मजहब के नाम पर ‘हलाल सर्टीफिकेट’ पर मची हाय-तौबा

punjabkesari.in Sunday, Jan 10, 2021 - 02:53 AM (IST)

धर्म अथवा पंथ जब तक मानव के व्यक्तिगत जीवन का हिस्सा बनने तक सीमित रहे, वह उसकी आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम बन कर उसमें एक सकारात्मक शक्ति का संचार करता है। लेकिन जब वह मानव के व्यक्तिगत जीवन के दायरे से बाहर निकल कर समाज के सामूहिक आचरण का माध्यम बन जाता है तो वह समाज में एक सामूहिक शक्ति का संचार करता है। शायद इसीलिए कार्ल माक्र्स ने धर्म को जनता की अफीम कहा था। 

दरअसल पिछले कुछ समय से मजहबी मान्यताओं के आधार पर विभिन्न उत्पादों का हलाल सर्टिफिकेशन राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में है। हाल ही में यूरोपीय महाद्वीप के देश बैल्जियम में हलाल मीट और कोशर मीट पर एक अदालती फैसला आया है। पशु अधिकारों को ध्यान में रखते हुए यूरोपीय संघ की अदालत ने बिना बेहोश किए जानवरों को मारे जाने पर लगी रोक को बरकरार रखा है। इसका मतलब यह है कि बैल्जियम में किसी भी जानवर को मारने से पहले उसे बेहोश करना होगा ताकि उसे कष्ट न हो। 

यूरोपीय संघ की अदालत के इस फैसले ने यूरोपीय संघ के अन्य देशों में भी इस प्रकार के कानून बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। मजहबी स्वतंत्रता के नाम पर बैल्जियम के मुसलमान और यहूदी संगठन इस कानून का विरोध कर रहे हैं।राष्ट्रीय स्तर पर अगर बात करें तो यह चर्चा में इसलिए है कि अप्रैल 2020 में सुप्रीमकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कोविड महामारी के मद्देनजर हलाल मीट पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी जिसे कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अदालत लोगों की भोजन करने की आदतों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। इसी से संबंधित ताजा मामला दक्षिण दिल्ली म्युनिसिपल कार्पोरेशन के अंतर्गत आने वाले होटलों के लिए लागू किए गए एक नियम का है जिसमें दिल्ली के ऐसे होटल या मीट की दुकानें जो दक्षिण दिल्ली म्युनिसिपल कार्पोरेशन के अंतर्गत आती हैं उन्हें अब हलाल या झटका का बोर्ड दुकान के बाहर लगाना अनिवार्य होगा। 

दरअसल एस.डी.एम.सी. की सिविक बॉडी की स्टैंडिंग कमेटी ने एक प्रस्ताव पास किया जिसमें लिखा है कि हिन्दू और सिख के लिए हलाल मीट खाना वॢजत है। इससे पहले क्रिसमस के दौरान केरल के ईसाइयों ने भी हलाल मांस के विरोध में प्रदर्शन किया था। इस मामले में क्रिश्चियन एसोसिएशन ऑफ चर्च के ऑक्सीलरी फॉर सोशल एक्शन ने ईसाइयों से एक अपील भी की थी जिसमें हलाल मांस को उनके धार्मिक लोकाचार के खिलाफ होने के कारण इन्हें खाद्य पदार्थों के रूप में खरीदने से मना किया गया था। 

मजहब के नाम पर जिस हलाल पर विश्व भर में हाय-तौबा मची हुई है पहले थोड़ा उसे समझ लेते हैं। हलाल दरअसल एक अरबी शब्द है जिसका उपयोग कुरान में भोजन के रूप में स्वीकार करने योग्य वस्तुओं के लिए किया गया है। इस्लाम में आहार संबंधी कुछ नियम बताए गए हैं जिन्हें हलाल कहा जाता है। लेकिन इसका संबंध मुख्य रूप से मांसाहार से है। जिस पशु को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है उसके वध की प्रक्रिया विशेष रूप से बताई गई है। इसी के चलते मुस्लिम देशों में सरकारें ही हलाल का सर्टिफिकेट देती हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो मीट वहां परोसा जा रहा है वह उनकी मजहबी मान्यताओं के अनुरूप है। 

