सृष्टि के दो वाहक, मनुष्य और पशु
punjabkesari.in Saturday, Oct 04, 2025 - 05:22 AM (IST)

विश्व पशु दिवस के 100 साल पूरे हो गए हैं। 4 अक्तूबर को इसका आयोजन किए जाने की परंपरा एक जर्मन पशु प्रेमी हाइनरिच जिम्मरमन ने की, जिनका विशेष लगाव कुत्तों से था। धीरे-धीरे इसका स्वरूप विश्वव्यापी हो गया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे मान्यता मिलती गई।
दोस्ती बनाम दुश्मनी : जानवरों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने की प्रक्रिया अनादि काल से रही है, एक सहयोगी के तौर पर इनकी पहचान है। फिर भी मनुष्य अधिकतर इनकी प्रकृति न समझने के कारण इन्हें अपना शत्रु मानने की गलती कर देते हैं जबकि ये मित्र और पूरक दोनों हैं। लगभग 100 देशों में यह दिवस मनाया जाता है और इनके लिए आवास, भोजन, सुरक्षित स्थान और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। एक अंग्रेज फौजी ग्रांट ने भारत में कुत्तों और बैलों जैसे पशुओं के प्रति व्यवहार को देखकर सन् 1861 में कोलकाता में एस.पी.सी.ए. का गठन किया था। पूरे देश में आज भी इसके कार्यों की सराहना की जाती है। रुक्मिणी देवी अरुंदले और मेनका गांधी के प्रयास इस दिशा में सराहनीय हैं। जो देश वन्य जीवों की बहुतायत के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने इन्हें अपनी आजीविका का साधन बना लिया है। जंगल सफारी का चलन सभी देशों में है। सामान्य व्यक्ति जब जंगल में जानवरों के बीच जाता है तो एक ओर उसका डर खत्म होता है और दूसरी ओर इनके बारे में उसकी जिज्ञासा शांत होती है तथा इनकी दिनचर्या समझ आती है।
दक्षिण अफ्रीका में ऐसे ही टूर पर देखे कुछेक दृश्य स्मृति में हैं। वनराज शेर अपनी मस्त अदाओं से सड़क के दोनों ओर रुकी गाडिय़ों के बीच से ऐसे गुजर रहे थे जैसे कोई अधिपति राजा महाराजा जाता है। उसके बाद वे झाडिय़ों से होकर अपने परिवार के साथ मस्ती करते दिखे। यहां ध्यान रखने की बात यह है कि अगर उनके साथ छेड़छाड़ हुई तो यह निश्चित रूप से घातक होगा। उदाहरण के लिए उत्तराखंड के जंगलों में एक शेरनी अपने शिकार का पीछा कर रही थी। वहां एक किसान अपने खेतों में था। उसने कुछ ऐसी आवाजें निकालीं कि शेरनी का ध्यान भटका और उसने पहले उस पर हमला किया और उसके बाद शिकार को मारा। उसके बाद हुआ यह कि यह शेरनी नरभक्षी घोषित हुई क्योंकि उसके मुंह इंसान के खून का स्वाद लग चुका था। इसी तरह जंगल में हाथी विचरते हैं।
एक बार इसी तरह ट्रैफिक के बीच से एक पूरा हाथी परिवार गुजर रहा था। अनुशासन और परिवार की जिम्मेदारी इनसे सीखी जा सकती है। सबसे बड़ा हाथी सड़क के किनारे खड़ा हो गया। उसके बाद एक-एक करके बाकी सदस्यों ने सड़क पार की। उसके बाद यह गया। वहां इसने देखा कि उसके परिवार का बुजुर्ग हाथी तो उस पार रह गया। इसने इंतजार किया और जब उसने भी सड़क पार कर ली तो यह आगे बढ़ा।
पशु संरक्षण : पशुओं का संरक्षण क्यों आवशयक है, इसके लिए इतना ही जान लेना काफी है कि हमारा जो ईकोसिस्टम है, पर्यावरण है और जल जंगल जमीन है, वह पशुओं के सहयोग के बिना संरक्षित नहीं हो सकता। मानव कल्याण की जिम्मेदारी में इनकी भागीदारी है और इनके साथ मिलकर काम करना ही समझदारी है। इनसे भयभीत होकर, इन्हें मारकर और इनके रहने की प्राकृतिक जगहों को उजाड़कर अर्थात इन्हें विस्थापित कर यह समझ लेना कि इनसे मुक्ति पा ली है तो यह एक ऐसी गलतफहमी है जिसका परिणाम बहुत भयंकर हो सकता है। यह बात कौन नहीं जानता कि शेर या टाइगर पर्यावरणीय संतुलन या ईकोसिस्टम बनाए रखने में कितने महत्वपूर्ण हैं। शाकाहारी जानवरों की संख्या न बढऩे देने में इनका योगदान और मांसाहारी पशुओं को नियंत्रण में रखना बहुत जरूरी है। 2024 में एक मुहिम चली थी कि यह दुनिया जानवरों का भी घर है,उनके बिना मनुष्य का जीवन सुरक्षित नहीं रह सकता। उदाहरण के लिए स्ट्रीट डॉग को लेकर अक्सर हंगामा होता रहता है। वे हमला न करें, यह समझना और उनके पुनर्वास की व्यवस्था करना हमारा काम है।
पशुओं से हमें बीमारियों की रोकथाम करने में बहुत मदद मिलती है, इनके शरीर में ऐसे तत्व होते हैं जिनकी पुष्टि वैज्ञानिकों द्वारा किए जाने पर अनेक जीवनरक्षक दवाओं का निर्माण होता है इसलिए जिस प्रकार हम अपने घर को सुरक्षित रखने के लिए उपाय करते हैं, उसी प्रकार जानवरों के रहने के लिए भी उनकी जरूरत के अनुसार सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। उन्हें उजाडऩे का अर्थ यह है कि मनुष्य के साथ उनका संसर्ग और संपर्क न रहने से अनेक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। जल और जमीन की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। शुद्ध हवा मिलने में परेशानी होती है और वन विनाश इसका प्रमुख कारण माना जाता है। इसके अलावा अर्थव्यवस्था या यूं कहें कि प्रतिदिन की आमदनी और गुजारे के लिए जरूरी रकम जुटाने में गतिरोध का सामना करना पड़ता है।
यह रिश्ता अटूट है : अब प्रश्न उठता है कि जानवरों से इंसान का नाता इतना गहरा है तो उनके संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता को नकारना घातक है। सबसे पहले उनके रहने के स्थानों को कब्जाने से बचाना होगा। उनके अंगों के अनैतिक व्यापार और गैर-कानूनी तस्करी को उसी प्रकार रोकना होगा जिस प्रकार चंदन वनों और अन्य औषधीय गुणों वाली जड़ी बूटियों को रोका जाता है। यह बात समझनी चाहिए कि प्रत्येक जानवर का कोई न कोई हिस्सा इंसान के काम आता है चाहे उससे दवा बन, शृृंगार की वस्तु बनाई जाए या फिर सजावट के लिए इस्तेमाल की जाए। पशु कॉरिडोर बनाने की प्रक्रिया अनेक देशों में बन रही है, भारत में भी इसकी स्थापना की जानी चाहिए। हर जानवर का इंसान के लिए उपयोगी होना यही सिद्ध करता है कि दोनों एक-दूसरे के पूरक तो हो सकते हैं, दुश्मन नहीं, इसलिए इस विश्व पशु दिवस पर उनके प्रति अपना नजरिया बदलना ही पर्याप्त है।-पूरन चंद सरीन