‘बेनामी सम्पत्ति’ पर कसता कानून का शिकंजा

Tuesday, Jul 23, 2019 - 03:04 AM (IST)

मेरे एक परिचित राजीव गौतम, जो कांग्रेस के पक्के सपोर्टर हैं, ने मेरे पास आकर कहा कि आपके मोदी ने बर्बाद कर दिया और न कहने योग्य भद्दी-भद्दी गालियां देनी शुरू कर दीं। मोदी जैसे सत्ता के सर्वोच्च पर बैठे व्यक्ति को ऐसी गालियां मिलती ही हैं, मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। पर मैंने बड़े शांत मन से पूछा कि हुआ क्या, मोदी ने आपको क्या किया कि आप इतने गुस्से में हैं और भद्दी-भद्दी गालियां दे रहे हैं? 

उन्होंने कहा कि मैंने 2012 में 65 लाख की सम्पत्ति खरीदी थी और अब 2018 में आयकर विभाग से नोटिस मिला है, हमारा सी.ए. कहता है कि 10-15 लाख का चूना लगेगा, कुछ अधिकारियों को रिश्वत जाएगी और 65 लाख पर आयकर भी लगेगा। चारा घोटालेबाज लालू यादव का पूरा परिवार आय से अधिक बेनामी सम्पत्ति  रखने का आरोपी बना, लालू की पत्नी राबड़ी देवी, बेटा तेजस्वी यादव, बेटी मीसा भारती बेनामी सम्पत्ति कानून के चक्कर में पड़े हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि इस परिवार के पास अन्य बेनामी सम्पत्तियां भी हैं जो जांच के घेरे में हैं। 

पर लालू परिवार ने दोषी होने के बावजूद आरोप लगाया कि मोदी बदले की भावना से कार्रवाई कर रहे हैं। इसके साथ ही साथ मोदी के संबंध में अतिरंजित और अशोभनीय टिप्पणियों की शृंखला भी लगा दी थी। अब मायावती का प्रसंग भी न केवल सामने आया है बल्कि चर्चा का विषय है। मायावती के भाई आनंद के 400 करोड़ रुपए के प्लाट को आयकर विभाग ने जब्त कर लिया है। 

आयकर विभाग का कहना है कि मायावती के भाई के पास और भी अवैध-बेनामी संपत्ति है जो जांच के घेरे में है, जिसकी सच्चाई जल्द ही सामने आएगी। जब भाई आनंद पर आयकर विभाग का डंडा चला तब मायावती बोली कि उसके परिवार को दलित होने की सजा दी जा रही है, केन्द्रीय सरकार यानी नरेन्द्र मोदी बदले की भावना से यह कार्रवाई करा रहे हैं। राजनीतिक विरोधी मायावती को दौलत की रानी कहते हैं। यह तो राजनेताओं के अवैध सम्पत्ति-बेनामी सम्पत्ति के किस्से हैं। सरकारी अधिकारियों और अन्य क्षेत्र की अवैध-बेनामी सम्पत्तियों के किस्से हर समय जोर-शोर से उछलते रहे हैं। देश में अवैध और बेनामी सम्पत्ति कितनी है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। 

पक्षपात व बदले की कार्रवाई का आरोप
जब बड़े स्तर पर कोई कानून का फंदा कसता है, बड़ी-बड़ी हस्तियां जब कानून के फंदे में फंसती हैं तब प्रत्यारोपित शोर भी मचता है, खासकर राजनीति की हस्तियां लोकतांत्रिक कमजोरियों को ढाल बना लेती हैं, अपने समर्थक वर्गों की शक्तियां दिखा कर डराती-धमकाती भी हैं। पक्षपात और बदले की भावना से कार्रवाई करने का आरोप लगाना भारतीय राजनीति का हथकंडा है। यह भी देखा गया है कि भारतीय सत्ता लोकतांत्रिक कमजोरियों के कारण अपने समर्थक राजनीतिक शक्ति वर्ग का भय दिखाने वाले राजनीतिज्ञों और राजनीतिक दलों के सामने हथियार डाल देती है और अवैध-बेनामी सम्पत्ति रखने वाले राजनीतिज्ञ और राजनीतिक दलों की जांच करने वाली सरकारी एजैंसियों के हाथ बांध दिए जाते हैं। सरकारी जांच एजैंसियां भी सरकारी रुख को अंगीकार कर लेती हैं। 

पिछले 10 साल के कांग्रेसी शासनकाल में मुलायम सिंह यादव परिवार और मायावती के खिलाफ आय का प्रसंग बार-बार उछलता था, सुप्रीम कोर्ट में जांच करने वाली सरकारी एजैंसी सी.बी.आई. कभी वीर हो जाती थी तो कभी मूकदर्शक बन जाती थी। ऐसा इसलिए कि उस समय की केन्द्रीय सत्ता बहुमत की जरूरतों को पूरा करने के हिसाब से कदम उठाती थी। जब संसद में मुलायम सिंह यादव और मायावती बहुमत के लिए जरूरी समर्थन देने में आनाकानी करते तो फिर सी.बी.आई. का मुंह खोल दिया जाता था, वह फिर से सुप्रीम कोर्ट में वीर हो जाती थी। यही कारण है कि 2004 से लेकर 2014 तक मुलायम और मायावती बिना शर्त संसद में कांग्रेस को समर्थन देते रहे थे। बेनामी और अवैध सम्पत्ति के स्रोत भी भ्रष्टाचार और कालाधन हैं। भ्रष्टाचार के माध्यम से जमा काले धन से ही अवैध और बेनामी सम्पत्तियां बनाई जाती हैं। 

