पंजाब की इंडस्ट्री के सामने ‘भूमिगत पानी’ की समस्या

Friday, Nov 06, 2020 - 02:58 AM (IST)

पूरे विश्व में इस समय पीने वाले पानी की कमी महसूस की जा रही है। संसार के 17 देश ऐसे हैं जहां पानी की बहुत अधिक कमी है। इन देशों में भारत 13वें स्थान पर है जबकि भारत में पूरी दुनिया की आबादी का एक चौथाई भाग रहता है अर्थात पूरी दुनिया की कुल आबादी का 25 प्रतिशत भाग भारत में रहता है। यह भी एक सच्चाई है कि देश में प्रति वर्ष बर्फ और वर्षा पडऩे के कारण पानी की कमी को काफी हद तक दूर किया जा सकता है परन्तु इस दिशा में अभी तक भारत के प्रयास विफल रहे हैं। 

यह बात स्पष्ट है कि पीने वाले पानी की अधिकतम खपत कृषि में ही होती है। दूसरे कामों में भी पानी का प्रयोग होता है परन्तु इस प्रयोग किए हुए पानी का शोधन करके इसे दोबारा प्रयोग में लाया जा सकता है। यह भी एक विडम्बना है कि हम अपने किसानों को सलाह अथवा ज्ञान देकर पानी की खपत को कम करवा सकने में विफल हुए हैं जबकि संसार में कई देशों ने ऐसा कर दिखाया है। देश में वर्ष 1990 तक उद्योगों को भी ऐसे चलाया जा रहा था जिससे देश की जी.डी.पी. की ग्रोथ बहुत कम स्तर पर टिकी हुई थी परन्तु 1991 में जब पी.वी. नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री और डाक्टर मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने तो उन्होंने देश की औद्योगिक नीतियों में बहुत ज्यादा परिवर्तन करके देश में आर्थिक सुधारों का सिलसिला शुरू करके जी.डी.पी. ग्रोथ को बढ़ाया था। इसी प्रकार कृषि क्षेत्र में भी 1991 जैसे सुधार लाने की आवश्यकता है, ताकि पानी की खपत में भारी कमी लाई जा सके। 

लगभग 20 साल पहले अमरीका ने अपने उपग्रह (सैटेलाइट) द्वारा यह पता लगाया था कि पंजाब में जमीन के पानी का स्तर बहुत तेजी से गिर रहा है। इसका मुख्य कारण पंजाब में धान की फसल की बिजाई है। हालात यहां तक पहुंच गए कि नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) ने उद्योगों को भी जमीन का पानी प्रयोग करने से मना कर दिया। इससे उद्योगों के सामने  एक बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है। एपैक्स चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री (पंजाब) की ओर से व्यापक तथ्यों के आधार पर केंद्र सरकार की  ‘सैंट्रल ग्राऊंड वाटर अथारिटी’ को अनेक पत्र लिखे, परन्तु एन.जी.टी. और ‘सैंट्रल ग्राऊंड वाटर अथारिटी’ (सी.जी.डब्ल्यू.ए.) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। 

लेकिन यह मामला ऐसा है जिसको अनिश्चित काल तक लटकाया नहीं जा सकता था क्योंकि इससे इंडस्ट्री का बहुत ज्यादा नुक्सान हो सकता था। इंडस्ट्री का तो पहले ही कोविड-19 अर्थात कोरोना वायरस के कारण बहुत ज्यादा नुक्सान हो चुका है। एपैक्स चैंबर की ओर से अगस्त में 15 पेज का एक पत्र प्रधानमंत्री सहित सभी संबंधित अथारिटीज को भेजा गया। इस पत्र में संबंधित सभी तर्क पेश किए गए। अब केंद्र सरकार ने 24 अगस्त, 2020 को एक विस्तृत नोटिफिकेशन जारी कर छोटे उद्योगों अर्थात ‘माइक्रो व स्माल’ को किसानों के बराबर मानकर जमीन का पानी निकालने की छूट प्रदान कर दी है। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि जमीन से पानी निकालने के लिए उन्हें अनापत्ति प्रमाण पत्र (एन.ओ.सी.) भी लेने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा नोटिफिकेशन ने इंडस्ट्री (एस.एस. एम.ई.) के मध्यम (मीडियम) वर्ग को भी एन.ओ.सी. लेने के लिए रास्ता खोल दिया है। 

एपैक्स चैंबर के पत्र में सबसे दिलचस्प बात यह है कि कृषि क्षेत्र, जिस पर देश की लगभग आधी जनसंख्या (50-60) निर्भर करती है, में खेती के काम के लिए तो थोड़ी संख्या से भी काम चलाया जा सकता है और बाकी संख्या को दूसरे कामों में लगाया जा सकता है और उनको रोजगार केवल उद्योगों द्वारा ही प्रदान किए जा सकते हैं। अब एक बड़ी समस्या और खड़ी हो गई है, वह है पानी निकालने पर लगने वाले चार्जेस (शुल्क) की। सरकार ने उद्योगों पर जमीनी पानी निकालने के लिए जो चार्जेस लगाए हैं, वे बहुत ज्यादा हैं और इनको उद्योग सहन नहीं कर सकता। 

चार्जेस के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पंजाब में जो मुफ्त बिजली, पानी का प्रावधान है उसका  अधिकतर भार उद्योग ही उठा रहे हैं। किसानों द्वारा प्रयोग किए पानी का भार तथा उद्योगों (अपने) द्वारा प्रयोग किए पानी का भार, इन दोनों को मिलाकर देखें तो पंजाब का उद्योग तो चल ही नहीं सकता क्योंकि इसके साथ-साथ और भी कई बातें जुड़ी हुई हैं। पंजाब के उद्योगों को कच्चा माल बाहर से आता है तथा तैयार माल भी पंजाब से बाहर जाता है और माल तैयार करने के लिए लेबर भी पंजाब के बाहर से आती है। आज के संदर्भ में देखा जाए तो वही उद्योग सफलता से चल रहे हैं जो बंदरगाहों के नजदीक लगे हुए हैं। पंजाब के उद्योगों पर तो भाड़े (किराए) का बहुत भारी बोझ पड़ता है, जिससे तैयार माल महंगा हो जाता है और महंगा माल बेचने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 

भारत के कई प्रदेशों में जमीनी पानी निकालने पर कोई शुल्क नहीं लिया जाता। देश की राजधानी दिल्ली में दिल्ली सरकार द्वारा पानी के मुद्दे को सियासी मुद्दा बनाया जा रहा है। वहां भी जमीनी पानी निकालने को मुफ्त किया जा रहा है। इस संदर्भ में यही उचित है कि देश में जमीनी पानी निकालने पर कुछ चार्जेस जरूर लगने चाहिएं। पानी की सप्लाई मुफ्त नहीं होनी चाहिए परन्तु चार्जेस इतने होने चाहिएं जो पानी प्रयोग करने वालों की पहुंच में हों।-पी.डी. शर्मा
 

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