बहारें खिलखिलाती थीं, वह जब भी मुस्कुराती थी

Wednesday, Feb 14, 2024 - 06:13 AM (IST)

उसका चेहरा आज भी अपनी एक झलक में न जाने कितनी मासूमियत, कितने दर्द और कितनी मोहब्बत लिए हुए दिखता है। 36 वर्ष की छोटी-सी जिंदगी में प्यार, उदासी, अलगाव और टूटे वादों को समेटे इस दुनिया से रुख्सत हो गई वह सुंदरता की मूरत। नीली आंखें, सांचे में ढला चेहरा, दिलकश मुस्कान, मरमरी हाथ और तराशा हुआ संगमरमरी बदन... ताजा हवा के झोंके की माङ्क्षनद था उसकी खूबसूरती का पैमाना। मदहोश कर देने वाली खुशबू और ओस-सी मासूमियत भरी ताजगी। वह अनारकली थी। 

अनारकली शब्द सुनते ही आंखों के आगे फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ की खूबसूरत और मासूम अभिनेत्री मधुबाला का अक्स उभरता है। वह तारीख, जिस दिन दुनिया मोहब्बत का दम भरती है, उसी 14 फरवरी, 1933 को दिल्ली में जन्मी थी प्यार के रंग में डूबी यह तस्वीर, एक ऐसे गरीब मुस्लिम परिवार में, जहां दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से मयस्सर होती थी। ग्यारह भाई-बहनों में से 5वीं संतान थी वह। ऊपरवाले ने उसे बेपनाह खूबसूरती बख्शी थी। बड़ा संघर्षमय बचपन था उसका, घर के आंगन में उसकी बेसाख्ता हंसी गूंजती रहती। वक्त गुजरता रहा और मुमताज बढऩे लगी। 

एक दिन उसके पिता अताउल्ला खां, जो पेशावर की इंपीरियल टोबैको कंपनी में मुलाजिम थे, परेशान हो उठे क्योंकि उनकी फैक्ट्री बंद हो गई थी। एकाएक उन्हें उस फकीर की बात याद आई, जिसने मुमताज के बारे में भविष्यवाणी की थी कि इसके माथे पर नूर है और यह लड़की बहुत नाम कमाएगी। अताउल्ला खां को मुमताज की शक्ल में रोशनी की एक किरण नजर आई। उन्होंने परिवार के साथ मुंबई जाने का फैसला कर लिया। आठ वर्ष की मुमताज मुंबई पर परचम लहराने चल पड़ी। 

एक दिन भाग्य ने उनके दर पर दस्तक दी। मुमताज को ‘बसंत’ फिल्म में मुमताज शांति के बचपन का रोल मिला। पगार सौ रुपए महीना। उस दिन पूरा घर खुशी से झूम उठा और उसे बेबी मुमताज के नाम से पहचान मिली। इसी बीच उसकी मुलाकात सुपरस्टार देविका रानी से हुई। उन्होंने उसे मधुबाला नाम दिया। काम बढऩे लगा और दिल ख्वाबों के आसमां तले उडऩे लगा। 1947 में 14 वर्ष की उम्र में केदार शर्मा ने अपनी फिल्म ‘नील कमल’ में बतौर लीड हीरोइन साइन किया। उनकी ख्याति भोर के सूरज की तरह अचानक उगकर दुनिया को चौंका गई। 

जब मधुबाला ‘पराई आग’ की शूटिंग में थी, तब उस पर कमाल अमरोही की नजर पड़ी। कमाल मधुबाला के सौंदर्य को परदे पर उतारना चाहते थे। उन्हें अपनी फिल्म ‘महल’ के लिए ऐसी अदाकारा की दरकार थी, जो बिना आत्मा की प्रेतात्मा जैसी नजर आए और मधुबाला उनके इस पैमाने पर खरी उतरती थी। कमाल ने उसकी सुंदरता को बड़ी ही नफासत से इस फिल्म के एक गीत ‘आएगा आने वाला’ में प्रस्तुत किया। इसी के साथ दोनों का प्यार भी खूब परवान चढ़ा लेकिन यह साथ चंद दिनों का था। कमाल शादीशुदा थे। एक बार शूटिंग के लिए निकलते समय मधुबाला को खांसी आई। मुंह में कफ के साथ खून आया। बाद में पता चला मधु के दिल में छेद है। 1954 में मद्रास में फिल्म ‘बहुत दिनों’ की शूटिंग के दौरान उसे खून की उल्टी हुई। 

