ताजमहल की कमाई से तो भाजपा सरकारों को कोई गुरेज नहीं

Tuesday, May 15, 2018 - 04:41 AM (IST)

प्रदूषण से पीले पड़ते ताजमहल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। विश्व के 7 मानवनिर्मित आश्चर्यों में शामिल शाहजहां और मुमताज की मोहब्बत के करीब 300 साल पुराने इस प्रतीक को बचाने के लिए जो काम सुप्रीम कोर्ट कर रहा है, दरअसल उसकी सीधी जिम्मेदारी केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार की है। संयोग से दोनों में भाजपा की सरकारें हैं। 

भाजपा देश की धर्म-संस्कृति को बचाने की दुहाई देते हुए नहीं थकती। हालांकि यह मामला मुस्लिम शासक का होने से ताज को बचाने के मामले में नाक-मुंह सिकोड़े हुए है। ताज को लेकर इनके पूर्वाग्रह का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग ने अपने ब्रोशर में ताज को शामिल नहीं किया। इस मुद्दे पर खूब किरकिरी होने के बाद इसे शामिल किया गया। 

एेसा भी नहीं है कि धर्म-संस्कृति की झंडाबरदार पार्टी को हिंन्दू धार्मिक-एेतिहासिक स्थलों की खास चिंता हो। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक पुरामहत्व की 24 धरोहरें विलुप्तप्राय: हो चुकी हैं। इनमें उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। यहां 11 धरोहरें संरक्षण और सुरक्षा के अभाव में विलुप्त हो गईं। इसमें मिर्जापुर जिले का एक हजार वर्ष प्राचीन तीन ङ्क्षलगा मंदिर भी शामिल है। ऐतिहासिक और संस्कृति से जुड़ी इन धरोहरों को बचाने के लिए आंदोलन तो क्या, कभी किसी ने आवाज तक बुलंद नहीं की। दरअसल इनके नष्ट या जर्जर होने से किसी राजनीतिक दल का वोट बैंक प्रभावित नहीं होता। पुरामहत्व की विरासतों को बचाने के मामले में सरकारें सिर्फ मुखौटा ही साबित हुई हैं। 

आजादी के बाद देश में चाहे किसी भी दल की सरकारें रही हों, सरकारें विश्वस्तरीय दिखाने लायक कुछ दे तो नहीं सकीं बल्कि जो दर्शनीय है, उसकी हिफाजत करने में भी नाकामयाब रही हैं। इतना जरूर है कि सरकारें गाल बजाने में माहिर हैं। बेतुके और निरर्थक मुद्दों पर हंगामा करवाने में पीछे नहीं रहतीं। देश की पुरा-सम्पदा और एेतिहासिक इमारतों की सार-संभाल करने में सरकारों का दम फूलने लगता है। ये तो तब है जब ये धरोहरें सरकारी खजाना भर रही हैं। केन्द्र और राज्य सरकारें इन्हें देशी-विदेशी पर्यटकों को दिखाकर खजाना भरने में लगी हुई हैं लेकिन जब बारी इनकी हिफाजत की आती है तो जिम्मेदारी से भागने लगती हैं। सरकारी कमाई के मामले में ताजमहल का कोई सानी ही नहीं है। यूनैस्को से संरक्षित प्रेम की इस धरोहर से सर्वाधिक कमाई हो रही है। इससे होने वाली आय से न केन्द्र और न ही उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को कोई गुरेज है। इस मामले में भाजपा सरकारों की हालत ‘गुड़ खाए और गुलगुले से परहेज’ जैसी है। ताज से सीधी कमाई के अलावा उत्तर प्रदेश की अप्रत्यक्ष आय और रोजगार का एक बड़ा स्रोत ताजमहल ही है। विगत 3 वर्षों में ताज से सीधे 75 करोड़ से अधिक की आय हुई है। 

विदेशी पर्यटकों के पसंदीदा स्थलों में ताज के बाद पहले 5 स्थानों पर भी मुस्लिम शासकों की बनाई इमारतें रही हैं। इनमें आगरा का किला, कुतुबमीनार, फतेहपुर सीकरी, हुमायूं का मकबरा और दिल्ली का लाल किला शामिल हैं। इनसे होने वाली सरकारी कमाई भी सैंकड़ों-करोड़ों में है। मुस्लिम शासकों की बनाई इन एेतिहासिक इमारतों की कमाई खाने से किसी को परहेज नहीं है। वैसे इनके प्रतीकों को लेकर खूब राजनीति होती रही है। इन इमारतों की देखभाल के मामलों में सरकारों की हालत एेसे बेटों की तरह है जो जीवन भर पिता की कमाई खाते हैं और बुढ़ापे में उसे बेसहारा छोड़ देते हैं। लगता यही है कि सरकारों के लिए सिर्फ वोट बैंक ही सब कुछ है, बेशक ताजमहल क्यों न नेस्तोनाबूद हो जाए। 

यह निश्चित भी है कि यदि अदालतें हस्तक्षेप नहीं करतीं तो विश्व प्रसिद्ध मोहब्बत की यह इमारत अब तक दफन नहीं तो खंडहर में जरूर तबदील हो जाती। बढ़ते प्रदूषण और पर्यटकों का दबाव झेल रहे ताजमहल को बचाने की जब भी पहल की है, अदालत ने ही की है। सरकारें तो इसका इस्तेमाल दुधारू गाय की तरह ही करती रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1996 में ताज कॉरीडोर परिसर के 10 हजार 400 वर्ग किलोमीटर में प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों पर प्रतिबंध लगाया था। सरकारों ने इसे बचाने के कोई प्रयास नहीं किए। सवाल यही है कि कोरे वायदों और उपेक्षा से जिस दिन ये एेतिहासिक धरोहरें विलुप्त हो जाएंगी, तो क्या धर्म-संस्कृति की विविधता बची रह जाएगी। धर्म-संस्कृति क्या कागजों पर दिखाई जाने वाली चीज है? इनके विलुप्त होने की दशा में विश्व में हमारी स्थिति कितनी हास्यास्पद हो जाएगी।-योगेन्द्र योगी

Pardeep

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