लाल किले से प्रधानमंत्री ने दिए गहरे संकेत

punjabkesari.in Saturday, Aug 17, 2024 - 05:25 AM (IST)

जश्न -ए-आजादी यानी देश के सबसे बड़े दिन पर सबसे बड़े मंच लाल किले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बार कुछ बहुत बड़ी बातें कहीं। इतना तो जतला दिया कि भले ही वह सहयोगियों के समर्थन से सरकार के मुखिया हैं लेकिन इतने भी कमजोर नहीं जितना समझाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने न केवल अपने विरोधियों पर करारा वार किया बल्कि समर्थकों को बता दिया कि उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं। 

नरेन्द्र मोदी ने कम्युनल सिविल कोड की जगह सैकुलर सिविल कोड की जरूरत बता एक बारगी सबको चौंकाया। उन्होंने सरकार के दोनों खास सहयोगियों को भी हैरान किया होगा जो हमेशा धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर रहे। उनका कहना कि जो कानून देश को धर्म के आधार पर बांटते हैं और ऊंच-नीच का कारण बनते हैं उनका आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता। समय की मांग है कि अब एक सैकुलर सिविल कोड हो। अब इस पर नया कुछ क्या होगा देखने लायक होगा। हालांकि अब तक भाजपा यूनीफॉर्म सिविल कोड की ही बात करती रही है।

कुछ राज्यों ने तो आगे आकर समर्थन भी किया। सैकुलर सिविल कोड पर नई बहस तय है। इतना ही नहीं वन नेशन वन इलैक्शन की बात फिर दोहराई। हालांकि वर्ष 1952 में पहला आम चुनाव हुआ और 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए। यह सिलसिला 1957 में 5 अप्रैल को केरल में टूटा जब देश के पहले गैर कांग्रेसी एलमकुलम मनक्कल शंकरन यानी ई.एम.एस. नंबूदरीपाद मुख्यमंत्री बने। उनकी सरकार को तत्कालीन केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति शासन लगाकर न केवल हटा दिया बल्कि वहां दोबारा 1960 में विधानसभा चुनाव हुए। तभी से अलग-अलग कारणों से कई राज्यों की सरकारों को गिराने का सिलसिला भी शुरू हुआ और टूटता गया। 

वन नेशन वन इलैक्शन पर पहले भी कई तर्क-वितर्क हो चुके हैं। ढेरों विविधताओं से भरे इस देश में कैसे एक साथ सारे चुनाव संभव होंगे, देखने लायक होगा। इससे इलैक्शन के खर्चों में कमी जरूर आएगी और आचार संहिता के चलते विकास कार्यों में रोक भी नहीं लगेगी। सभी राज्यों की विधानसभा भंग कर एक साथ चुनाव कराने की बात कैसे बनेगी? फिलहाल यह एक मॉडल के रूप में जरूर लुभाता है लेकिन व्यावहारिक कितना होगा नहीं पता। लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने न्यायिक सुधार की बातें भी बड़ी बेबाकी से रखीं वह भी तब जबकि उनके ठीक सामने मेहमानों की कतार में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी बैठे थे। सबको याद है कि 2014 में बहुमत में आते ही मोदी सरकार द्वारा संसद से पारित नैशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमैंट्स कमीशन एक्ट यानी एन.जे.ए.सी. को सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार देते हुए रद्द किया और कहा कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया कॉलेजियम सिस्टम से होगी।

1993 में न्यायिक नियुक्तियों को लेकर नई व्यवस्था देकर सर्वोच्च न्यायालय ने कलैक्टिव विजडम के तहत कॉलेजियम प्रणाली बनाई थी। ‘एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ’ मामले में आए ऐतिहासिक फैसले से भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता को एक नई दिशा मिली। इससे पहले, न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका प्रमुख होती थी जिसमें राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति होती थी। कॉलेजियम सिस्टम में मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीश सामूहिक रूप से हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति और प्रोमोशन का निर्णय लेते हैं। मोदी ने एक और बड़ी बात कही जिसमें एक लाख ऐसे नौजवानों को देश भर में जनप्रतिनिधि के रूप में आगे लाने की है, जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं हो। अब पक्ष-विपक्ष इसके क्या मायने निकालेगा इसका इंतजार है। लेकिन जिस बेबाकी से बातें कीं उसके परिणाम दूरगामी जरूर होंगे। 

सरकार के खास सहयोगी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के पुत्र नारा लोकेश खुद अपने पिता के मंत्रिमण्डल में तीसरे क्रम पर शपथ लेने वाले मंत्री हैं। वहीं भाजपा और कई उसके समर्थक तमाम जनप्रतिनिधि पारिवारिक पृष्ठ भूमि के चलते बड़े-बड़े पदों पर बैठे हुए हैं। महिला अपराधों पर भी प्रधानमंत्री की जायज चिंता सामने आई। बलात्कार की घटनाओं का मीडिया में छाए रहना लेकिन ऐसे अपराधियों को मिली सजा पर समाचार न बनने पर अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए इसे भी उतना ही स्थान देने की वकालत की। महिलाओं की भागीदारी और नेतृत्व बढ़ रहा है लेकिन लगातार अत्याचार होना चिंताजनक है। 11वीं बार लाल किले की प्राचीर से 100 मिनट के अब तक के सबसे लंबे भाषण में प्रधानमंत्री की भ्रष्टाचार के दीमक पर पीड़ा झलकी। भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी जंग को दोहराना बड़ा इशारा है। राजनीतिक हलकों में इस भाषण पर चाहे जो भी किन्तु-परन्तु निकलें लेकिन उन्होंने अपने 2047 के सपने जरूर जाहिर कर दिए जिसमें आम लोगों के जीवन में सरकारी दखल कम हो। काश ऐसा हो पाता तो सारा कुछ वाकई आसान हो जाता और 2047 से पहले ही भारत विकसित हो जाता। कितना अच्छा होगा जब देश में राजनीति कम लोकनीति ज्यादा दिखे ताकि भारत एक बार फिर सोने की चिडिय़ा बन जाए।-ऋतुपर्ण दवे
 


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