जम्मू-कश्मीर का संदेश और आगे की राह

punjabkesari.in Wednesday, Oct 09, 2024 - 05:18 AM (IST)

वस्तुत: जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव नए तथा अनेक मामलों में अलग थे। पहली बार 5 अगस्त, 2019 को यह एक संघ राज्य बना और इसका विशेष दर्जा समाप्त किया गया। पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य का विभाजन किया गया। चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन से जम्मू क्षेत्र की सीटें बढ़कर 43 हुईं और कश्मीर क्षेत्र की 1 सीट बढ़कर 47 हुईं। 9 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की गईं और 5 सीटों पर उपराज्यपाल द्वारा सदस्यों को नाम-निर्दिष्ट किया जाएगा। 

यह भारत के चुनावी सत्यनिष्ठा का प्रमाण है कि राज्य में लोकतंत्र की जडें मजबूत हो रही हैं क्योंकि वहां पर 10 वर्षों के बाद चुनाव हुए हैं। इन चुनावों में मतदाताओं, उम्मीदवारों और पार्टियों ने व्यापक रूप से भाग लिया। मतदान भी 62 प्रतिशत से अधिक हुआ। महिलाओं और युवाओं में मतदान के लिए उत्साह था। मतदान में कोई ङ्क्षहसा या जोर-जबरदस्ती नहीं हुई। वस्तुत: संदेश स्पष्ट है कि ये चुनाव जनकेन्द्रित और जनता द्वारा प्रेरित थे, जिसमें जनता का बोलबाला रहा और उसने अपनी आवाज उठाई तथा अपने भाग्य को भी निर्देशित किया। 

मतदाताओं ने बताया कि उन्होंने बहिष्कार की बजाय मतदान को प्राथमिकता दी और इस तरह उन्होंने देश-विरोधी ताकतों को पराजित किया और लोकतंत्र की जीत हुई। यह एक दूरगामी बदलाव था और इसने इस वास्तविकता को बदला कि अतिवादी संगठन जमात-ए-इस्लामी, जिसने दशकों तक चुनावों का बहिष्कार किया और जिसे प्रतिबंधित कर दिया गया था, उसने भी चुनावों में भाग लिया। विधि विरुद्ध क्रियाकलाप अधिनियम के आरोपी बारामूला के सांसद इंजीनियर राशिद द्वारा लोकसभा का चुनाव जीतने से एक नया मोड़ आया। उनकी आवामी इत्तेहाद पार्टी, जो फारूक अब्दुल्ला की नैशनल कांफ्रैंस की विचारधारा के विपरीत है, उसने लोगों की इच्छा को भांपा और इन सबकी उपस्थिति ने चुनावी जंग में स्थापित परिवारवादी पार्टियों नैकां और पी.डी.पी. तथा भाजपा और कांग्रेस के लिए एक नया अनुभव दिया। यह इस क्षेत्र के लिए शुभ संकेत है जिसने दशकों तक आतंकवाद को झेला है। राजनीतिक वर्ग के लिए चुनौती यह है कि वह चुनावी लोकतंत्र में जनता के अटूट विश्वास को बनाए रखे और इस बात का प्रयास करे कि वे सुरक्षा चुनौतियां, सामाजिक चिंताओं, आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने और राजनीतिक अधिकारों को बनाए रखने के लिए सर्वोत्तम है और साथ ही सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमले, पुंछ और राजौरी आदि क्षेत्रों में हिरासत में मौतों पर जनता की चिंताओं को दूर करे। 

नि:संदेह आर्थिक और शासन के मोर्चों और सेवाओं में सुधार हुआ है। एक हजार से अधिक जनउपयोगिता सेवाओं का डिजिटलीकरण किया गया है।  6 हजार करोड़ रुपए से अधिक के निवेश की बड़ी परियोजनाएं लगभग पूरी होने वाली हैं। तथापि एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी का कहना है कि आॢथक और प्रशासनिक उपायों के फलीभूत होने के लिए धैर्य की आवश्यकता है। साथ ही हमें शीघ्र ही आतंकवाद रोधी कार्रवाइयों को तेज करना होगा क्योंकि युवाओं में कट्टरपन बढ़ता जा रहा है। बेरोजगारी दूर करना एक मुख्य चुनौती है। वस्तुत: केन्द्र सरकार को घाटी में होने वाली घटनाओं को सहानुभूतिपूर्वक देखना होगा क्योंकि इससे हमारे मनुवादी समाज का धु्रवीकरण हो सकता है और राज्य के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो सकता है। उसे अनेक विकास परियाजनाएं चलानी होंगी। हालांकि घाटी में पर्यटन बढ़ रहा है, तथापि सरकार को स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होना होगा और बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि संपूर्ण देश से व्यापार और निवेश के लिए लोगों का आना-जाना वहां बढ़े। 

