : दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष एवं शिरोमणि अकाली दल (बादल) के राष्ट्रीय नेता रहे मनजिंदर सिंह सिरसा के भाजपा में शामिल होने से शुरू हुआ सिलसिला लगातार जारी है। सिरसा के बाद 1984 सिख दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहे कुलदीप सिंह भोगल और अब गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष एवं दिल्ली से 3 बार विधायक रहे सिख नेता तरविंदर सिंह मारवाह भाजपाई हो गए हैं। मारवाह दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य भी हैं। साथ ही सिख राजनीति में ठीक-ठाक दखल भी रखते हैं। उनका अचानक से भारतीय जनता पार्टी में शामिल होना सिख सियासत में चर्चा का विषय बन गया है। 

टोकरी लेकर संगतों के बीच जाएगा नया अकाली दल : सुखबीर सिंह बादल की पार्टी छोड़ दिल्ली में नई पार्टी शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली-स्टेट) बनाने वाले डी.एस.जी.एम.सी. के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका एवं उनके सहयोगी टोकरी लेकर संगतों के बीच पार्टी का विस्तार करने जाएंगे। बाद में इसी टोकरी में वोट भी मांगेंगे। टोकरी उनकी पार्टी का नया चुनाव चिन्ह है। अभी तक बादल की बाल्टी में वोट मांगते थे। टोकरी चुनाव चिन्ह की औपचारिक लांङ्क्षचग 16 जुलाई को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में की जानी है। इस मौके पर बड़े-बड़े दिग्गज नेता शामिल हो सकते हैं। पार्टी का क्या स्वरूप होगा, इसका खुलासा भी इसी जलसे में किया जाएगा। 

उपराष्ट्रपति के पद पर सिख चेहरे को मिले मौका : राष्ट्रपति पद के चुनाव में आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को एन.डी.ए. द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद अब उपराष्ट्रपति पद पर किसी सिख चेहरे को प्रत्याशी बनाने की मांग सिख हलकों एवं संगठनों में उठने लगी है। सिख संगठनों का कहना है कि उपराष्ट्रपति पद सम्मानित पद है, इसलिए यह किसी सिख विद्वान को दिया जाना चाहिए। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष एवं शिअद के महासचिव हरविंदर सिंह सरना ने विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि उपराष्ट्रपति पद के लिए किसी सिख समुदाय के चेहरे को मौका दिया जाना चाहिए। अब तक कभी कोई सिख उपराष्ट्रपति नहीं बना। अगर ऐसा होता है तो यह सिखों के लिए गर्व की बात होगी।-दिल्ली की सिख सियासत सुनील पांडेय
 


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