‘अपनों के बीच पराए’ ये वृद्धजन

Saturday, Oct 14, 2017 - 02:11 AM (IST)

जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर वृद्धों को न तो माल व दौलत की और न किसी ऐशो आराम के सामान की चाहत होती है। वे तो प्यार, इज्जत, मान, हमदर्दी ही अपनों से चाहते हैं। जब उनको यह परिवार के बेटों और अन्य सदस्यों से नहीं मिल पाता तब घर के मालिक घर का सभी प्रकार का खर्च चलाने वाले बूढ़े जिंदगी के दिन गुजारने के लिए वृद्धाश्रम (होम फार एज्ड) का सहारा लेने को मजबूर हो जाते हैं। 

अखबारों में छपी एक खबर के अनुसार दिल्ली की एक अदालत में एक लाचार वृद्ध पिता ने अपने ही बेटों के विरुद्ध गुजारा भत्ता या उसके खरीदे हुए मकान का कब्जा उसे दिलाने की अपील की। यह कोई अकेला उदाहरण नहीं है। आर्थिक विकास की उड़ान भरता विकास अपने साथ कुछ दुखदायी परिवर्तन भी लाया है। इनमें घर के बुजुर्गों की अनदेखी, उनकी परवरिश, देखभाल मुनासिब ढंग से न हो पाना भारी समस्या है। पुराने जमाने में देश के लोगों की औसत उम्र लगभग 30 वर्ष हुआ करती थी जबकि आजकल आर्थिक सुधार, उत्तम स्वास्थ्य सेवाओं, पोषक आहार के कारण हमारी औसत उम्र में इजाफा हुआ है। पहले से अब आयु दोगुनी हो गई है और मृत्यु दर में आश्चर्यजनक कमी आई है।

वृद्धों की जनसंख्या के अनुसार भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। वल्र्ड हैल्थ आर्गेनाइजेशन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने जिस मुद्दे पर ध्यान दिलाया है वह है दुव्र्यवहार, गाली-गलौच, मारपीट, नजरंदाजी जो घर के बुजुर्गों से उनकी अपनी ही संतानों खास तौर पर बच्चों की तरफ से की जा रही है। अपनों से ही मिल रहे अपमान से वे बुढ़ापे को एक लाइलाज बीमारी मानने लग गए हैं। भारत में लगभग 10 प्रतिशत आबादी के पास रिटायरमैंट के बाद किसी न किसी शक्ल में आय के साधन हैं। शेष वृद्धों को अपनी संतानों पर निर्भर रहना पड़ता है। अपनी इस जिम्मेदारी को क्या उनकी संतानें निभा रही हैं ऐसा तो नहीं लगता। वृद्ध लोग संतान से दुखी हैं और संतान वृद्धों से। 

इन दुखदायी परिस्थितियों के दृष्टिगत जम्मू के एक रिटायर्ड हैडमास्टर श्री रामनाथ प्रभाकर ने ‘अम्ब फलां जम्मू’ में 1964 में एक कमरे में वृद्धाश्रम शुरू किया था। 21 वर्ष गुजरने के बाद राज्य सरकार ने वृद्धाश्रम में जीवन के दिन गुजार रहे वृद्धों के भोजन, इलाज और जीवनोपयोगी वस्तुओं के लिए प्रति व्यक्ति 5 रुपए  रोजाना ग्रांट इन एड जारी करके हातिम ताई की कब्र पर लात मार दी। वृद्धाश्रम के मैनेजमैंट कमेटी के मैनेजर का मासिक वेतन 500 रुपए, अकाऊंटैंट 300 रुपए, क्लर्क कम स्टोरकीपर 200 रुपए, चपड़ासी 200 रुपए, रसोइया 200 रुपए मासिक नियत किया गया था। इसके अनुसार जम्मू-कश्मीर सरकार का समाज कल्याण विभाग ग्रांट इन एड के तौर पर 2013 तक यह सहायता देता रहा जबकि एक कमरे वाला वृद्धाश्रम बहुमंजिली बिल्डिंग का रूप धारण कर चुका था जिसमें जनसहयोग से 60 कमरे, हर प्रकार के रहने का सामान के साथ अन्य हर तरह की सुविधाएं मौजूद हैं।

लगभग 100 वृद्धों के आराम से जीवन गुजारने का साधन अम्ब फलां का यह वृद्धाश्रम है। इस अवधि के दौरान जम्मू-कश्मीर के राज्यपालों ने, राज्य के उपमुख्यमंत्री, एम.पी., मंत्रियों और राज्य के ऊंचे पदाधिकारियों ने वृद्धाश्रम अम्ब फलां जम्मू में आकर अपने-अपने रिमाक्र्स में प्रबंधन की भरपूर सराहना की। इस संबंध में विकलांग छात्र ट्रस्ट (एक विकलांग द्वारा स्थापित स्वयंसेवी संस्था) के सचिव डा. वी.एस. वर्मा (पी.एचडी.) ने वृद्धाश्रम अम्ब फलां जम्मू का निरीक्षण करके तमाम परिस्थितियों का अध्ययन व उनकी कठिनाइयों के बारे में एक लेख लिखा जिसको दैनिक एक्सैल्सियर में अपने अंक में उचित स्थान दिया। 

उपरोक्त ट्रस्ट के संस्थापक  सत्यपाल सर्राफ ने इस आर्टीकल की कापी चीफ जस्टिस हाईकोर्ट जम्मू-कश्मीर की सेवा में भेज दी जिसको पी.आई.एल. मानते हुए हाईकोर्ट की डिवीजनल बैंच की तरफ से वृद्धाश्रम अम्ब फलां जम्मू को 5 लाख रुपए ग्रांट इन एड दिए जाने का सरकार के नाम आदेश जारी किया गया और कहा गया कि वृद्धों की सेहत, इलाज और हर तरह की वांछित दवाइयों का प्रबंध करें। डाक्टरों की टीम सप्ताह में दो बार वृद्धाश्रम के रोगियों की जांच और उचित इलाज करे। ऊधमपुर के वृद्धाश्रम को उनकी ग्रांट इन एड की शेष राशि फौरन अदा करने का आदेश भी दिया। 

हाईकोर्ट जम्मू-कश्मीर की ओर से इस केस में जम्मू कश्मीर के हर जिले में बेसहारा वृद्धों के आवास के लिए एक-एक वृद्धाश्रम सरकारी खर्च पर और जम्मू-कश्मीर प्रांत में 16 कनाल भूमि उपलब्ध करा कर मल्टीपर्पज होम्स बनाए जाने का आदेश दिया गया। इस प्रदेश के लिए जम्मू जिले के कोट भलवाल में 16 कनाल भूमि एक्वायर करवा दी गई है। कुछ फंड भी अलाट हो चुके हैं।

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