कौमार्य परीक्षा की परंपरा ‘कुकड़ी’ आज भी प्रचलित

punjabkesari.in Saturday, Dec 09, 2023 - 04:49 AM (IST)

भारत में यूं तो कुप्रथाएं धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं, लेकिन कुछ आज भी समाज के किसी वर्ग में सांसें ले रही हैं। अफसोस की बात तो यह है कि 21वीं सदी में भी यह प्रथाएं जीवित हैं और औरतों की मौत का सबब बन रही हैं। राजस्थान के सांसी समुदाय में कौमार्य परीक्षा की परंपरा कुकड़ी आज भी प्रचलित है, जो दुल्हनों के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। 

अफसोस यह दर्द सांसी समुदाय की बेटियों को 21वीं सदी में भी यह सब कुछ सहना पड़ रहा है। सांसी जनजाति राजस्थान की खानाबदोश अनुसूचित जाति की सूची में आती है। इस समाज में महिलाओं को उनके पति के परिवार में तभी स्वीकारा जाता है, जब वे अपने कुंवारेपन का सबूत प्रस्तुत करती हैं। शादी की पहली रात खून के धब्बे से सना कपड़ा उनके जीवन की दिशा तय करता है। जांच में फेल होने का एक व्यापक सामाजिक प्रभाव पड़ता है, जिसमें कलंक, लज्जा, घरेलू हिंसा शामिल होती है, जो उनके जीवन को नरक बना देती है। इस समुदाय में तलाक या दूसरी शादी की कोई संभावना नहीं होती। हालांकि हाइमन टूटने की वजह केवल सैक्स नहीं है, लेकिन फिर भी महिलाओं को गलत तरीके से गुनहगार ठहराया जाता है। मशहूर लेखक विजय एंड शंकर की किताब शैडो बॉक्सिंग विद द गॉड्स में भी हमारे समाज की ऐसी बहुत सारी बुराइयों का जिक्र है। 

असल में यह प्रथा 100 साल से ज्यादा पुरानी है। इसकी शुरूआत तब हुई, जब विदेशी भारत आए। विदेशी भारतीय औरतों के साथ ज्यादती करके उन्हें फैंक जाते थे। कहते हैं कि राजपूत दुल्हन के कौमार्य परीक्षण के लिए धागे का इस्तेमाल करते थे। वे यह जानने की कोशिश करते थे कि दुल्हन के साथ कहीं कोई ज्यादती तो नहीं हुई है। अब तो इस कुप्रथा के चलते समुदाय के लोग यह कामना करते हैं कि उनकी होने वाली बहू कुंवारी न हो, ताकि वो उसके ससुराल वालों से जमकर जुर्माने के नाम पर भारी रकम लूट सकें। राजस्थान के अलावा कुछ और प्रांतों में भी यह कुप्रथा आज भी फल-फूल रही है। महाराष्ट्र में एक समाज है कंजरभाट और गुजरात में छारा समाज, जहां इस तरह की प्रथा का चलन आज भी देखने को मिलता है। यह समुदाय प्रमुखता से राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा में रहता है। 

इस घिनौनी परंपरा में शादी की रात बिस्तर पर सफेद चादर बिछाई जाती है। उसके पास ही धागे का एक गुच्छा रखा जाता है, जिसे कुकड़ी कहते हैं। कमरे को तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कोई नुकीला सामान अंदर न हो। दुल्हन की तलाशी ली जाती है। उसकी चूडिय़ों को उतरवा लिया जाता है, बालों से पिन निकाल ली जाती है, ताकि सफेद चादर पर किसी और खून के धब्बे की गुंजाइश न हो। टूटी हुई हाइमन से निकलने वाला रक्त उनकी शुद्धता की कसौटी है। इसी से तय होता है कि दुल्हन कुंवारी है या नहीं। यदि दुल्हन कसौटी पर खरी उतरती है, तो दूल्हा कमरे से बाहर मेरा माल खरा-खरा-खरा कहकर चिल्लाता हुआ बाहर आता है। धब्बे नहीं हैं तो मेरा माल खोटा-खोटा-खोटा कहता चिल्लाता हुआ बाहर आता है। 

चादर पर खून के धब्बे मिलने के साथ ही शादी की प्रक्रिया को सम्पन्न मान लिया जाता है। अगर चादर पर खून के धब्बे नजर न आएं, तो नवविवाहिता को बुरी तरह प्रताडि़त किया जाता है। ससुर-जेठ सबके सामने महिला के कपड़े उतारकर उसे पीटा जाता है, घर के पुरुष उससे ज्यादती करते हैं। उसके प्राइवेट पार्ट्स में मिर्ची डाली जाती है। विरोध करने पर उसे डराया, धमकाया जाता है। लड़की के कई बार कुंवारी होने के बाद भी उसे चरित्रहीन ठहरा दिया जाता है। ससुराल वाले लड़की से उस लड़के का नाम उगलवाने की कोशिश करते हैं, जिससे उसने संबंध बनाए थे। शारीरिक संबंध न होने के बाद भी मार से बेहाल उस लड़की को उस लड़के का झूठा नाम बताना पड़ता है। कई लड़कियां तो यह प्रताडऩा सह नहीं पातीं। अन्य कोई विकल्प न होने पर आत्महत्या तक कर लेती हैं। इस घोर बेइज्जती के बाद जातीय पंचायत बैठती है। वहां अनुष्ठान के नाम पर ससुराल वाले लड़की के पिता और लड़के से जमकर वसूली करते हैं।

पुलिस भी इन मामलों में यह कहकर पल्ला झाड़ लेती है कि ये निजी समुदाय की परंपरा है, हम कुछ नहीं कर सकते। जातीय पंचायत जिस तरह के फैसले सुनाती है, वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। महिलाओं की शुद्धता की पुष्टि के लिए जातीय पंचायत उसे 2 बार अग्नि परीक्षा से गुजरने का मौका देती है। महिलाओं को तालाब या नदी के पानी के अंदर उतनी देर तक अपनी सांसें रोककर रखनी पड़ती हैं, जितनी देर तक एक व्यक्ति को 100 कदम चलने में समय लगता है। ये परीक्षण बेहद अमानवीय है। तय समय से पहले यदि लड़की पानी से बाहर आ जाती है तो यह मान लिया जाता है कि वह पवित्र नहीं है। उसे जुर्माना देना पड़ता है। 

दूसरे परीक्षण में उसे अपनी पवित्रता साबित करने के लिए हाथ पर पीपल के पत्ते और उस पर गर्म तवा रखना पड़ता है। हाथ जल गया, मतलब दुल्हन का चरित्र खराब है। इसकी भरपाई उसके परिवार को जुर्माना भरकर देनी होती है। दोनों ही मामलों में पवित्रता साबित भी हो गई, तो भी आधा जुर्माना तो देना ही पड़ता है। कौमार्य परीक्षण की प्रथा संविधान के अनुच्छेद-21 निजता के अधिकार का भी उल्लंघन है और चिकित्सकीय रूप से भी अनुचित है। यह परीक्षण पितृसत्तात्मक मानदंडों के साथ ङ्क्षलग आधारित भेदभाव को भी पुष्ट करता है। सरकार को परीक्षण की गलत प्रकृति के बारे में जनता को शिक्षित करना चाहिए और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना चाहिए।-गीता यादव  


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