पर्यावरण संरक्षण के प्रति दृढ़ है राष्ट्र

Saturday, Jun 05, 2021 - 04:56 AM (IST)

मानव प्रकृति की गोद में पैदा हुआ है। मानव स यताएं नदियों के किनारों पर ही विकसित हुईं और मानव-प्रकृति के इस सह-संबंध ने विकास की वह नींव रखी जिस पर हम आज जगमगाती आधुनिक दुनिया को देखते हैं। 

प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान, उसका संतुलन और मानव के साथ साम्य ही है जो हमें एक स्वस्थ, सुरक्षित और समृद्ध जीवन प्रदान करता है। यह सा य जब भी गड़बड़ाता है, संतुलन जब भी ऊपर-नीचे होता है, तो प्रकृति का प्रकोप मानव को झेलना ही पड़ता है। फिर वह चाहे ग्लोबल वार्मिंग जैसा खतरा हो या कोविड-19 जैसी महामारी के रूप में सामने आया संकट हो। इन सभी के मूल में कहीं न कहीं प्रकृति के साथ किए गए खिलवाड़ ही हैं। 

भारतीय संस्कृति और हमारे जीवन मूल्यों से हमेशा से प्रकृति के साथ सौहार्द बनाने पर बल दिया गया है। हमारी संस्कृति में धरती, वृक्ष, नदी, पर्वत, पशु-पक्षी इसलिए पूज्य हैं,क्योंकि इन्हीं के अस्तित्व पर हमारा भविष्य टिका है और प्रकृति से हमारी सांस्कृतिक निकटता के कारण ही हम वैश्विक स्तर पर पैदा हो रही पर्यावरणीय चुनौतियों के मामले में अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित हैं। हम अपनी आवश्यकता से अधिक का दोहन न करें तो संतुलन बना रहेगा।

वेदों में एक ऐसी ही प्रार्थना की गई है। प्रदूषण के कारण मैली हो चुकी मां गंगा को पुनर्जीवित करने का माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का कृत संकल्प-नमामि गंगे मिशन के रूप में आज हम सभी के सामने है और आज हम फिर से मां गंगा के कल-कल करते अमृत जल को देख पा रहे हैं। 

राष्ट्र गौरव माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को पर्यावरण की दिशा में किए गए इन्हीं महान कार्यों के कारण संयुक्त राष्ट्र महासंघ द्वारा वर्ष 2018 में चैपियन्स आफ द अर्थ अवार्ड से स मानित किया गया। मोदी जी का यह स मान देश के जन-जन का स मान है जो उनके मागदर्शन में हमारी धरा को बचाने के लिए कृत संकल्पित हैं। जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में भारत की सक्रिय भूमिका को भी संयुक्त राष्ट्र संघ से मान्यता मिली है। 

जलवायु परिवर्तन को दृष्टिविगत रखते हुए कृषि उत्पादन करने पर भी विगत सात वर्षों में ध्यान दिया गया है। हमारा लक्ष्य ऐसी किस्मों और फसलों को अधिक व्यावहारिक बनाने पर है जिनमें पानी खपत कम होती है। भारत के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित किया है। मिलेट (मोटे अनाज) की खेती पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अधिक सहयोगी है। मक्का से एथेनांल बनाने की दिशा में कार्य चल रहा है। 

एथेनांल का ईंधन में उपयोग पैट्रोल डीजल की खपत कम करके पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सार्थक कदम साबित होगा। रासायनिक उर्वरक आवश्यकता के अनुरूप ही प्रयोग हों इस लक्ष्य के लिए 12 करोड़ किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराए गए हैं। भारत गांवों का देश है और यहां की 65 फीसदी से अधिक आबादी गांवों में बसती है। गांवों में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उठाए गए हमारे कदम अधिक कारगर परिणाम प्राप्त करा रहे हैं। लगभग 2 लाख 65 हजार से अधिक ग्राम पंचायतों का हमारा विशाल नैटवर्क इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। 

पंचायतों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण, वृक्षारोपण एवं स्वच्छता के कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर पूर्ण किया जा रहा है। पंद्रहवें वित्त आयोग ने अपनी अनुशंसा में पंचायती राज संस्थाओं को दो श्रेणियों बद्ध एवं अबद्ध में अनुदान प्रदान किया है। इसमें से बद्ध अनुदान का उपयोग गांवों में सिर्फ स्वच्छता, वर्षा जल संचयन एवं पेयजल आपूर्ति के कार्यों के लिए ही  किया जाना है। 

इस तरह से प्रचुर धनराशि पंचायतों को स्वच्छता एवं जल संचयन के कार्य के लिए प्राप्त हो रही है, जिसके सुखद परिणाम भविष्य में परिलक्षित होंगे। इसी प्रकार बेसिक अबद्ध अनुदान में से अन्य कार्यों के साथ-साथ जैव विविधता अधिनियम, 2002 के तहत जन जैव विविधता रजिस्टर (पी.बी. आर.) की तैयारी और रखरखाव के लिए भी राशि के प्रावधान की अनुशंसा की गई है। पंचायती राज मंत्रालय ने पंचायतों में जैव विविधता प्रबंधन समिति के गठन करने के लिए भी राज्यों को कहा है। इससे ग्रामीण अंचल के क्षेत्र विशेष में भूमि, वनस्पति एवं वन्य प्राणियों की विशेष प्रजातियों के संरक्षण के साथ ही पर्यावरण सरंक्षण की दिशा में भी कार्य हो रहा है। 

1974 से पर्यावरण संरक्षण एवं प्रकृति के प्रति हमारे समर्पण के संकल्प को दोहराने के लिए हम प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं। इस वर्ष इस दिवस की थीम ECOSYSTEM RESTORATION रखी गई है, अर्थात आज का यह दिन अपने पारिस्थितिकीय तंत्र की पुनस्र्थापना के संकल्प का है।

अपनी विशाल जैव विविधता और समृद्ध पारिस्थितिकी के कारण भारत की एक अलग ही पहचान है। इसके संरक्षण के लिए हम सदैव कृत संकल्पित हैं। आइए इस विश्व पर्यावरण दिवस पर शपथ लें कि अपनी धरती को बचाने के लिए हम अपने-अपने स्तर पर हर संभव योगदान देंगे, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे इन प्रयासों का स्मरण कर हमें सदैव याद रखे।-नरेंद्र सिंह तोमर(मंत्री,कृषि एंव किसान कल्याण ग्रामीण विकास)

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