कोविंद समिति की रिपोर्ट ने आते ही दम तोड़ा
punjabkesari.in Sunday, Sep 22, 2024 - 05:44 AM (IST)
एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति के गठन में सरकार की असली मंशा संदर्भ की शर्तों (टी.ओ.आर.)से उजागर हुई। पहले टी.ओ.आर. में समिति से ‘एक साथ चुनाव कराने के लिए जांच करने और सिफारिशें करने के लिए कहा गया था।’ समिति का निहित जनादेश यह सिफारिश करना था कि लोकसभा और भारत के 28 राज्यों (और विधानसभाओं वाले केंद्र शासित प्रदेशों) के लिए एक साथ चुनाव संभव और वांछनीय हो। इसके पास एक साथ चुनाव कराने के विचार के खिलाफ सिफारिश करने का कोई जनादेश नहीं था। समिति ने ईमानदारी से जनादेश को पूरा किया।
कोई विद्वान निकाय नहीं : समिति की संरचना ने भी तथाकथित अध्ययन में पक्षपात को उजागर किया। अध्यक्ष और 8 सदस्यों में से केवल एक संवैधानिक विशेषज्ञ था। एक अन्य सदस्य संसदीय प्रक्रिया से अच्छी तरह वाकिफ था, लेकिन उसने कानून का अभ्यास या शिक्षण नहीं किया था। 2 राजनेता थे और एक नौकरशाह से राजनेता बना था। 3 आजीवन सिविल सेवक थे। रामनाथ कोविंद की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति एक अलंकरण थी और शायद इसका उद्देश्य समिति में गंभीरता जोडऩा था। समिति जो भी थी, वह निश्चित रूप से संवैधानिक विद्वानों का निकाय नहीं थी।जैसा कि व्यापक रूप से अपेक्षित था, समिति ने सिफारिश की कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव 5 साल में एक बार एक साथ होने चाहिएं। मेरी जानकारी के अनुसार, किसी भी बड़े, संघीय और लोकतांत्रिक देश में इसका कोई उदाहरण नहीं है।
तुलनात्मक माडल संयुक्त राज्य अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जर्मनी हैं। अमरीका में, प्रतिनिधि सभा के चुनाव 2 साल में एक बार होते हैं, राष्ट्रपति और राज्यपालों के पद के चुनाव 4 साल में एक बार होते हैं और यह एक साथ नहीं होते हैं। और सीनेट के चुनाव 3 द्विवार्षिक चक्रों में 6 साल में होते हैं। हाल ही में, जर्मनी के संघीय गणराज्य के 2 राज्यों थुरिंगिया और सैक्सोनी ने अपने स्वयं के चुनाव चक्र के अनुसार चुनाव आयोजित किए जो बुंडेस्टाग (राष्ट्रीय संसद) के चुनाव चक्र से अलग थे।
कोविंद समिति एक ऐसे विचार की खोज कर रही थी जो संघीय, संसदीय लोकतंत्र के विपरीत था। संसदीय लोकतंत्र में, निर्वाचित सरकार हर दिन लोगों के प्रतिनिधियों के प्रति उत्तरदायी होती है और कार्यपालिका के लिए कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता। संविधान सभा द्वारा राजनीतिक मॉडल के चयन पर बहस की गई थी। संविधान निर्माताओं ने राष्ट्रपति प्रणाली को निर्णायक रूप से अस्वीकार कर दिया और संसदीय प्रणाली को चुना क्योंकि उनका मानना था कि संसदीय प्रणाली भारत की विविधता के लिए अधिक उपयुक्त होगी।
सूत्र और फार्मूले : कोविंद समिति की रिपोर्ट के रहस्यमय बीज गणितीय सूत्रों और सरल कानूनी सूत्रों का मिश्रण है। समिति ने स्वीकार किया है कि एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी। नए अनुच्छेद 82ए, 83(3), 83(4), 172(3), 172(4), 324ए, 325(2) और 325(3) पेश किए जाएंगे और अनुच्छेद 327 में संशोधन किया जाएगा। इन नए प्रावधानों और संशोधनों का प्रभाव राज्य विधानसभा के कार्यकाल की समाप्ति तिथि को लोकसभा के कार्यकाल की समाप्ति तिथि के साथ समकालिक बनाना होगा। मान लीजिए कि नवंबर-दिसंबर 2024 में संवैधानिक संशोधन पारित हो जाते हैं (जैसा कि सरकार ने संकेत दिया है) और 2029 में एक साथ चुनाव निर्धारित हैं। 2025, 2026, 2027 और 2028 (कुल 24) में निर्वाचित होने वाली राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 1 से 4 वर्ष तक कम हो जाएगा!
कल्पना करें कि 2027 में केवल 2 वर्षों के लिए या 2028 में केवल एक वर्ष के लिए राज्य विधानसभा का चुनाव हो! राज्य के लोग और राजनीतिक दल ऐसे चुनाव को क्यों स्वीकार करेंगे? इससे भी बदतर, अगर चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा बनती है या अगर निर्वाचित राज्य सरकार विधानसभा में हार जाती है या अगर कोई मुख्यमंत्री इस्तीफा दे देता है और कोई भी बहुमत नहीं जुटा पाता है तो ऐसी स्थितियों में 5 साल के शेष कार्यकाल के लिए फिर से चुनाव होंगे जो कुछ महीनों के लिए भी हो सकते हैं! ऐसे चुनाव हास्यास्पद होंगे और केवल राजनीतिक दल या बहुत सारे पैसे वाले उम्मीदवार (याद रखें चुनावी बॉन्ड से समृद्ध दल) ही ऐसे चुनाव लड़ सकते हैं। सिफारिशें मुख्यमंत्री को अपने असंतुष्ट विधायकों को कम अवधि के लिए नए चुनाव की धमकी देकर नियंत्रण में रखने का एक तरीका देंगी।
कोई मुफ्त पास नहीं : कोविंद समिति की सिफारिशें इतिहास के विपरीत हैं। 1951 से 2021 के बीच 7 दशकों के चुनावों में, केवल 2 दशकों, 1981-1990 और 1991-2000 में अस्थिरता का दौर था। 1999 से उल्लेखनीय स्थिरता आई है। इसके अलावा, अधिकांश राज्य सरकारों/ विधानसभाओं ने 5 साल पूरे किए। अलग-अलग चुनावों ने आर्थिक विकास को प्रभावित नहीं किया। यू.पी.ए. ने 10 वर्षों में 7.5 प्रतिशत की औसत विकास दर हासिल की और एन.डी.ए. ने दावा किया है कि उसने अपने 10 वर्षों में बेहतर प्रदर्शन किया। कोविंद समिति ने गलत तरीके से मान लिया कि एन.डी.ए. सरकार संसद में संविधान संशोधन विधेयक पारित करने में सक्षम होगी। इसके विपरीत, विपक्ष आसानी से लोकसभा में 182 सांसद और राज्यसभा में 83 सांसद जुटाकर विधेयकों को हरा सकता है। एक राष्ट्र-एक चुनाव का उद्देश्य बहुलतावादी और विविधतापूर्ण देश पर एक नरेटिव थोपना है। मुझे उम्मीद है कि एक राष्ट्र-एक चुनाव आने पर ही खत्म हो जाएगा।-पी. चिदम्बरम