संविधान की प्रगतिशील भावना अंतत: जीतेगी

punjabkesari.in Sunday, Dec 22, 2024 - 05:28 AM (IST)

26 नवम्बर, 2024 को हमने भारत के संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ मनाई। संसद के दोनों सदनों ने दिनचर्या से हटकर 75 वर्षों के दौरान संविधान की यात्रा को याद करने के लिए 2-2 दिन समर्पित किए। अच्छे और बुरे भाषण तो थे, लेकिन कोई भी ऐसा उत्साहवर्धक भाषण नहीं था जिसे 75 साल बाद भी याद रखा जा सके, जैसे 14-15 अगस्त, 1947 को जवाहरलाल नेहरू का ‘ए ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ या 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में बाबासाहेब आंबेडकर का ‘जनता द्वारा सरकार’ था।  75 साल पहले, संविधान सभा के विचार-विमर्श के पीछे कांग्रेस पार्टी प्रेरक शक्ति थी। डा. आंबेडकर ने कांग्रेस को संविधान सभा में व्यवस्था और अनुशासन की भावना’ लाने वाला बताया था। आज कांग्रेस लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष की बैंच पर बैठती है। यह भाग्य का एक दर्दनाक परिवर्तन है, लेकिन अपरिवर्तनीय नहीं है। 

भाजपा का आपातकाल का जुनून: कांग्रेस विरोधी राजनीतिक संरचनाओं, खासकर भाजपा और दक्षिणपंथी तत्वों की कल्पना में, संविधान के साथ कांग्रेस का जुड़ाव जून 1975-मार्च 1977 के दौरान लागू आपातकाल और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के निलंबन से था। सच है, यह कांग्रेस के 139 साल के इतिहास में एक घिनौना अध्याय था, लेकिन इंदिरा गांधी ने माफी मांगी और कसम खाई कि आपातकाल कभी नहीं दोहराया जाएगा। लोगों ने उनकी माफी स्वीकार कर ली और उन्हें और कांग्रेस को 1980 में भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापस ला खड़ा किया। क्या संविधान के निर्माण और संविधान को मजबूत करने में कांग्रेस का कोई और जुड़ाव नहीं है? और वह प्रेरक कहानी शायद ही कभी सुनाई जाती है। संविधान का अनुच्छेद 368 संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है। मतलब कि किसी भी देश के संविधान में एक आवश्यक शक्ति क्योंकि राष्ट्र को नए खतरों और अवसरों का सामना करना पड़ता है क्योंकि संविधान की व्याख्या और पुनव्र्याख्या न्यायाधीशों द्वारा की जाती है जो मामले की सुनवाई करते हैं। संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जिसे राष्ट्र के बदलते जीवन के अनुकूल बनाना होता है।

संशोधनों ने संविधान को मजबूत किया : अगर मैं बहस में बोलता, तो मुझे कांग्रेस सरकारों द्वारा संविधान में किए गए कुछ संशोधन याद आते, जिन्होंने वास्तव में संविधान को मजबूत किया और संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उच्च लक्ष्यों को आगे बढ़ाया, विशेष रूप से न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) और समानता (स्थिति और अवसर की) के तौर पर। प्रथम संशोधन ने अनुच्छेद 31ए और अनुच्छेद 31बी को शामिल किया और दमनकारी, सामंती जमींदारी प्रथा के उन्मूलन का मार्ग प्रशस्त किया  और लाखों किसानों और खेत मजदूरों को मुक्ति दिलाई तथा भूमि सुधार और भूमि वितरण को सुगम बनाया। प्रथम संशोधन ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए नागरिकों को पूर्ण या आंशिक रूप से बहिष्कृत करते हुए कोई भी व्यापार, उद्योग, व्यवसाय या सेवा करने के लिए कानूनी आधार भी तैयार किया। संविधान (22वां संशोधन) अधिनियम, 1976 को संविधान में किए गए कई बदलावों के लिए बदनाम किया गया है। हालांकि, बहुत कम लोगों को याद होगा कि इसने 2 ऐसे बदलाव किए थे जिन्हें आने वाली पीढिय़ां याद रखेंगी। 

पहला था अनुच्छेद 39-ए को शामिल करना, जो समान न्याय सुनिश्चित करने के लिए राज्य को ‘नि:शुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने’ के लिए कानूनी रूप से बाध्य करता है। दूसरा अनुच्छेद 48-ए को शामिल करना था, जो राज्य के लिए ‘पर्यावरण’ की रक्षा और सुधार करना और जंगलों और वन्य जीवन की रक्षा करना अनिवार्य बनाता है। संविधान (92वां संशोधन) अधिनियम, 1985, जिसने संविधान की दसवीं अनुसूची को शामिल किया, आयाराम और गयाराम (दलबदल) की चिरस्थायी समस्या से निपटने का पहला प्रयास था। अफसोस की बात है कि इसमें निर्वाचित विधायकों की चालाकी या स्पीकर की मिलीभगत या न्यायालयों के भ्रमित फैसलों का अनुमान नहीं लगाया गया। दसवीं अनुसूची का उद्देश्य तभी पूरा होगा जब अनुसूची में फिर से संशोधन किया जाएगा। संविधान में सबसे दूरगामी संशोधन संविधान (70वां संशोधन) अधिनियम, 1992 और संविधान (74वां संशोधन) अधिनियम, 1992 थे, जिन्होंने पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिए अलग-अलग प्रावधान किए और लोकतंत्र को गहरा और मजबूत किया। 

लाखों महिलाओं और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को राजनीतिक मुख्यधारा में लाया गया और लोकतांत्रिक शक्ति का प्रयोग करने के लिए सशक्त बनाया गया। इतिहास में सत्ता के इतने बड़े पैमाने पर हस्तांतरण और पुनॢवतरण का कोई पिछला उदाहरण नहीं है। दोनों सदनों में बहस, दुर्भाग्य से, आरोप-प्रत्यारोप वाली थी। यह संविधान की 75 साल की यात्रा में एकमात्र विचलन पर केंद्रित थी जो वास्तव में गंभीर था। एक राष्ट्र-एक चुनाव और भाजपा द्वारा किए गए अन्य परिवर्तन इससे भी बदतर हैं। वे लोकतंत्र और संघवाद को कमजोर करने की धमकी देते हैं। हालांकि, मुझे विश्वास है कि संविधान की मजबूत रीढ़ और इसकी मजबूत और प्रगतिशील भावना अंतत: जीतेगी।-पी. चिदम्बरम


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