सत्तारूढ़ भाजपा ने अपना ‘वायदा’ निभाया

punjabkesari.in Thursday, Jul 30, 2020 - 01:43 AM (IST)

आने वाला सप्ताह अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले के एक साल को चिन्हित करेगा, जो राज्य के लिए विशेष दर्जा प्रदान करता है, और जम्मू-कश्मीर राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में  विभाजित करता है। 5 अगस्त 2019 को घोषित किए गए फैसले से कश्मीर घाटी में  एक आभासी तालाबंदी हो गई थी और सामान्य  स्थिति अभी तक भी पूरी तरह से बहाल नहीं हो पाई। 

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 35ए को खत्म करने का अपना  वायदा निभाया था।  यह एजैंडा शुरू से ही पार्टी के घोषणा पत्र में रहा है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान कार्रवाई में देरी हुई क्योंकि भाजपा ने पी.डी.पी. की महबूबा मुफ्ती के साथ हाथ मिलाया था, जो एक कट्टरपंथी नेता के रूप में जानी जाती थीं। उन्होंने जून 2018 में भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद इस्तीफा दे दिया था और राज्य को केंद्रीय शासन  के अधीन रखा गया था। 

एन.डी.ए. के नेतृत्व में भाजपा को बहुमत मिलने के बाद 2019 में दूसरा कार्यकाल शुरू हुआ। यह स्पष्ट था कि अनुच्छेद 370 के दिन गिन लिए गए थे। घाटी के उच्च शीर्ष नेता  जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला तथा महबूबा मुफ्ती शामिल थे, राज्य के लिए विशेष दर्जे को समाप्त करने की उम्मीद कर रहे थे। हालांकि यह उम्मीद नहीं थी कि  राज्य का विभाजन दो भागों में हो जाएगा तथा केंद्र शासित प्रदेशों की स्थिति को नीचे कर दिया जाएगा। यह नेताओं के साथ-साथ राज्य के निवासियों के लिए एक झटका था। यह चोट को अपमान के साथ जोडऩे जैसा था। जबकि देश ने कई केंद्र शासित प्रदेशों को राज्यों की स्थिति में  अपग्रेड होते देखा है, यह पहली बार था कि एक राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में समेट दिया गया। 

हालांकि केंद्र ने निर्णय के बाद एक कड़े हाथ से सारी स्थिति से निपटा। इसमें भारी प्रतिबंध लगाए और लोगों को संचार लाइनों से लगभग काट ही दिया। टैलीफोन और इंटरनैट सेवाएं कई महीनों से पूरी तरह से बंद थीं और अब भी पूरी तरह से बहाल नहीं हो पाईं। लोगों की गतिविधियां अत्यधिक प्रतिबंधित थीं और मीडिया के पास कोई विकल्प नहीं था। उन्हें यही बताना था जो अधिकारी उन्हें बता रहे थे। यह देखते हुए कि कश्मीर घाटी में कानून और व्यवस्था की स्थिति को लेकर गंभीर आशंकाएं हैं, विशेषकर तब जब स्वतंत्र मीडिया को इस क्षेत्र में काम करने की अनुमति नहीं थी। हालांकि यह अटकलें गलत साबित हुईं और क्षेत्र से बड़े पैमाने पर हिंसा या आंदोलन की कोई प्रमाणित रिपोर्ट नहीं मिली। 

ब्रिटेन के एक समाचार चैनल ने एक बार विरोध-प्रदर्शन और पथराव के बारे में एक रिपोर्ट जारी की थी लेकिन बाद में यह पुष्टि की गई कि इसके द्वारा दिखाए गए फुटेज पिछली घटना से संबंधित थे। उमर अब्दुल्ला, जो 6 साल तक जम्मू-कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, ने आखिरकार धारा 370 के निरस्त होने के एक साल की पूर्व संध्या पर अपनी चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने घोषणा की है कि वह केंद्र शासित प्रदेश के लिए चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि वह तभी चुनाव लड़ेंगे जब पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। 

किसी व्यापक विरोध प्रदर्शन या केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ किसी आंदोलन की कमी पर उनकी प्रतिक्रिया पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह राज्य में ङ्क्षहसा के  चक्र की थकान के कारण हो सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आम लोग हिंसा के दुष्चक्र में फंस गए थे और स्थिति को बिगडऩे देना नहीं चाहते थे। यह सीमा पार से समर्थन और आपूर्ति में कटौती के सरकारी उपायों के कारण भी हो सकता है। फिर भी इसका मतलब यह नहीं है कि कश्मीर के सभी लोगों ने नई स्थिति को समेट लिया है। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान घाटी में परेशानी पैदा करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करेगा। 

पाकिस्तान ने राज्य के विशेष दर्जे को हटाने की पहली वर्षगांठ के लिए एक योजना तैयार की है। इसको लेकर पूरे पाकिस्तान में प्रदर्शन शामिल हैं। यहां तक कि इलैक्ट्रॉनिक मीडिया को ‘ब्लैक डे’ चिन्हित करने के लिए अपने चैनलों के लोगो को काले रंग में रंगे जाने के लिए कहा गया है। चीन भी पाकिस्तान की तरफ है और लद्दाख में निर्माण भी कश्मीर पर फैसले का नतीजा माना जा रहा है। यह याद रखना चाहिए कि केंद्रीय गृह मंत्री ने घोषणा की थी कि भारत के अगले कदमों से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) और अक्साईचिन  को वापस लिया जाएगा जो चीन के अवैध कब्जे में है।-विपिन पब्बी 
 


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