हमारे देश में भी भारतीय रेल और विमानन सेवाओं जैसे प्रतिष्ठानों से लेकर फाइव स्टार होटल तक हलाल सर्टिफिकेट हासिल करते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि जो मांस परोसा जा रहा है वह हलाल है। मैकडोनाल्ड, डोमिनो’ज, जोमाटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां तक इसी सॢटफिकेट के साथ काम करती हैं। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे देश में यह सर्टिफिकेट सरकार द्वारा नहीं दिया जाता। दरअसल भारत में अलग-अलग वस्तुओं के लिए अलग-अलग सर्टिफिकेट का प्रावधान है जो उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं। जैसे औद्योगिक वस्तुओं के लिए आई.एस.आई. मार्क, कृषि उत्पादों के लिए एगमार्क, प्रॉसैस्ड  फल उत्पाद जैसे जैम-अचार के लिए एफ.पी.ओ., सोने के लिए हॉलमार्क आदि। 

लेकिन हलाल का सर्टिफिकेट भारत सरकार नहीं देती है। भारत में यह सॢटफिकेट कुछ प्राइवेट संस्थान जैसे हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सॢवसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमायत उलमा ए हिन्द हलाल ट्रस्ट आदि, देते हैं। अभी तक देश से निर्यात होने वाले डिब्बाबंद मांस के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण को हलाल प्रमाणपत्र देना पड़ता था क्योंकि दुनिया के अधिकांश मुस्लिम देश हलाल मांसाहार ही आयात करते हैं। लेकिन यह बात जितनी साधारण दिखाई दे रही है उससे कहीं अधिक पेचीदा है क्योंकि तथ्य यह बताते हैं कि जो बात मजहबी मान्यताओं के अनुसार पशु वध के तरीके (हलाल) से शुरू हुई थी अब वह दवाइयों से लेकर सौंदर्य उत्पाद जैसे लिपस्टिक और शैम्पू, अस्पतालों से लेकर फाइव स्टार होटल, रियल एस्टेट से लेकर हलाल टूरिज्म और तो और आटा मैदा बेसन जैसे शाकाहारी उत्पादों तक के हलाल सर्टिफिकेशन पर पहुंच गई है। 

आयुर्वैदिक औषधियों के लिए भी हलाल सॢटफिकेट! ऐसा क्यों है? क्योंकि जो भी कंपनी अपना सामान मुस्लिम देशों को निर्यात करती है उन्हें इन देशों को यह सॢटफिकेट दिखाना आवश्यक होता है। आज मुस्लिम देशों में हलाल सर्टिफिकेट उनकी जीवनशैली से जुड़ गया है। वे उस उत्पाद को नहीं खरीदते जिस पर हलाल सर्टिफिकेट नहीं हो। हलाल सर्टिफिकेट वाले अस्पताल में इलाज, हलाल सर्टिफिकेट वाले कॉम्प्लैक्स में फ्लैट और हलाल टूरिज्म पैकेज देने वाली एजैंसी से यात्रा। यहां तक कि हलाल की मिंगल जैसी डेटिंग वैबसाइट। 

मांस से आगे बढ़ कर चावल, आटा, दालों, कॉस्मैटिक जैसी वस्तुओं के हलाल सर्टिफिकेशन के कारण अब यह व्यवस्था धीरे-धीरे एक ऐसी समानांतर अर्थव्यवस्था का रूप लेती जा रही है जिस पर किसी भी देश की सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और इसलिए यह एक वैश्विक चिंता का विषय भी बनता जा रहा है।-डा. नीलम महेंद्र
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News