शहरी ताने-बाने को बेहतर और संवेदनशील बनाने की जरूरत

punjabkesari.in Tuesday, Sep 27, 2022 - 05:23 AM (IST)

दिल्ली एन.सी.आर. में भारी बारिश के एक दिन बाद ही पानी से भरी सड़कें, रेंगते यातायात, टूटे वाहन और घुटनों तक गहरे पानी में चलने वाले नागरिक जैसे परिचित दृश्य देखने को मिले। बिजली की कटौती, ढहती दीवारें और बिजली के झटके के कारण लोगों की मौत हुई। दो हफ्ते पहले, बेंगलुरु की 126 झीलें उफान पर थीं, इससे वहां महादेवपुरा, बेलंदूर, बोम्मनहल्ली, मुन्नेकोलालु आदि इलाकों में जलजमाव की स्थिति थी।

आलम यह है कि 2,000 से अधिक घरों में बाढ़ का पानी आया था, तकरीबन 10,000 घर अलग-थलग पड़ गए। पॉश इलाकों सहित कई जगहों में लोगों को पेयजल और बिजली की समस्या का सामना करना पड़ा। हर तरफ ऐसा मंजर है, जैसे निजी संपत्ति को बट्टे खाते में डाल दिया गया है। इस तरह की दुखद स्थिति शहरी नियोजन की कमियों की तरफ इशारा करती है। नालियों की बेहतर निकासी क्षमता की कमी और झीलों व नदियों पर ध्यान न देने के साथ शहरी स्थानों को कंक्रीट में बदलने का जोर हर तरफ दिखाई देता है।

सैंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमैंट के अनुसार, बेंगलुरु जैसे शहर ने ईज ऑफ लिविंग इंडैक्स 2020 में क्वालिटी ऑफ लाइफ मैट्रिक के तहत 100 में से 55.67 स्कोर किया। दिल्ली जैसा शहर राजधानी होने के बावजूद इंडैक्स में 57.56 तक पहुंचा, जबकि भुवनेश्वर जैसे शहर का स्कोर सिर्फ 11.57 था। पैरिस ने अपनी कोशिश ‘15 मिनट सिटी’ के तौर पर आगे बढ़ाई है। यह विचार काफी सरल है। इसके तहत प्रत्येक पैरिसवासी को अपनी खरीदारी, कामकाज, मनोरंजक गतिविधियों के साथ और अपनी सांस्कृतिक जरूरतों को 15 मिनट की पैदल या बाइक की सवारी के भीतर पूरा करने में सक्षम होना चाहिए।

इस सक्षमता का मतलब यह होगा कि वाहनों की आवाजाही की संख्या काफी कम हो जाएगी। इस दिशा में अगला कदम कारों और अन्य वाहनों की बजाय पैदल चलने वालों के लिए शहर की योजना होगा। यह दृष्टिकोण राजमार्गों को चौड़ा करने की बजाय पैदल चलने वालों के रास्ते को चौड़ा करने के लिए प्रेरित करेगा। प्रत्येक भारतीय शहर में आदर्श रूप से एक मास्टर प्लान होना चाहिए, एक रणनीतिक शहरी नियोजन दस्तावेज, जिसे एक-दो दशक के अंतराल पर अद्यतन किया जाए।

इस तरह की योजनाओं में गरीबी के कारण होने वाले विस्थापन पर ध्यान के साथ, किफायती आवास पर ध्यान जरूरी है। देश में शहरी भूमि उपयोग को बेहतर करने की जरूरत है। किसी भी मैपिंग प्लेटफॉर्म पर सैटेलाइट मैप इमेजरी को देखकर साफ लगता है कि देश का शहरी विकास अनौपचारिक, अनियोजित और विशाल पड़ोस के साथ खासा बेतरतीब है। मुंबई में लगभग 1/4 भूमि सार्वजनिक स्थान है, जबकि आधी से अधिक भूमि केवल इमारतों के चारों ओर कम उपयोग की गई जगह है, जो दीवारों से घिरी हुई है और सार्वजनिक पहुंच से दूर है।

इस तरह के निजी खुले स्थान यदि उपलब्ध हों, तो मुंबई जैसे शहरों को सार्वजनिक भूमि उपलब्धता में वैश्विक स्तर पर एम्स्टर्डम व बाॢसलोना सरीखे बैंचमार्क शहरों के स्तर तक पहुंचने में मदद मिलेगी। कई शहरी विशेषज्ञ तकनीकी समाधानों का हवाला देते हैं। इसके तहत समुद्री दीवारों, नदी तटबंधों और सुधारों की शृंखला का सुझाव दिया गया है। बताया गया है कि ऐसे कदमों से हम अपने शहरों को ऐसी संभावित आपदाओं से बचा सकते हैं। लेकिन इस तरह के संरचनात्मक कदम हर जगह आॢथक और पर्यावरणीय लिहाज से मुफीद नहीं बैठेंगे।

भारत के शहरों को अपनी प्राकृतिक तट-रेखाओं और नदी के मैदानों की रक्षा करके, अतिक्रमणों को हटा कर भूमि पर बोझ कम करना शुरू करने की आवश्यकता है। हमें यह भी देखना होगा कि कहीं स्टॉर्म ड्रेन का विस्तार तेजी से शहरी नीति का उपकरण न बन जाए। बहरहाल, सभी चल रही और भावी शहरी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर  जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य से पुनॢवचार करने की आवश्यकता होगी।

ऐसे में यह सवाल दिलचस्प है कि क्या समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होने पर मुंबई में तटीय सड़क के लिए चल रहे कार्य का कोई मतलब रह जाएगा? देश में शहरी विकास को लेकर संस्थागत ढांचे को सुदृढ़ और विकसित करना दरकार है। टाऊन प्लानिंग एंड आर्किटैक्चर के क्षेत्र में शिक्षा से जुड़ी विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को आदर्श रूप से 2031 तक 3,00,000 टाऊन और कंट्री प्लानर्स की आवश्यकता होगी, जबकि वर्तमान में केवल 5,000 टाऊन प्लानर ही हैं।

हमारे शहरी नीति निर्माताओं को समझना होगा कि कांच की इमारतों या ग्रेनाइट का उपयोग हमेशा उपयुक्त नहीं हो सकता। दरअसल, हम संगठित निजी संपत्ति द्वारा संचालित शहरी परिदृश्य बना रहे हैं और इस चक्कर में हम अपने शहरों को और अधिक मानवीय बनाना भूल गए हैं। आज दरकार इस बात की है कि हम अपने शहरी परिदृश्य का पुनॢनर्माण करते हुए एक नए प्रकार का भारतीय नागरिक संस्कार गढ़ें, जो जातिगत पूर्वाग्रहों और छोटी-छोटी प्रतिद्वंद्विता से अप्रभावी रहते हुए शहरी ताने-बाने को बेहतर और संवेदनशील शक्ल दे।-वरुण गांधी


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