लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका अहम होती है

punjabkesari.in Saturday, Jun 15, 2024 - 05:54 AM (IST)

आम चुनावों के नतीजों ने मुझे उस सवाल का जवाब दे दिया है जो अब परेशान कर रहा है। भारतीय चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 642 मिलियन भारतीयों ने 2024 के आम चुनावों में मतदान किया। इनमें से 36.6 फीसदी यानी करीब 23.5 करोड़ लोगों ने भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया, जो 10 साल से केंद्र में सरकार चला रही है। भारत के लगभग 400 समाचार चैनलों में से किसी को चालू करें तो ऐसा लगेगा मानो ये 235 मिलियन लोग ही समाचारों के एकमात्र दर्शक हैं। यह मानते हुए कि वे सभी टैलीविजन देखते हैं, सत्ताधारी पार्टी के मतदाता 900 मिलियन के करीब के स्थानीय टी.वी. दर्शकों के एक तिहाई से भी कम हैं। यदि आप कुछ बड़े राष्ट्रीय समाचार पत्रों, विशेषकर अंग्रेजी और हिंदी के अखबारों को पलटें, तो ऐसा लगेगा कि इन 235 मिलियन भारतीयों की पसंद, नापसंद और राय सर्वोपरि है। पिछले भारतीय पाठक सर्वेक्षण के अनुसार, यह संख्या अखबार पढऩे वाले 421 मिलियन लोगों में से आधे से कुछ अधिक है। 

ध्यान दें कि बहुत से लोग टी.वी. देखना या पढऩा दोनों ही कर रहे होंगे। इसलिए, इन संख्याओं का महत्वपूर्ण दोहराव है। यदि आप 2014 और 2019 के लिए मतदाताओं की संख्या, मीडिया पहुंच आदि पर नजर डालें, तो पूर्ण आंकड़े  अलग-अलग हैं। लेकिन समाचार मीडिया द्वारा केवल उपभोक्ताओं के एक समूह को ही सेवा प्रदान करने की प्रवृत्ति निरंतर बनी हुई है। 

जिस बात ने मुझे हैरान कर दिया है वह यह है कि अन्य पार्टियों को वोट देने वाले 407 मिलियन लोगों को लगभग एक दशक से पूरी तरह से नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है। और अगर आप विचार करें देश की पूरी आबादी यहां तक कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों को नजरअंदाज करने के बाद भी न्यूज चैनलों का संकीर्ण दृष्टिकोण और भी विचित्र दिखाई देता है। इससे सूचना का एक बड़ा अंतर पैदा हो गया है। मतदाता या गैर-मतदाता के रूप में हमारे आस-पास क्या हो रहा है, किस स्कूल या कॉलेज में जाना है, स्वास्थ्य पर, नागरिक, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर हमारी राय इस बात से प्रभावित होती है कि हमारे पास कितनी जानकारी है और मुख्यधारा मीडिया अपनी अभूतपूर्व पहुंच के साथ, इस जानकारी का सबसे बड़ा स्रोत है। तथापि, अब लगभग एक दशक से, हमने भारत जैसे विविधतापूर्ण देश की अनेक कहानियों में से केवल एक ही कहानी सुनी है। 

ऐसी बहुत कम कहानियां कभी देखी या सुनी जाती हैं जो मुख्यधारा मीडिया द्वारा बताई गई कहानियों से विरोधाभास रखती हों, जैसे कि ग्रामीण संकट या भारत की नौकरियों के संकट के बारे में। जब लोकप्रिय आख्यान का विरोध करने वाली कहानियां सामने आती हैं, तो लोग अक्सर आश्चर्यचकित हो जाते हैं या अविश्वास में पड़ जाते हैं। अब कई वर्षों से, पूरा देश समाचार उपभोक्ताओं के एक समूह के पुष्टीकरण  पूर्वाग्रह के अधीन रहा है, जिससे एक सूचना शून्य पैदा हो रहा है जो लगातार बढ़ रहा है। लेकिन प्रकृति शून्यता से घृणा करती है। आश्चर्यजनक रूप से नहीं कई लोग, ब्रांड और प्लेटफॉर्म के ऑनलाइन अंतर को भरने के लिए आगे आए जहां प्रवेश बाधाएं टी.वी. या प्रिंट जितनी ऊंची नहीं हैं। 2016 में डाटा की कीमतें गिरने के बाद इसमें तेजी आई और गिरावट जारी रही जिससे ऑनलाइन सभी चीजों की खपत में तेजी से वृद्धि हुई। कॉमस्कोर के अनुसार, जनवरी 2024 में 523 मिलियन से अधिक भारतीयों ने वीडियो देखने, पढऩे, मनोरंजन या समाचार ऑनलाइन देखने के लिए हाई-स्पीड बैंडविड्थ का उपयोग किया। यहां एक जनसांख्यिकीय का वर्चस्व गायब है। जबकि बड़े अखबारों और समाचार नैटवर्कों की ऑनलाइन शाखाएं वही काम करती हैं जो वे ऑफलाइन करते हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय वैबसाइटें, यू-ट्यूब चैनल, लघु वीडियो एप्स और व्यक्ति, विभिन्न प्रकार की राय और जानकारी प्रदान करते हैं। अधिकांश की पहुंच छोटी है जो 5 से लेकर 25 मिलियन प्रशंसकों तक है और ऐसा लगता है कि उन्होंने कुछ हद तक यह कमी पूरी कर दी है। यही कारण है कि 4 जून को  रवीश कुमार, ध्रुव राठी, ऑल्ट न्यूज, द न्यूज मिनट, द वायर, द क्विंट, न्यूजलॉन्ड्री, स्क्रॉल, खबर लहरिया और इनमें से कई व्यक्तियों या अन्य भाषाओं की समाचार साइटों पर चुनाव की सूचनाएं आनी शुरू हुईं। आम चुनावों के परिणामों का जश्न मनाया जा रहा था। ऐसा लगा मानो उन्होंने चुनाव को दूसरी पाॢटयों के पक्ष में मोड़ दिया हो। लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका होती है। मीडिया ब्रांडों ने लगभग 10 वर्षों तक एक बड़े बाजार को नजरअंदाज करना चुना। इस प्रक्रिया में, उन्होंने भारतीयों के एक बड़े समूह के बीच अपनी विश्वसनीयता खो दी। अब समय आ गया है कि मुख्यधारा मीडिया भी 407 मिलियन लोगों की बात सुने।-वनिता कोहली खांडेकर


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