तराजू झूठ नहीं बोलता और सत्य अटल होता है

punjabkesari.in Sunday, Aug 11, 2024 - 05:44 AM (IST)

यह हमारे पूरे देश के लिए कितनी भयानक निराशा है कि जिस एक स्वर्ण पदक की हमें आशा थी, वह छीन लिया गया! हालांकि  मैं अपने सभी देशवासियों का दुख सांझा करता हूं, फिर भी, हमें यहां से एक सबक सीखना है क्योंकि मैं कई लोगों की प्रतिक्रियाओं से सबक लेता हूं। एक नेता ने कहा कि हमनेे ओलंपिक संघ के प्रमुख से सभी विकल्पों का पता लगाने और फैसले के खिलाफ अपील करने को कहा है। दूसरा कहता है कि इसमें कुछ बेईमानी हुई है, और तीसरा कहता है कि हमारे साथ गलत तरीके से न्याय किया जा रहा है। इन प्रतिक्रियाओं में, हम देखते हैं कि हम सत्य को कैसे संभालते हैं और न्याय पाने का प्रयास करते हैं।

कुछ महीने पहले जिन बेईमान और भ्रष्ट विपक्षी नेताओं को सजा हुई थी, सरकारी अधिकारियों द्वारा उनके अपराधों के मामले अचानक वापस ले लिए गए क्योंकि वे या तो सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गए या उन्होंने अपना मुंह बंद कर लिया। लेकिन आज, हमें इस बात से बहुत निराशा होती है कि अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में तराजू झूठ नहीं बोलते हैं और उनके बोलने के बाद, न्याय पूर्ण होता है। जब अंतर्राष्ट्रीय एजैंसियों ने हमारे देश को गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार, भाषण और प्रैस की स्वतंत्रता के सूचकांक में नीचे लुढ़कते हुए दिखाया तो हम काफी परेशान हो गए। हम चिल्लाते रहे कि वे देश हमारी आर्थिक स्थिति से ईष्र्या करते हैं, जब तक कि चुनाव परिणामों से पता नहीं चला कि हमारे देश में बहुसंख्यक गरीब अपनी नौकरियों की कमी और बुनियादी जरूरतों की कमी के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे। 

यदि सरकार ने कठोर और संवेदनशील होने की बजाय प्रस्तुत आंकड़ों पर ध्यान दिया होता, तो वे मामले को सुधार सकते थे। उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने तराजू को ही दोषी ठहराया। लेकिन तराजू झूठ नहीं बोलता। नहीं, वे ऐसा नहीं करते हैं और जब किसी तकनीकी चूक के लिए हमें दोषी ठहराया जाता है, तो हम अपील के बारे में चिल्लाकर या यह कहकर खुद को मूर्ख बनाते हैं कि एजैंसियों के पास प्रतिशोधात्मक एजैंडा था। मैं भी देश के बाकी लोगों की तरह ही परिणाम से निराश हूं लेकिन सबसे बड़ी निराशा या विफलताओं में भी कुछ सबक हैं जो हमें सीखने की जरूरत है। आइए हम न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसी पूर्णताओं में विश्वास करना शुरू करें। जब तराजू वजन परिणाम देता है तो हमें  ‘अपील’, ‘समायोजित’ और ‘ठीक करना’ जैसे शब्दों का प्रयोग बंद कर देना चाहिए। 

आज हमारे देश में न्याय लोगों के लिए एक ऐसी धुंधली उम्मीद बनकर रह गया है कि न्यायाधीशों की तुलना में मध्यस्थों का उपयोग अधिक हो गया है और मध्यस्थता के दौरान उल्लिखित पहला वाक्य यह है कि ‘‘न्याय या फैसले में 20 साल लगने वाले हैं, इसलिए कुछ उम्मीद छोड़ दें ताकि दोनों पक्ष खुश रहें।’’ जिसका अर्थ है समझौता, हालांकि आप सही हैं, हम ऐसा करने के इतने आदी हो गए हैं कि संपत्ति, भूमि हड़पने के लिए दबंग इसी रास्ते का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि अंतत: वे बिना कुछ दिए कुछ लेकर चले जाते हैं, भले ही वे कानूनी रूप से गलत हों। विनेश फोगाट सत्ताधारी पार्टी में शामिल होकर अपनी अयोग्यता रद्द नहीं करा सकतीं, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तराजू झूठ नहीं बोलता और सच अटल होता है..!-दूर की कौड़ी राबर्ट क्लीमैंट्स


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