जम्मू-कश्मीर के सामाजिक और आॢथक संकेतक उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों से बहुत अच्छे हैं और यहां पर विकास में तेजी लाने के लिए सरकारी हस्तक्षेप तथा धन, जन बल और बाहुबल के अलावा कश्मीर को एक भावनात्मक पैकेज की आवश्यकता है। आशा की जाती है कि नई सरकार पाकिस्तान द्वारा भ्रमित किए गए कश्मीरियों विशेषकर युवाओं को अपने दुख, हताशा, गुस्से को व्यक्त करने का अवसर देगी। साथ ही उनके साथ  सम्मान का व्यवहार करना होगा, उनकी गरिमा बहाल करनी होगी और उनके अपमान के घावों पर मरहम लगाना होगा। कुल मिलाकर सरकार अलग-थलग पड़े युवाओं को मुख्य धारा में लाए, रोजगार के अवसर सृजित करे और बिना किसी समझौते के आतंकवाद का कठोरता से सामना करे। आतंकवादी घाटी और जम्मू के बीच जीवन रेखा के रूप में राजमार्गों को निशाना बना सकते हैं, इसलिए स्थानीय पुलिस के साथ सी.आर.पी.एफ के जवानों को भी तैनात किया गया है। अब देखना यह है कि क्या जम्मू-कश्मीर की जनता विकास के वायदों से संतुष्ट होती है, क्योंकि कश्मीरियों की सबसे बड़ी शिकायत यही रही है कि उनके क्षेत्र में विकास नहीं हो रहा। वे भारतीय सुरक्षा बलों की ज्यादतियों को अस्वीकार करते रहे हैं, क्योंकि इससे जनता का दिल नहीं जीता जा सकता है। 

समय आ गया है कि नए निर्वाचित प्रतिनिधि कश्मीरियों को देश की मुख्यधारा में लाएं। राज्य सरकार के पदों तथा शैक्षणिक संस्थानों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू करें तथा उनके साथ विषमता को दूर करें। सरकार को स्थानीय लोगों के साथ संवाद करना चाहिए ताकि एक नए जम्मू-कश्मीर का निर्माण हो सके। हमें यह बात ध्यान में रखनी होगी कि पाकिस्तान कभी नहीं चाहेगा कि एक सुदृढ़ और स्थिर जम्मू-कश्मीर का निर्माण हो जबकि सुदृढ़ तथा स्थिर जम्मू-कश्मीर भारत के बहुलवादी समाज तथा इसके फलते-फूलते लोकतंत्र की एक बड़ी उपलब्धि होगी। राज्य के नेताओं को भारत के राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने और कश्मीरी लोगों को सच्चे रूप से यह अहसास कराने कि भारत उनका देश है, इस दिशा में भरसक प्रयास करना होगा। कुल मिलाकर यह एक ऐसा चुनाव है जिसकी गूंज इतिहास के पन्नों में गूंजेगी। समय आ गया है कि सरकार बुनियादी बातों पर ध्यान दे, अधिक मानवीय दृष्टिकोण अपनाए और विविध धर्मों वाले राष्ट्र में सहिष्णुता तथा जमीनी स्तर पर लोकतंत्र स्थापित करे व सही इरादों और उचित आशा के सिद्धान्त के साथ जनता के लिए कार्य करे। क्या नया नेतृत्व वास्तव में जम्मू-कश्मीर में चेरी खिला और कश्मीर के सपने को एक बड़ी वास्तविकता बना सकता है?-पूनम आई. कौशिश


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