अभी तक 2020 के घाव नहीं भरे हैं

Wednesday, Apr 14, 2021 - 03:27 AM (IST)

भारत आज दो प्रकार के दौरों से गुजर रहा है। यह चुनावी आवेश और कोरोना महामारी के दूसरे दौर के बीच फंसा हुआ है। हमारे नेतागण चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं जहां पर विधानसभा चुनाव हो रहे हैं तो कोरोना महामारी देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में तेजी से फैल रही है। कोरोना के कारण अब तक अनगिनत मौतें हो चुकी हैं और यह आंकड़ा उतार-चढ़ाव वाला है तथा कोरोना से ठीक होने की दर भी 90 प्रतिशत से कम हो गई है। फिर भी लोग कोरोना के मानदंडों और विनियमों का उल्लंघन करने से बाज नहीं आ रहे हैं हालांकि देश में टीका उत्सव चल रहा है। 

महाराष्ट्र, पंजाब और छत्तीसगढ़ में कोरोना के सबसे अधिक नए मामले मिले हैं। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में भी प्रतिदिन कोरोना के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है और इससे सरकार चिंतित है। इन राज्यों में कोरोना के कुल 83$.02 प्रतिशत नए मामले सामने आए हैं। तीन राज्यों में स्थिति बहुत गंभीर है। इन तीन राज्यों में से महाराष्ट्र में कोरोना के सर्वाधिक मामले सामने आए हैं। राज्य के तीन जिलों में कोरोना के सर्वाधिक रोगी भर्ती हैं। तीन अन्य जिलों में ऑक्सीजन की आपूर्ति पर्याप्त नहीं है। 

दो जिलों में वैंटीलेटर ठीक से काम नहीं कर रहे हैं और कुछ जिले गंभीर रोगियों की देखभाल के लिए पड़ोसी जिलों पर निर्भर हैं। कुछ स्थानों पर एक बिस्तर पर दो-दो रोगी हैं और सात जिलों में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है पंजाब में दो जिलों में कोरोना के विशेष अस्पताल नहीं हैं। तीन जिलों में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है और एक जिले में आर.टी.सी.आर. परीक्षण प्रयोगशाला नहीं है। छत्तीसगढ़ में तीन जिलों में आर.टी.पी.सी.आर परीक्षण की व्यवस्था नहीं है। चार जिलों में अस्पतालों में कोरोना के सर्वाधिक रोगी भर्ती हुए हैं। 

राज्य की राजधानी रायपुर में आक्सीजन की आपूर्ति सीमित है। तीन जिलों में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है। गुजरात और उत्तर प्रदेश में कोरोना रोगियों का परीक्षण एक बड़ी समस्या है। पटना में सरकारी अस्पताल ने एक कोरोना रोगी को मृत घोषित कर एक बड़ी गलती है और उसके रिश्तेदारों को दूसरे व्यक्ति का शव थमा दिया। यही नहीं कोरोना की दूसरी लहर के कारण मुंबई, दिल्ली और पंजाब से प्रवासी श्रमिकों ने पलायन शुरू कर दिया है जिससे इन राज्यों में श्रमिकों की कमी हो गई है जिससे अर्थव्यवस्था पुन: प्रभावित हो सकती है। 

कोरोना वैक्सीन के बारे में लचीली नीति के बावजूद अस्पताल शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें सीमित मात्रा में वैक्सीन दी जा रही है जबकि उनकी क्षमता एक हजार वैक्सीन प्रतिदिन लगाने की है। कुछ लोग वैक्सीन लगाने से डर रहे हैं तो कुछ लोग उसके बारे में अधिक जानकारी मांग रहे हैं। कुछ लोग वैक्सीन लगाकर स्वयं को भगवान के भरोसे छोड़ रहे हैं। यही नहीं देशभर में डॉक्टर कोरोना के म्यूटेंट के बारे में चिंतित हैं कि यह देश में ही पैदा हुआ या ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका या ब्राजील से आया है। तथापि कुछ भी हो कोरोना रोगियों की संख्या पहली लहर की तुलना में तीन गुना तेजी से बढ़ रही है और इससे चिकित्सा सुविधाआें पर भारी दबाव पड़ रहा है। 

लगता है हमने अपनी क्षमता पर अधिक विश्वास कर लिया है और वायरस के प्रकोप को नजरंदाज किया है। वर्तमान में लोगों का दृष्टिकोण सामान्य हो गया है। वे कोरोना महामारी के मानदंडों का पालन नहीं कर रहे हैं। आप देख ही रहे होंगे कि किस तरह हमारे बिना मास्क पहने नेताआें ने सारे मानदंडों को ताक पर रख दिया है तथा चुनाव प्रचार कर रहे हैं और भारी चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं जहां पर मतदाता बिना मास्क पहने कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो रहे हैं और कोरोना मानदंडों का पालन नहीं कर रहे हैं। 

हम यह भी कह सकते हैं कि कोरोना प्रकोप के लंबे चलने के कारण लोग उदासीन हो गए हैं और वे जाने-अनजाने मास्क हटा रहे हैं, सोशल डिस्टैंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं और पार्टी कर रहे हैं और वे यह भी मान रहे हैं कि उन्हें वैक्सीन की पहली खुराक मिल गई है। हालांकि इसका संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है और हम लोगों को ध्यान दिला रहा है कि अभी कोरोना समाप्त नहीं हुआ है। हमारे स्वास्थ्य तंत्र की कमजोरी ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। नीति आयोग के सदस्य डा. पॉल के अनुसार हम बुरे से और बुरे दौर की आेर बढ़ रहे हैं। जब कोरोना के मामलों की संख्या घट रही थीे तो किसी भी राज्य को लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए थी किंतु महामारी समाप्त नहीं हुई थी। हमने सावधानी नहीं बरती और इसलिए हम इस महामारी के फैलने की शृंखला को नहीं ताड़ पाए। 

आज पूरा देश गंभीर स्थिति का सामना कर रहा है और इस बात का खतरा बढ़ गया है कि हर आदमी इससे संक्रमित हो सकता है जिससे इसके म्यूटेंट होने के आसार बढ़ गए हैं। प्रश्न उठता है कि क्या एक साल में हम लोगों ने कोई सबक नहीं सीखा है। क्या हम फिर से लॉकडाऊन की आेर बढ़ रहे हैं? क्या भारत कोरोना के दूसरे दौर का सामना करने के लिए तैयार है? इसके आॢथक प्रभाव क्या पड़ेंगे? हमारे नेतागणों ने कोरोना महामारी का राजनीतिकरण किया है। राज्यों और निजी अस्पतालों को सीधे वैक्सीन प्राप्त करने की तथा टीकाकरण रणनीति बनाने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि वे स्थानीय स्तर पर कोरोना संक्रमण तथा विभिन्न समूहों में टीकाकरण के प्रति अज्ञानता और हिचक को दूर कर सके। 

उत्तराखंड में चल रहा महाकुंभ इस बात का उदाहरण है कि किस तरह आस्था की राजनीति ने विज्ञान को नजरंदाज कर दिया है। इसी तरह पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसानों के आंदोलन से आम आदमी में कोरोना फैलने की आशंका बढ़ गई है। हमें साहस करके एक तार्किक दृष्टिकोण अपनाना होगा और उसी के आधार पर कदम उठाने होंगे अन्यथा कोरोना महामारी वर्ष 2020 के सामाजिक और आॢथक नुक्सान की पुनरावृति करेगी। अभी तक 2020 के घाव नहीं भरे हैं। आपका क्या सोचना है?-पूनम आई. कौशिश
 

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