टीकाखरीदी का पूर्ण राष्ट्रीयकरण जरूरी

Wednesday, Jun 09, 2021 - 04:58 AM (IST)

45 साल से बड़ों की तर्ज पर अब 18 साल से ऊपर सभी देशवासियों को कोरोना का मु त टीका लगाने की प्रधानमंत्री की घोषणा स्वागतयोग्य है। इस मामले में अनेक राजनीतिक विवाद हुए और सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से अनेक सवाल पूछे थे। संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत बराबरी और अनुच्छेद 21 के तहत लोगों को स्वास्थ्य  यानी टीकाकरण का अधिकार है। इसके मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने सतत टिप्पणी करते हुए कहा था कि केंद्र और राज्य में वैक्सीन की दो कीमतें होना कानूनन ठीक नहीं है। 

जजों ने दूसरा सवाल करते हुए कहा था कि 45 साल से बड़ी उम्र के लोगों की तर्ज पर 18 से 44 साल के लोगों को भी मु त टीका क्यों नहीं मिलना चाहिए? प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद पुराने कानूनी और राजनीतिक विवाद भले ही कम हो जाएं लेकिन आगे चलकर सरकार को कई व्यावहारिक अड़चनों के साथ कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भारत में अभी तक कुल 23 करोड़ लोगों को टीके लगे हैं जिनमें सिर्फ 4.48 करोड़ लोगों को टीके की दोनों डोज मिली हैं।

वैज्ञानिकों ने तीसरी लहर का जो अनुमान लगाया है, यदि वह सही साबित हुआ तो भारत को बहुत जल्द टीकों की 175 करोड़ डोज की जरूरत होगी। तीसरी लहर के आसन्न खतरे को देखते हुए अब बच्चों के टीके का भारत में ट्रायल शुरू हो गया है। 18 साल से ऊपर वालों को केंद्र सरकार द्वारा फ्री टीकाकरण के बाद आगे चलकर 18 साल से कम उम्र के बच्चों के टीके की फंङ्क्षडग भी केंद्र्र सरकार को करनी होगी। 

इन चुनौतियों के  बीच अच्छी खबर यह  है कि हैदराबाद की एक कंपनी क्रांतिकारी प्रयोग से नए टीके का निर्माण कर रही है, जिसकी कीमत केवल 30 से 50 रुपए होगी। केंद्र सरकार ने 30 करोड़ टीकों के लिए उस कंपनी को 1500 करोड़ की एडवांस पेमैंट भी कर दी है। यदि यह प्रयोग सफल हो गया तो फिर भारत में टीकों की कमी नहीं रहेगी और विदेशी कंपनियों की घुड़कियों से छुटकारा भी मिलेगा। 

टीकों का उत्पादन और आयात :  भारत में फिलहाल कोविशील्ड और कोवैक्सीन के दो टीके लग रहे हैं, जिनमें भारत बायोटैक और आई.सी.एम.आर. की कोवैक्सीन ही स्वदेशी हैं। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद सरकार द्वारा इन दोनों क पनियों से 44 करोड़ टीकों की खुराक की खरीदी के लिए 30 प्रतिशत अग्रिम भुगतान करने का समाचार आया है।

सरकार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेटैंट नियमों में ढील देकर टीकों की आपूर्ति बढ़ाने का प्रयास कर रही है, उस फॉर्मूले का अभी तक भारत में प्रभावी इस्तेमाल नहीं करना हैरान करने वाला है। भारत के पेटैंट कानून में ढील देकर यदि कोवैक्सीन के फार्मूले से अन्य कंपनियों को टीके बनाने की इजाजत मिले तो सस्ती दरों के साथ ज्यादा मात्रा में जल्द ही टीकों की सप्लाई बढ़ सकती है। 

स्वदेशी टीकों के साथ विदेशों से टीकों का आयात करना अब मजबूरी हो गया है। संघीय व्यवस्था में निर्णय में विल ब और कन् यूजन से भारी मुनाफा कमाने के लिए बेताब विदेशी कंपनियां कई तरह के नखरे दिखा रही हैं। मनमाने रेट के साथ फाइजर जैसी अमरीकी कंपनियां  भारत में किसी भी कानूनी जवाबदेही से बचना चाहती हैं। उनका कहना है कि टीकों के दुष्प्रभाव के लिए उन पर कोई कानूनी जि मेदारी नहीं बने। 

टीकों के मामलों में कोई भी मुकद्दमा अमरीका और यूरोप की अदालतों में ही चले। यदि विदेश की किसी भी कंपनी की शर्तों के आगे सरकार ने घुटने टेक दिए तो फिर भारत की कंपनियां भी ऐसी शर्तों पर जोर देंगी। भारत में 18 साल से ऊपर वाले लगभग एक अरब लोगों का टीकाकरण होना है। सवाल यह है कि क्या विदेशी कंपनियों को भारत के कानून से बाहर रखने की छूट का निर्णय आम जनता की तरफ से सरकार ले सकती है? 

पूरे देश में समान दाम के लिए टीकाखरीदी का राष्ट्रीयकरण हो : प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद अब टीकाकरण की नई सरकारी नीति बनेगी जिसका 21 जून योग दिवस से क्रियान्वयन शुरू होगा। प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार केंद्र  सरकार अब राज्यों के हिस्से का 25 फीसदी कोटा यानी कुल 75 फीसदी टीके सीधे खरीदेगी।

बकाया 25 फीसदी टीके  निजी अस्पताल खरीद सकेंगे। निजी अस्पतालों की खरीद दर का निर्धारण नहीं हुआ है लेकिन वे अधिकतम 150 रुपए का सर्विस चार्ज ले सकेंगे। सवाल यह है कि क्या निजी अस्पताल अमीर क्लाइंट्स और प्राइवेट सैक्टर के लिए टीकाकरण का कार्यक्रम चलाएंगे। तुरंत और ज्यादा पेमैंट देने की क्षमता होने के कारण निजी अस्पतालों को टीकों की जल्द और ज्यादा आपूर्ति होगी। 

ग्रेटर नोएडा की सोसायटी के हालिया मामले से साफ है कि आगे चलकर सरकारी आपूर्ति से निजी अस्पतालों को टीका ब्लैक होने के खतरे बढ़ गए हैं। जिस तरह से केंद्र और राज्य का वर्गीकरण खत्म हो गया है उसी तर्ज पर अब निजी अस्पतालों का वर्गीकरण खत्म करके टीका खरीदी का राष्ट्रीयकरण किया जाए तो टीका कंपनियों की मनमानी से राहत मिलेगी। पंजाब की तर्ज पर निजी अस्पतालों को महंगी दरों पर टीके की सरकारी आपूर्ति पर अब संस्थागत विचार होना चाहिए। इससे पूरे देश में टीके के समान वितरण के साथ सरकारी राजस्व में वृद्धि होगी। 

प्रधानमंत्री की घोषणा को अगर सही अर्थों में देखा जाए तो अब टीकों के मद पर राज्यों को कोई खर्च नहीं करना होगा और यह पूरी तरह से केन्द्रीय योजना होगी। लेकिन संविधान की 7वीं अनुसूची के अनुसार स्वास्थ्य राज्यों का विषय है। इसलिए टीकाकरण कार्यक्रम का क्रियान्वयन राज्य सरकारों के मार्फत ही हो सकेगा। टीकाकरण में अनेक वर्गों को प्राथमिकता देने का निर्णय भी जिला और राज्य स्तर पर ही किया जा सकता है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 

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