विश्वास बहाली की जिम्मेदारी अब पेइचिंग पर
punjabkesari.in Wednesday, Nov 06, 2024 - 05:32 AM (IST)
प्रधानमंत्री मोदी के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए रवाना होने से एक दिन पहले, भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने उल्लेख किया कि ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) पर गश्त व्यवस्था पर एक समझौता हुआ है।’ उन्होंने बाद में कहा, ‘‘इसका मतलब यह होगा कि चर्चा के तहत लंबित क्षेत्रों में गश्त और वास्तव में चराई गतिविधियां, जहां भी लागू होंगी, 2020 की स्थिति में वापस आ जाएंगी।’’ विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर ने एक अलग मंच पर इसे दोहराया। चीन ने भी भारतीय घोषणा की पुष्टि की, हालांकि एक दिन बाद।
किसी भी पक्ष ने आगे कोई विवरण नहीं दिया। समझौते के पीछे का समय कजान में मोदी-शी शिखर सम्मेलन को सुविधाजनक बनाने के लिए था। पिछला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन भारत-चीन तनाव से प्रभावित था। भारतीय सैनिक अब देपसांग और डेमचोक दोनों में अपने दावे की रेखाओं तक पहुंच सकेंगे। हालांकि, अन्य क्षेत्र, जहां बफर जोन बनाए गए थे, इस समझौते का हिस्सा नहीं हैं। इन्हें बाद में संभाला जाएगा। भारत अपनी सभी दावा रेखाओं पर गश्त करने का अधिकार चाहता है। भविष्य में गश्ती दलों के बीच टकराव को रोकने के लिए दोनों पक्ष पहले से गश्त का विवरण सांझा करेंगे। यह समझौता किसी भी तरह से दोनों देशों के मौजूदा दावों को प्रभावित नहीं करता।
शी और मोदी ने अपनी टिप्पणियों में फिर से जुडऩे और संबंधों के पुनॢनर्माण की बात की, हालांकि दोनों देशों के अंतिम बयानों में मामूली अंतर थे। शी ने कहा, ‘‘यह दोनों देशों के मौलिक हितों में है कि वे इतिहास की प्रवृत्ति और अपने संबंधों के विकास की दिशा को सही ढंग से समझें।’’ मोदी ने जवाब दिया, ‘‘सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना प्राथमिकता होनी चाहिए’’ और ‘‘पारस्परिक विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता संबंधों का आधार होना चाहिए।’’
रूस ने निश्चित रूप से दोनों देशों को एक समझौते पर पहुंचने के लिए प्रेरित किया होगा। रूस का इरादा यह होगा कि यदि भारत और चीन सामान्य स्थिति स्थापित करते हैं और साथ ही विश्वास बहाल होता है, तो यह आर.आई.सी. (रूस, भारत, चीन) समूह को फिर से मजबूत करने के लिए दरवाजे खोल सकता है। एक साथ काम करने वाले तीन देश पश्चिम के लिए एक कठिन आर्थिक और कूटनीतिक चुनौती पेश कर सकते हैं। चीन अब ताइवान पर ध्यान केंद्रित कर सकता है और दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में विवादित तटों पर अपने दावों को आगे बढ़ा सकता है।
ये वे क्षेत्र हैं, जहां चीन हाल के दिनों में सबसे अधिक आक्रामक रहा है। अब तक चीन को इस बात की चिंता थी कि भारत ताइवान संघर्ष का फायदा उठा सकता है, अगर उसके अभियान ठप्प हो जाते हैं और मलक्का जलडमरूमध्य में भारतीय नौसेना की मजबूत उपस्थिति भी। एल.ए.सी. पर भारत की बढ़ती तैनाती ने पेइचिंग को सतर्क कर दिया था। चीन को पता है कि वह भारत के खिलाफ ‘ग्रे जोन’ युद्ध सफलतापूर्वक शुरू कर सकता है, लेकिन जमीनी अभियानों में जीत की संभावना नहीं है, क्योंकि भारतीय सशस्त्र बल अभी भी दुर्जेय हैं।
विलमिंगटन में हाल ही में संपन्न क्वाड शिखर सम्मेलन में, अमरीका ने स्वीकार किया कि यह भारत ही होगा जो हिंद महासागर में अग्रणी होगा। यह नई दिल्ली ही थी, जो चीन के प्रति सम्मान में क्वाड के सभी स्तरों को नेताओं के स्तर पर ले गई। लद्दाख में अतिक्रमण के कारण ही भारत ने अपना रुख बदला। भारत के लिए, पश्चिम से एफ.डी.आई. में कमी के साथ, चीन से आने वाले लोगों का स्वागत किया जाएगा। अंतत: दोनों को लाभ होगा- भारत को निवेश और प्रौद्योगिकी के साथ जबकि चीन को बाजार के साथ। उत्तर में तनाव में कमी, जिसमें अतिरिक्त सैनिकों की वापसी भी शामिल है, भारत के रक्षा राजस्व व्यय को कम करेगी। हालांकि, शांति सुनिश्चित करने के लिए भारत को हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने की आवश्यकता होगी, इसलिए क्षमता और बुनियादी ढांचे का विकास भी उसी गति से जारी रहेगा।
भविष्य में क्या संकेत हो सकते हैं? अभी यह कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन चीन का पीछे हटना इस बात की पुष्टि करता है कि उसका मुख्य उद्देश्य भारत नहीं, बल्कि ताइवान और दक्षिण तथा पूर्वी चीन सागर के तटीय क्षेत्र हैं। यह समझौता एल.ए.सी. पर सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है। इससे यह भी पता चलता है कि चीन का मानना है कि भारत एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी बना हुआ है। चीन के साथ विश्वास सबसे बड़ी बाधा है। यह चीन ही था जिसने लाल रेखा को पार किया, जिससे भारत को प्रतिक्रिया करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसलिए, विश्वास बहाली की जिम्मेदारी पेइचिंग पर है। -हर्ष काकर (लेखक भारतीय सेना के सेवानिवृत्त मेजर जनरल हैं।)