असली हकदार को मिले आरक्षण का लाभ
punjabkesari.in Tuesday, Sep 26, 2023 - 05:30 AM (IST)

इसमें कोई दो राय नहीं कि महिला आरक्षण को मूर्त रूप देने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजग सरकार को जाता है। निस्संदेह, विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी सहयोग दिया, अब चाहे राजनीतिक कारण हों या आसन्न चुनाव की चिंता। वे दल जो दशकों से इस बिल को रुकवा रहे थे, संख्या बल में कम होने और राजनीतिक गणित उनके पक्ष में न होने के कारण इस बार उनके विरोध के सुर मुखर नहीं हो पाए।
निस्संदेह, इस बिल को पास करने का श्रेय राजग को देना होगा। नई संसद के पहले सत्र के पहले दिन में इस बिल को प्रस्तुत करके मोदी सरकार बढ़त ले गई है। अब भले ही कोई दल व नेता श्रेय लेने का दावा करता रहे लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या महिलाओं के लिए संसद, दिल्ली विधानसभा तथा देश की अन्य विधानसभाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण देने के निर्णायक दौर में पहुंचना ही भारतीय लोकतंत्र की बड़ी उपलब्धि है? विधेयक के राज्यसभा में पारित होने के बाद अब राष्ट्रपति की अनुमति के उपरांत यह बिल कानून का रूप ले लेगा। कहा जा रहा है कि इस आरक्षण का लाभ 2029 के आम चुनाव तक संभव हो पाएगा। दरअसल, 2024 के आम चुनाव से पहले इस कानून का क्रियान्वयन संभव नहीं है। विधेयक के प्रावधानों के अनुसार पहले देश में जनगणना होगी।
दरअसल, कोरोना संकट के चलते 2021 की जनगणना नहीं हो पाई है। अब तो आम चुनावों के बाद ही जनगणना हो पाना संभव होग। फिर जनगणना के उपरांत देश में लोकसभा व विधानसभाओं की सीटों का परिसीमन होगा। फिर ही पता लगेगा कि संसद व विधानसभाओं में महिलाओं की कुल कितनी सीटें आरक्षित होंगी। बहरहाल, फिलहाल तो राजनीतिक दलों में महिला आरक्षण के मुद्दे पर मेला लूटने की कोशिश हो रही है। तथ्य यह भी है कि जो बिल तीन दशक से अटका हुआ था और अब पास हो गया है तो 140 करोड़ लोगों के विशाल देश में इसे लागू करने की व्यवस्था को पारदर्शी व कानून सम्मत बनाने में कुछ वक्त तो लगेगा। जब हम तीन दशक तक ठंडे बस्ते में पड़े विधेयक के लिए इंतजार कर सकते हैं तो नए विधेयक के कानून बनने के बाद कुछ साल इंतजार क्यों नहीं कर सकते? जनता को बरगलाने के लिए तमाम तरह की दलीलें दी जा रही हैं।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि महिला आरक्षण बिल के कानून का रूप लेने के बाद क्या इस कानून का लाभ वाकई योग्य व हकदार महिलाओं को मिल पाएगा? ग्राम पंचायत व स्थानीय निकाय के चुनावों में महिलाओं के लिए आरक्षण का हश्र हम देख चुके हैं। हद तो यहां तक हो जाती है कि निर्वाचित महिला सदस्य की शपथ उसका पति तक ले जाता है। सत्ता की मलाई खाने के लिए लोग कहां तक गिर जाते हैं। तमाम चुनाव के पोस्टरों में हमें पर्दानशीं महिलाएं नजर आ जाती हैं। सवाल यह है कि ऐसे में वास्तविक लोकतंत्र के क्या मायने हैं? क्यों पोस्टरों में लिखा होता है कि पंचायत प्रमुख, जिला परिषद प्रमुख, पूर्व मेयर व पूर्व विधायक की पत्नी, पुत्री व बहू चुनाव मैदान में प्रत्याशी है। यदि आरक्षण का लाभ समाज के कुछ सामंतवादी लोगों की बपौती बन जाना है तो ऐसे प्रावधानों का औचित्य व सार्थकता क्या है? बाहुबल, धनबल और जातिबल के दबाव से लोकतंत्र को हांकने वाले नेता क्या आरक्षण का लाभ जरूरतमंद, योग्य व जमीन से जुड़े प्रत्याशियों को देंगे?
सही मायनों में आरक्षण का लाभ तभी है जब वह ईमानदारी से किसी योग्य प्रत्याशी को मिले। कमोबेश भारतीय समाज में जातिगत आरक्षण के मामले में भी यही बात लागू होती है। यदि हर जरूरतमंद को इसका लाभ मिल पाता तो आजादी के साढ़े सात दशक बाद भी हमारे समाज में जातिगत व आर्थिक विषमता नहीं रहती। सवाल यह भी है कि देश के किसी शीर्ष पद पर आरक्षण का लाभ देने से क्या उस समाज का वाकई भला होता है? या फिर वह व्यक्ति अपना और आने वाली अपनी पीढिय़ों का ही भला करता है? कमोबेश यही स्थिति महिला आरक्षण के मामले में भी लागू होती है। इस बिल को मूर्त रूप देने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों में होड़ लगी है। क्या उन दलों ने कभी इस बात पर विचार किया कि इसका वाजिब लाभ कैसे हकदार प्रत्याशियों को मिल सकेगा?
क्या फिर पहले से ही पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता पर काबिज राजनेताओं की पत्नी, बेटी और बहू आदि को ही इस आरक्षण का लाभ मिलेगा? क्या समाज का सम्पन्न तबका ही इसका लाभ उठा पाएगा? क्या समाज में बाहुबलियों को ही चुनाव में अपने लोगों को चुनाव जितवाने का अवसर मिलेगा? दरअसल, पहले होना तो यह चाहिए कि हम उन कारणों को दूर करें जो आॢथक विषमता व शिक्षा में पिछड़ापन पैदा करते हैं। जो समाज में गैर-बराबरी को जन्म देते हैं, उन कारणों को दूर किया जाए। जब समाज में शिक्षा, सम्पन्नता व जागरूकता हर वर्ग में आ जाएगी तो फिर आरक्षण की जरूरत ही नहीं होगी। सही मायनों में हमारे नीति-नियंत समाज की वास्तविक समस्याओं को संबोधित करते ही नहीं। वे उन मुद्दों को हवा देते हैं जो उन्हें वोट दिलाने में मददगार होते हैं जिसके बल पर वे चुनाव जीत सकते हैं।इसी तरह हमने संसद में नारी शक्ति वंदन बिल पारित तो करा दिया है लेकिन यह सुनिश्चित करना अभी शेष है कि इसका लाभ योग्य प्रत्याशी को ही मिले।-अनिल गुप्ता ‘तरावड़ी’
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