एक तरफ वह बीमारी से लड़ रही थी, तो दूसरी तरफ उसकी शोहरत आसमां छू रही थी। अब वह प्यार की तलाश में थी। फिर उनकी जिंदगी में प्रेमनाथ आए लेकिन यह सिलसिला जल्दी ही टूट गया। फिल्म ‘तराना’ के सैट पर दिलीप कुमार से आंखें चार हुईं। मधु ने अपनी मेकअप आर्टिस्ट के जरिए उन्हें लाल गुलाब और उर्दू में लिखा खत भेजा। दिलीप ने प्यार की इस निशानी को खुशी-खुशी कबूल कर लिया। उन दिनों मधुबाला बेहद खुश थी। वह दिलीप साहब की बेइंतहा मोहब्बत में खोई हुई थी। उनकी सच्ची मोहब्बत परदे पर भी नजर आ रही थी लेकिन इस रिश्ते पर किसी का पहरा था। अताउल्ला खां इस रिश्ते से नाखुश थे। पिता की सख्त मिजाजी के कारण दोनों को छुपकर मिलना पड़ता था। उनके रोमांस की खुशबू आसिफ  की फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में बिखरने लगी। 

इधर, दोनों के निकाह के चर्चे शुरू हुए और उधर दोनों के बीच गलतफहमियों ने जगह बनानी शुरू कर दी। इसी बीच ‘नया दौर’ के लिए बी.आर. चोपड़ा ने दोनों को साइन कर लिया। आऊटडोर शूटिंग को लेकर अताउल्ला खां की नाराजगी ने मामले को अदालत तक पहुंचा दिया। मधुबाला और दिलीप के रास्ते जुदा हो गए। दिलीप मधुबाला से शादी के लिए तैयार थे लेकिन इस शर्त पर कि उसे अपने पिता से सारे रिश्ते तोडऩे होंगे। वह खामोश रही। उसके बाद दिलीप उसकी दुनिया से ऐसे गए कि फिर कभी न लौटे। मधु के चारों ओर घनी उदासी और पस्तगी थी। 

मधुबाला ने हमेशा एक आदर्श पत्नी होने का सपना देखा था लेकिन पिता के स्वार्थ के कारण उसे सच्चा प्यार हासिल नहीं हुआ। वहीं के. आसिफ की ‘मुगल-ए-आजम’ पूरी होने में 9 वर्ष लग गए। फिल्म पूरी हुई और उसके नाम न जाने कितने रिकॉर्ड, कितने अवॉर्ड दर्ज हुए। हॉलीवुड के अखबार भी मधु की शान में कसीदे पढ़ रहे थे। उसे ‘वीनस ऑफ इंडियन सिनेमा’ की उपाधि दी जा रही थी, पर उसका स्वास्थ्य साथ छोड़ रहा था। मरने से पहले वह शादी के बंधन में बंधना चाहती थी। 

इसी बीच उसके जीवन में भारत भूषण, प्रदीप कुमार और किशोर कुमार के प्रस्ताव आए। आखिरकार मधुबाला ने किशोर कुमार से शादी कर ली लेकिन दिलीप की जगह वह किसी को न दे पाई। किशोर कुमार के साथ हार्ट सर्जरी के लिए लंदन गई। वापसी पर उसे महसूस होने लगा कि किशोर के साथ शादी उसकी सबसे बड़ी भूल थी। मधु अपने पुराने घर लौट आई। मौत की पदचाप अब उसे साफ सुनाई देने लगी थी। अंतिम दिनों में उसने अपनी पसंदीदा सभी फिल्में देख लीं, जिनमें मुगल-ए-आजम, बरसात की रात, चलती का नाम गाड़ी और महल शामिल थीं। आखिरी दिनों में उनकी दिलीप कुमार से बातचीत होने लगी थी। वह मरना नहीं चाहती थी। 23 फरवरी, 1969 को लंबी बीमारी के बाद एक घुप्प काली रात में बेचैन दिल की धड़कनें सो गईं। दिल में कई अधूरे सपने लिए मधुबाला ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उसे उसकी डायरी के साथ दफनाया गया। 

कहते हैं कि बचपन के साथी लतीफ, जिनसे मधुबाला को पहला प्यार हो गया था, ने उनकी कब्र पर वही लाल गुलाब रखा, जो उसने रुखसती के वक्त लतीफ को इस वायदे के साथ दिया था कि वह लौटकर आएगी। लतीफ सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी थे। लोगों का कहना है कि हर साल वह मधुबाला की पुण्यतिथि पर उनकी कब्र पर जाकर लाल गुलाब के फूल चढ़ाते थे।
यादों के झरोखे से 
-मधुबाला ने 12 वर्ष की उम्र में फिल्म निर्माता मोहन सिन्हा से कार चलानी सीखी।
-देश में आज भी सबसे ज्यादा अगर किसी अभिनेत्री के पोस्टर बिकते हैं, तो वह मधुबाला है।
-वह हॉलीवुड की प्रशंसक थी। उसे शुरू में सिर्फ उर्दू और पश्तो ही आती थी, बाद में उसने धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलनी सीखी। वह होम प्रोजैक्टर पर अमरीकन फिल्में भी देखती थी।
-कहते हैं फिल्म मुगल-ए-आजम के लिए मधुबाला ने बिना पैसों के काम किया था। वह केवल सैट पर दिलीप कुमार की एक झलक पाने के लिए बेताब दिखती थीं।
-मौत से पहले मधुबाला ने कहा था कि वह दोबारा इस दुनिया में आना चाहती है और पुन: अभिनेत्री बनना चाहती है।-गीता यादव

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