आर्थिक बीमारियों का इलाज केवल शासकों के हाथों में नहीं
punjabkesari.in Friday, Oct 28, 2022 - 04:31 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों के चहेते हैं और इसलिए उन्हें अगला लोकसभा चुनाव आसानी से जीतना चाहिए। मेरे जैसे लेखक और भारतीय नागरिक 2024 से 2029 तक के पांच वर्षों में उनसे क्या उम्मीद करेंगे ताकि आम आदमी का जीवन और अधिक सहने योग्य हो जाए? बेशक आवश्यक चीजों की कीमतें बढ़ी हैं और देश में नौकरियों की कमी है लेकिन कभी-कभी आॢथक बीमारियों का इलाज केवल शासकों के हाथों में नहीं होता है।
तो आइए बात करते हैं कि केवल मोदी के पास क्या करने की शक्ति है। न्याय प्रदान करना और यह सुनिश्चित करना कि कानून का शासन प्रत्येक नागरिक के लिए समान रूप से लागू हो। यही शासकों की जिम्मेदारी है। गुजरात में 2002 के मुसलमानों के नरसंहार के दौरान किए गए सबसे जघन्य अपराधों में से एक के लिए उम्र कैद की सजा पाए दोषियों की हाल की समय पूर्व रिहाई से इस मोर्चे पर शासन की विफलता पर कोई भी बदतर टिप्पणी नहीं है।
मोदी ने अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से मुसलमानों के लिए जोर से घोषणा की थी कि वह ‘सबका साथ, सबका विकास’ चाहते हैं। उन्होंने इस वाक्य को दिन-रात दोहराया। उन्होंने इसमें खुद ही ‘सबका विश्वास’ जोड़ा। जाहिर है कि उन्होंने महसूस किया था कि उन पर भरोसा फिसल रहा है और इसलिए उन्होंने अच्छे उपाय के लिए ‘विश्वास’ शब्द को जोड़ा। इसी तरह उन्होंने जोर से घोषणा की थी कि महिलाएं हमारे अस्तित्व का गौरव और आनंद हैं तथा महिलाएं हमारे दैनिक मामलों के संचालन में सर्वोच्च सम्मान की पात्र हैं।
काश देश के इन दोनों वायदों में, जिसका अर्थ प्रत्येक नागरिक के लिए होता है, मोदी विफल हो गए हैं। उन 11 अपराधियों जिन्हें बिलकिस बानो और उसके परिवारों की 3 अन्य महिलाओं के बलात्कार और अन्य महिलाओं तथा बच्चों की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था, ने गुजरात सरकार के समक्ष पैरोल पर 1000 से अधिक दिन बिताए थे। गृह मंत्रालय ने भारत सरकार द्वारा समर्थित उनके बाकी वाक्यों को माफ करने और उन्हें मुक्त करने का फैसला किया गया।
रिहाई का समर्थन करने से पूर्व गृह मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा दिमाग का कोई प्रयोग नहीं किया गया था। 11 दोषी थे और प्रत्येक दोषी के मामले पर अलग से विचार किया जाना चाहिए था। यह तर्क दिया जाना चाहिए था कि ऐसा नहीं किया गया था। सभी 11 दोषियों की रिहाई के लिए राज्य और केंद्र सरकार के बीच एक समझ थी कि महिलाओं और बच्चों की हत्या के लिए बदमाशों को सम्मानित किया जाएगा क्योंकि ये महिलाएं और बच्चे किसी अन्य समुदाय के थे। सबका विश्वास और हमारी संस्कृति में महिलाओं के विशेष स्थान के सभी विचार त्याग दिए गए।
आम आदमी की नजरों में अपनी छवि को लेकर प्रधानमंत्री बहुत सचेत हैं। वह हमेशा ही बेदाग कपड़े पहनते हैं और खुद को दुर्लभ गरिमा और अनुग्रह के साथ रखते हैं। उनकी बयानबाजी को श्रोताओं को बोले गए शब्द की शक्ति से दूर ले जाने के लिए बनाया गया है लेकिन अपने पक्ष में इन सभी सकरात्मकाओं के बावजूद मोदी को इतिहास के सबक को कभी नहीं भूलना चाहिए। जैसा कि शेक्सपीयर ने अपने नाटक ‘जूलियस सीजर’ में कहा है कि ‘‘पुरुष जो बुरा करते हैं वह उनके पीछे रहता है, अच्छाई अक्सर उनकी हड्डियों से जुड़ी होती है।’’
सोशल मीडिया के इन दिनों में कल्पना और हर बुरे काम को एक विपरीत दिशा देना संभव नहीं। यदि किसी एक दिशा का जानबूझ कर गलत कार्य करने के लिए उसका प्रयोग किया जाता है तो नेता की विश्वसनीयता जल्द ही टूट जाती है। चतुर लोगों की नजर में ऐसे षड्यंत्र जल्द ही सामने आ जाते हैं। सच्चाई तो यह है कि आप सभी लोगों को हर समय मूर्ख नहीं बना सकते।मोदी ने बहुत से अच्छे और सकारात्मक कार्य किए हैं जो निश्चित तौर पर प्रशंसा के पात्र हैं। उन्होंने दिल्ली में ईसाई चर्चों पर हमलों को रोक कर अच्छी शुरूआत की। केंद्र में सरकार की बागडोर संभालने के बाद के महीनों में यह हमले निरंतर हो रहे थे।
गरीबों और जरूरतमंदों के बैंक खातों में सरकारी धन का सीधा हस्तांतरण भ्रष्टाचार के खिलाफ एक शानदार पहल थी। गांवों में गरीबों के घरों का निर्माण या नवीनीकरण दूसरी बात थी। संयोग से इसने उन्हें अपनी पार्टी के लिए समर्थक भी दिलाए जिसमें तब तक केवल अगड़ी जातियां ही थीं।
ऐसे कई नवाचार हैं जिनका मैं समर्थन नहीं करता। उदाहरण के लिए अदालती प्रक्रियाओं को बिना मुकद्दमे के लम्बे समय तक जेल में बदलना। निर्दोषों को दोषियों के साथ वर्षों तक बंद कर दिया जाता है। उन मुकद्दमों का इंतजार किया जाता है जो कभी शुरू ही नहीं होते। ऐसा न्याय व्यक्ति की न्याय की भावना को भंग करता है। ठीक उसी तरह जब सामूहिक हत्या और बलात्कार के दोषियों के साथ वीरों जैसा व्यवहार किया जाता है तो न्याय की भावना कम हो जाती है।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)