बॉलीवुड में ‘धर्म’ की खोज

Thursday, Dec 12, 2019 - 04:03 AM (IST)

कुछ वर्ष पूर्व मेरे एक दोस्त ने मुझसे बॉलीवुड फिल्मों में कैथोलिक सम्प्रदाय की रूढि़वादी धारणा के बारे में पूछा। फिल्मों में कैथोलिक लड़कियों को शॉर्ट स्कर्ट में दिखाया जाता है तथा उनके पिता का एक शराबी के रूप में चित्रण किया जाता है, जो अंग्रेजी के शब्द बोलता है। एक समय बॉलीवुड ने अपनी फिल्मों को चमकाने के लिए ऐसी शैली का प्रयोग किया। बॉलीवुड ने ऐसी लड़कियों की टांगें तथा घुटनों को दिखाया। मगर हिन्दू लड़कियों का चित्रण वह इस ढंग से नहीं कर पाया। उन्हें तो सलवार-कमीज तथा साड़ी में दिखाया गया है। गांव की छोरी के किरदार में लड़कियों के घुटने दिखाए गए। फिल्मों में ईसाई लड़कियों को ही सैक्रेटरी बनाया दिखाया गया। 

फिल्म उद्योग में रूढि़वादी उदाहरण अब तक चलता आया है जोकि जगजाहिर है। यह बॉलीवुड मसाले का एक हिस्सा है। कुछ लोगों का मत है कि ईसाई को दिखाया जाना लोगों को भ्रमित करता है और वे ऐसे किरदारों को पहचान नहीं पाते। इसका उदाहरण 1982 में बनी फिल्म ‘विजेता’ है। इस फिल्म में किरदारों का धर्म स्पष्ट नहीं था। 1975 में बनी फिल्म ‘जूली’ इससे भिन्न थी। 

टैलीविजन पर आप मुसलमानों को कैसे रूप दोगे। उनको बुर्का पहनना पड़ता है, लम्बे झुमके पहनने पड़ते हैं, नमाज पढ़ते दिखाया जाता है। इसी तरह हिन्दू परिवार को एकता कपूर के नाटकों में भगवान राम तथा कृष्ण के सम्मुख आरती करते हुए दिखाया जाता है। अनुष्ठानों को कैमरे के सामने दिखाया जाता है। इसके अलावा होली, दीवाली जैसे त्यौहारों को भी दिखाया जाता है। वहीं इस्लाम के लिए झूमते और घूमते हुए दरवेशों को दिखाया जाता है। 

लोग तो यहां तक कहते हैं कि फिल्मों में शाहरुख खान तथा सलमान खान को गणेश उत्सव पर डांस करते तथा गाते दिखाया जाता है। यह राइट विंग के हिन्दुत्व के बारे में एजैंडे का हिस्सा है, जो फिल्म उद्योग पर अपना प्रभाव छोड़ता है। वहीं खान विरासत पर अक्षय कुमार का साया पड़ता दिखाई देता है। वामपंथी भी फिल्म उद्योग उद्योग का इस्तेमाल अपने प्रचार को विकसित करने के लिए करते हैं। वे आर्ट फिल्मों के माध्यम से अपनी विचारधारा को दर्शाते हैं। गरीबी की सच्चाई को कुछ तौर पर दिखाया जाता है और ऐसी फिल्मों में विलेन को बनिया या फिर ब्राह्मण दिखाया जाता है। उनको लूटने वाले तथा लालची लोग बताया जाता है। 

धर्म तथा राजनीति को दर्शाने के उद्देश्य से कुछ खास शब्दावली घड़ी जाती है। धर्म की राजनीति विभिन्न लोगों द्वारा दर्शाई जाती है। बॉलीवुड में संस्कारी फिल्में भी बनती हैं। जहां पर एक अच्छी महिला को आज्ञाकारी तथा एक बुरी महिला को सिगरेट पीते दिखाया जाता है। समलैंगिक पुरुष को कम ही दिखाया जाता है जबकि लैस्बियन पर भी कभी-कभार फिल्में बनती हैं मगर ऐसी फिल्मों को लोग समझ नहीं पाते क्योंकि विजुअल शब्दावली नहीं दिखाई जाती। पेड़ के इर्द-गिर्द नृत्य कर रही दो लड़कियां आपस में दोस्त हो सकती हैं। पूजा कक्ष के बिना हिन्दू को दिखाया जा सकता है। उसका धोती या फिर साड़ी पहनना जरूरी नहीं। फिल्मों में राहुल नाम रखने से यह जरूरी नहीं कि वह हिन्दू ही हो। उसे राहुल गोंजाल्विस भी कहा जा सकता है। सफेद धोती भारतीय राजनेताओं की पहचान है। चाहे वह बुरा हो या भला। आक्रामक हिन्दू को माथे पर तिलक लगाए तथा भगवा रंग में दिखाया जाता है। 

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