कानून में संशोधन    
आखिर एक पर एक अवैध-बेनामी सम्पत्तियों के पर्दाफाश का राज क्या है? अब जांच एजैंसियां इतनी कामयाब क्यों और कैसे हो रही हैं, जांच एजैंसियां बड़ी-बड़ी हस्तियों की गर्दन नापने में सफल कैसे हो रही हैं, यह जानना भी जरूरी है। दरअसल बेनामी सम्पत्ति कानून में वह संशोधन है जो नरेन्द्र मोदी की सरकार ने 1 नवम्बर 2016 को किया था। देश में बेनामी सम्पत्ति कानून बेहद लचीला, कमजोर और जांच करने वाली जांच एजैंसियों को पंगु बनाने वाला था। सबसे पहले राजीव गांधी शासन काल में 1988 में बेनामी सम्पत्ति कानून बना था। 

मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में एक के बाद एक घोटालों के उजागर होने के बाद बेनामी कानून को और मजबूत करने की मांग उठी थी। उस समय यह प्रस्तावना दी गई थी कि अगर बेनामी सम्पत्ति कानून मजबूत होगा तो फिर देश भर में भ्रष्टाचार करने वाले राजनीतिज्ञों, व्यापारियों और नौकरशाहों आदि को काला धन खपाने में मुश्किल आएगी। पर मनमोहन सिंह की सरकार ने बेनामी सम्पत्ति कानून को सख्त बनाने की कोशिश ही नहीं की थी। 

नरेन्द्र मोदी का 2014 में चुनावी वायदा कालेधन के खिलाफ था। कालेधन को रोकना भी एक चुनौती थी। बेनामी सम्पत्ति को उजागर किए बिना कालेधन को रोकना मुश्किल था, इसीलिए नरेन्द्र मोदी की सरकार ने राजीव गांधी की सरकार द्वारा बनाए गए बेनामी सम्पत्ति कानून में संशोधन करना उचित समझा। पहले जांच एजैंसियां बेनामी सम्पत्ति को जब्त नहीं कर सकती थीं, पर संशोधित कानून के तहत जांच एजैंसियों को बेनामी सम्पत्ति को जब्त करने का अधिकार है। इसी आधार के तहत जांच एजैंसी ने मायावती के भाई की 400 करोड़ की बेनामी सम्पत्ति जब्त की है। 

सबसे बड़ी बात यह है कि संशोधित कानून में गिरफ्तारी और सजा का भी प्रावधान है। अगर बेनामी सम्पत्ति का प्रमाण मिल गया और यह अवैध लेन-देन पकड़ा गया तो फिर गुनहगार को 7 साल की सजा मिलेगी और बेनामी सम्पत्ति के बाजार भाव का एक चौथाई भाग जुर्माने में देना होगा। मायावती के भाई की पकड़ी गई 400 करोड़ की अवैध और बेनामी सम्पत्ति पर मायावती के भाई को एक चौथाई यानी एक सौ करोड़ रुपए जुर्माने के तौर पर सरकार के खाते में जमा करने होंगे।

आंकड़ा बहुत अधिक
देश भर में अभी 7 हजार करोड़ रुपए की अवैध-बेनामी सम्पत्ति पकड़ी गई है। बहुत सारे लोगों के लिए 7 हजार करोड़ का आंकड़ा बहुत ज्यादा हो सकता है पर बेनामी सम्पत्ति पर नजर रखने वाले लोग अभी भी मानते हैं कि यह आंकड़ा बहुत ही कम है और बेनामी सम्पत्ति की जांच करने वाली सरकारी एजैंसियां अभी भी कमजोर हैं, उनके अभियान में तेजी आनी चाहिए। सही तो यह है कि देश में खरबों रुपए की अवैध व बेनामी सम्पत्ति पड़ी हुई है। क्या राजनीतिज्ञ, क्या नौकरशाह, क्या कर्मचारी, क्या व्यापारी सबके-सब बेनामी सम्पत्ति के फंदे में फंसे हुए हैं, सिर्फ कानून का फंदा कसने की जरूरत है। यहां तो एक चपरासी के घर में भी करोड़ों की अवैध-बेनामी सम्पत्ति मिलती है। देश का आम आदमी और अनपढ़ आदमी भी यह जानता है कि देश के शहरों की ऐसी कोई गली नहीं है जिसमें अवैध सम्पत्ति नहीं है, एक-एक व्यक्ति के पास कई-कई कोठियां-फ्लैट हैं। 

अब तक तो राजनीतिज्ञों की ही बेनामी सम्पत्तियां उजागर हो रही हैं। अगर नौकरशाहों की बेनामी सम्पत्तियां उजागर होंगी तो फिर देश को आश्चर्यचकित होना पड़ सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि केन्द्रीय सरकार को पकड़ी गई बेनामी सम्पत्तियों के गुनहगारों को त्वरित जेल की सजा दिलानी होगी। विलम्बित न्याय से कुछ हासिल नहीं होता है। कोर्ट में भी जांच एजैंसियां वीरता दिखाएं और बेनामी सम्पत्ति के गुनहगारों को सजा दिलाएं। वैसे पैसे वाले गुनहगार तो न्याय तक खरीद लेते हैं।-विष्णु गुप्त
 

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