किसानों की जीत व पंजाब की अस्पष्ट राजनीतिक स्थिति

punjabkesari.in Thursday, Nov 25, 2021 - 03:58 AM (IST)

19 नवम्बर 2021 देश के इतिहास में एक ऐतिहासिक दिन के तौर पर अंकित हो गया है, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टी.वी. पर तीन कृषि  कानूनों को रद्द करने की घोषणा की। देश के सभी किसान तथा मेहनतकश भाईचारा एक वर्ष से जारी किसान आंदोलन की इस यादगारी विजय के लिए बधाई का पात्र है जिसने ‘अनहोनी’ कहे जाने वाले मिथक को ‘हकीकत’ में बदल दिया। इस विजय की अंतर्राष्ट्रीय महत्ता भी है जिसने विश्व स्तरीय कार्पोरेट घरानों द्वारा 1990 से शुरू की गई नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के सुधार के अंतर्गत बने इन तीन काले कानूनों को रद्द करवा कर एक नए युग की शुरूआत का श्रीगणेश किया है। 

मोदी सरकार ने कोरोना महामारी के दौर में कृषि से संबंधित ये तीन कानून गैर-संवैधानिक प्रक्रिया तथा बिना गंभीर चर्चा के पास कर दिए जिसे पंजाब के किसानों ने इन कानूनों  की पृष्ठभूमि में उनकी तबाही की लिखी जा रही इबारत को समझ लिया तथा आंदोलन का रास्ता पकड़ लिया। इस संघर्ष को देश भर के मजदूरों, कर्मचारियों, दुकानदारों, बुद्धिजीवियों तथा कलाकारों ने भरपूर सहयोग दिया और धीरे-धीरे यह संघर्ष हरियाणा, पश्चिमी यू.पी. से होता हुआ देशव्यापी संघर्ष का रूप धारण कर गया। इस संघर्ष की विजय का देश की समस्त राजनीति, विशेषकर पंजाब, हरियाणा तथा यू.पी. के आ रहे असैंबली चुनावों पर गहरा प्रभाव पडऩा स्वाभाविक है। 

पंजाब की राजनीतिक स्थिति अभी काफी अस्पष्ट तथा पेचीदा बनी हुई है। किसान आंदोलन ने राज्य में भाजपा का जनाधार, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े स्तर पर सिकोड़ दिया है। कांग्रेस पार्टी ने राज्य का मुख्यमंत्री तथा पार्टी प्रधान बदल कर नई छवि बनाने का प्रयास किया है। चूंकि कांग्रेस सरकार की पिछले साढ़े 4 वर्ष की कारगुजारी तथा आॢथक नीतियां मोदी सरकार तथा इससे पहले मनमोहन सिंह की केंद्रीय सरकार वाली ही रही है इसलिए चन्नी सरकार पुरानी नीतियों, मंत्रिमंडल के गठन तथा बेलगाम अफसरशाही के होते कोई ऐसा निर्णायक जनहितैषी कदम उठाने में असमर्थ है जो पंजाब के बहुसंख्यक लोगों का विश्वास प्राप्त कर सके। 

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की बचकाना तथा अराजकतावादी कार्रवाइयां कांग्रेस सरकार की स्थिति को और भी हास्यास्पद बना रही हैं। अकाली-भाजपा सरकारों की पिछली जनविरोधी आॢथक नीतियां, भ्रष्टाचार के नए कीॢतमान स्थापित करने के कड़वे अनुभवों तथा नशा तस्करों व भू-माफिया की असामाजिक कार्रवाइयों के बिना अकाली दल द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा, संघीय ढांचे तथा राज्यों के लिए अधिक अधिकारों हेतु संघर्ष तथा पंजाब के सामूहिक हितों के हक में उसूली पैंतरे जैसे मुद्दों से पूर्ण रूप में की गई किनाराकशी के कारण अभी तक सामान्य लोगों ने इस पार्टी को जनविरोधी किरदार से बरी नहीं किया है।

बसपा के साथ इसका गठजोड़ वोटें हासिल करने के पक्ष से अधिक सहायक सिद्ध नहीं होने वाला क्योंकि केवल जाति आधारित सत्ता प्राप्ति का बसपा का नारा कांग्रेस पार्टी ने चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर छीन लिया है। ‘आप’ के लिए सभी उसूल, घोषणाएं तथा वायदे केवल पंजाब के राजपाट को काबिज होने तक ही सीमित हैं। किसी जनहितैषी सिद्धांत से पूरी तरह से वंचित ‘आप’ के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त रिटायर्ड अफसरशाह, धन कुबेर तथा दूसरी पार्टियों से दल-बदली करके आए मौकापरस्त ‘आम आदमी’ सामाजिक धरातल पर जन साधारण का अधिक समर्थन नहीं जुटा सकते। 

दिल्ली में मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा लोगों की गाढ़े पसीने की कमाई को टी.वी. तथा अखबारों में अपने महंगे प्रचार तथा निर्दयतापूर्वक किए खर्च से यह पता चलता है कि यह सब ‘आप’ की बजाय भाजपा की रणनीति को अधिक फिट बैठता है। इन सभी दलों का मजदूरों, देहाती मजदूरों, किसानों, मुलाजिमों तथा सामान्य लोगों की मुश्किलें हल करने या इस उद्देश्य के लिए कोई गंभीर तथा ठोस संघर्ष करने का कोई प्रभावशाली रिकार्ड नहीं है। केवल नेताओं के इर्द-गिर्द की मंडली द्वारा अखबारी प्रचार के लिए ‘फोटो खिंचाऊ’ एक्शन ही इनकी पूंजी है। 

उपरोक्त पारम्परिक पाॢटयों द्वारा किसान आंदोलन को समर्थन के ऐलान केवल वोटें हासिल करने का ही साधन मात्र है क्योंकि जिन कार्पोरेट घरानों के हितों के लिए ये कानून बनाए गए थे उन्हीं कार्पोरेटों से ही ये सभी दल भारी वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं। इन राजनेताओं की ‘मुंह खाए और आंख शर्माए’ वाली स्थिति है। 

किसान आंदोलन देश का सुनहरी भविष्य बनाने वाले उस संघर्ष के लिए एक कारगर साधन सिद्ध हो सकता है जिसके लिए वामपंथी दशकों से संघर्षशील हैं। कार्पोरेट घरानों तथा साम्प्रदायिक मोदी सरकार के विरुद्ध लोगों के मनों में जो राजनीतिक चेतना का उजाला ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने पैदा किया है, वास्तव में पारम्परिक राजनीतिक दल उससे अत्यंत भयभीत हैं क्योंकि ये सभी साम्राज्यवादी नव उदारवादी आॢथक नीतियों तथा कार्पोरेट घरानों के पूर्ण समर्थक हैं। जो भी राजनीतिक दल आज के समय में कार्पोरेट घरानों तथा नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के हक में उतरेगा वह पंजाब के सूझवान लोगों की हमदर्दी का पात्र नहीं बन सकेगा क्योंकि असल में देश तथा पंजाब के सभी दुखों की जड़ ये आर्थिक नीतियां तथा कार्पोरेट घरानों के असीम मुनाफे ही हैं। 

यही कारण है कि सभी प्रयासों के बावजूद पंजाब के अधिकांश लोग सत्ता की दौड़ में अंधे होकर चुनाव प्रचार में जुटी पारम्परिक राजनीतिक पार्टियों से छुटकारा चाहते हैं। विजेता संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं की भी यह जिम्मेदारी है कि वे लोगों की इस अपेक्षा की पूॢत के लिए अपना योगदान डालें।-मंगत राम पासला


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News