भारत में हो रहे बलात्कारों की चीखें पहुंचीं अब विदेशों में

Friday, Apr 20, 2018 - 02:39 AM (IST)

इन दिनों देश में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों की आंधी सी आई हुई है जिसकी चीखें भारत तक सीमित न रह कर विदेशों तक में सुनाई दे रही हैं तथा कठुआ, उन्नाव और सूरत सहित देश के अन्य भागों में लगातार होने वाली बलात्कार की घटनाओं के विरुद्ध रोष व्यक्त करते हुए दोषियों को तुरंत और कठोर सजा देने की मांग की जा रही है। 

कठुआ कांड की गूंज देश की सीमाओं के पार संयुक्त राष्ट्र तक पहुंच गई है और 14 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने 8 वर्षीय बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या को भयावह घटना बताते हुए इसकी कड़े शब्दों में निंदा की और आशा जताई कि प्रशासन इस जघन्य अपराध के दोषियों को उचित सजा देगा। इसी प्रकार 15 अप्रैल को लंदन स्थित ‘नैशनल इंडियन स्टूडैंट्स एंड एलुमनी यूनियन यू.के.’ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर भारत में बलात्कार की घटनाओं पर क्षोभ जताया। 

पत्र में कहा गया है कि, ‘‘आपने पहले भी नोटबंदी जैसे कई पग उठाकर चकित किया है, वर्तमान घटनाक्रम में भी आपसे ऐसे ही पग उठाए जाने की अपेक्षा है जिससे बेटियों को न्याय मिल सके।’’ इसी प्रकार कठुआ, उन्नाव और सूरत में बच्चियों के साथ हुई बलात्कार की घटनाओं के विरुद्ध 16 अप्रैल को न्यूयार्क में ‘यूनाइटिड फार जस्टिस रैली अंगेस्ट द रेप इन इंडिया’ शीर्षक से जस्टिस रैली निकाली गई जिसका आयोजन प्रगतिशील हिन्दुओं के संगठन ‘साधना’ ने नागरिक अधिकारों की वकालत करने वाले अन्य 20 समूहों के साथ मिल कर किया। 

17 अप्रैल को स्वीडन में स्टाकहोम विश्वविद्यालय के बाहर बड़ी संख्या में कतारबद्ध खड़े होकर भारतीय तथा स्थानीय छात्रों के एक समूह ने प्रदर्शन किया जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित किया था। छात्रों ने हाथ में बैनर उठा रखे थे जिनमें बलात्कारियों को कड़ा दंड देने की मांग की गई थी। जहां भारत में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के विरोध में विदेशों में आवाज उठ रही है वहीं इनके विरुद्ध देश में भी धरने और प्रदर्शन जारी हैं। इसी सिलसिले में 15 अप्रैल को दिल्ली में सिविल सोसायटी के सदस्यों द्वारा  संसद मार्ग पर ‘नॉट इन माई नेम’ नामक मार्च निकाल कर पीड़ितों को न्याय व दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग की गई। उत्तरी गुजरात के मोंडेसा शहर में 15 अप्रैल को लोगों ने 2 किलोमीटर लम्बी मानव शृंखला बनाकर रोष व्यक्त किया। 

मुम्बई के कैथोलिक चर्च ने भी इसकी आलोचना की तथा ठाणे में चर्च की ओर से इन घटनाओं के विरुद्ध 18 अप्रैल को रैली निकाली गई। महिलाओं पर अत्याचारों के विरुद्ध दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल ने आमरण अनशन रखा हुआ है। यही नहीं 49 पूर्व अफसरशाहों ने, जिनमें पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक जूलियो रिबैरो, प्रसार भारती के पूर्व सी.ई.ओ. जवाहर सरकार तथा पूर्व सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला शामिल हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर कहा है कि यह आजाद भारत का सबसे अंधकारपूर्ण समय है अत: देश को अफरा-तफरी के गर्त में डूबने से बचाने के लिए कठुआ और उन्नाव जैसे कांडों के दोषियों के विरुद्ध त्वरित और कड़ी कार्रवाई की जाए। 

सारे घटनाक्रम के लिए नरेंद्र मोदी को सर्वाधिक जिम्मेदार ठहराते हुए पत्र में लिखा है कि, ‘‘गलतियां स्वीकार करने व प्रायश्चित करने की बजाय वह मौन रहे तथा उन्होंने चुप्पी तब तोड़ी जब राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जनरोष उस स्तर पर पहुंच गया जिसकी वह और उपेक्षा नहीं कर सकते थे।’’ उक्त घटनाक्रम को देखते हुए अंतत: राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी चुप्पी तोडऩे को विवश हुए तथा उन्होंने इन घटनाओं को शर्मनाक करार दिया है। जिस तरह इस समय देश में बलात्कार की घटनाएं सामने आ रही हैं और देश-विदेश में इनकी चर्चा तथा भारत की बदनामी हो रही है, इससे पहले कभी भी ऐसा नहीं हुआ था। यह मुंह बोलता प्रमाण है कि आज अपराधी तत्व किस कदर बेलगाम और निरंकुश हो चुके हैं। अत: उन पर लगाम कसने के लिए प्रशासन को भी जल्दी से जल्दी उतना ही सख्त होने की जरूरत है।—विजय कुमार 

Pardeep

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