नई लोकसभा में विपक्ष के तेवर के मायने स्पष्ट हैं

punjabkesari.in Saturday, Jun 29, 2024 - 04:45 AM (IST)

18वीं लोकसभा के अध्यक्ष के निर्वाचन के दौरान और उसके बाद का दृश्य निश्चित रूप से देश को एक हद तक राहत देने वाला था। आक्रामक मोर्चाबंदी के बाद विपक्ष ने संसद में मत विभाजन की मांग नहीं की। इस कारण ओम बिरला का दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हुआ। विपक्ष अपने पूर्व के तेवर के अनुरूप यदि के. सुरेश और ओम बिरला के बीच मतदान पर अड़ता तो तस्वीर दूसरी होती। 

सरकार का तर्क यही था कि अध्यक्ष पद को राजनीति से दूर रखने के लिए ओम बिरला का निर्वाचन सर्वसम्मति से होना चाहिए। इसमें सरकारी पक्ष सफल नहीं हुआ लेकिन कम से कम मत विभाजन नहीं हुआ यह भी आज की स्थिति को देखते हुए बड़ी बात है। दूसरे, ओम बिरला के निर्वाचन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें बधाई देने गए तो विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी भी आए और प्रधानमंत्री ने स्वयं उन्हें अपने हाथ से आगे आने का इशारा किया। 

आसन पर बैठने के बाद प्रधानमंत्री ने पहले उनसे हाथ मिलाए और फिर राहुल गांधी की ओर मुड़कर उन्हें आगे किया, फिर प्रधानमंत्री एवं राहुल गांधी ने भी हाथ मिलाया। इससे संदेश यह निकलता है कि राजनीति में आपसी दुश्मनी की स्थिति होते हुए भी हमारे राजनेता महत्वपूर्ण अवसरों पर अपनी भूमिका का गरिमा में निर्वहन कर सकते हैं। हालांकि इससे यह मान लेना गलत होगा कि विपक्ष ने सरकार के साथ समन्वय बनाकर काम करने का मन बनाया है। वास्तव में 18वीं लोकसभा में शपथग्रहण के समय से विपक्ष का तेवर बता रहा है कि वह सरकार को आसानी से काम करने देने की मन:स्थिति में नहीं है। 

आई.एन.डी.आई.ए. के सारे सांसद गांधी जी की प्रतिमा के पुराने स्थल से हाथों में संविधान लहराते हुए जिस तरह नारा लगाते आगे बढ़े वह चिंतित करने वाला दृश्य था। कम से कम सांसदों के शपथ ग्रहण के अवसर को प्रदर्शनों से दूर रखा जा सकता था। सरकार ने अभी ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जिसके लिए विपक्ष को इस तरह विरोध की एकजुटता प्रदर्शित करनी पड़े। विरोध के लिए आगे पूरा अवसर बना हुआ है। संसद में बजट आना है और भी कई विधेयक आने वाले हैं उन सब पर विपक्ष अपना तेवर दिखा सकता था, दिखाएगा भी। 

इसी तरह स्वयं विपक्ष का अपना एजैंडा है जो समय-समय पर संसदीय नियमों का लाभ उठाते हुए प्रस्तुत करने की कोशिश करेगा। सांसदों के शपथ ग्रहण यानी 18वीं लोकसभा की शुरूआत में विपक्ष ने अपनी रणनीति के तहत ही आक्रामक विरोधी चरित्र प्रदर्शित किया है। पहले भर्तृहरि मेहताब को प्रोटेम स्पीकर बनाए जाने का विरोध हुआ। कांग्रेस ने यह भी कह दिया कि उनकी पार्टी भर्तृहरि मेहताब को सहयोग नहीं करेगी। उससे भय पैदा हुआ लेकिन सभी कांग्रेसी सांसदों ने अंतत: भारतीय भर्तृहरि मेहताब की अध्यक्षता में ही शपथ ग्रहण किया। इसके पूर्व कभी प्रोटेम स्पीकर को लेकर इस तरह विरोध हुआ हो इसके रिकॉर्ड अभी तक सामने नहीं आए हैं। उसके बाद से विपक्ष ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वह लोकसभा चुनाव के दौरान उठाए गए मुद्दों और अपनाए तेवरों से पीछे हट रहा है। 

आप ओम बिरला के लोकसभा अध्यक्ष बनने के बाद दिए गए विपक्ष के नेताओं के भाषणों को देखिए तो काफी कुछ स्पष्ट हो जाएगा। उदाहरण के लिए राहुल गांधी ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि आपके नेतृत्व में संविधान की रक्षा होगी। ‘आप’ विपक्ष को पूरी तरह बोलने का अवसर देंगे जिससे आमजन की आवाज संसद में आ सके। उन्होंने पूर्व लोकसभा में सांसदों के निलंबन पर भी कटाक्ष किया। ठीक इसी तरह समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी लोकसभा अध्यक्ष पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि ‘आप’ सत्ता पक्ष को तो मौका देते ही हैं लेकिन अब उम्मीद है कि विपक्ष को भी अवसर देंगे। 

इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के संयुक्त सत्र के अभिभाषण को लेकर भी विपक्ष ने सरकार के साथ सहयोग या सहकार वाली भूमिका का संदेश नहीं दिया। आम आदमी पार्टी द्वारा अभिभाषण का बहिष्कार तथा शिवसेना उद्धव ठाकरे द्वारा उसका समर्थन बताता है कि संसद को लेकर विपक्ष की राजनीति किस दिशा में जाने वाली है। शिवसेना- उद्धव ठाकरे के सांसद संजय राउत ने कहा कि बहिष्कार बिल्कुल ठीक है। यह सरकार तानाशाही रवैया अपनाती है और उसमें राष्ट्रपति का भी योगदान है। राष्ट्रपति को दलीय राजनीति में घसीटना अन्य सभी घटनाक्रमों से ज्यादा चिंतित करने वाला है। राष्ट्रपति देश के अभिभावक के तौर पर स्वीकार किए जाते हैं। वस्तुत: विपक्ष का आकलन है कि संविधान खत्म करने, आरक्षण खत्म करने और अन्य प्रकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार विरोधी तेवरों से उन्हें चुनाव में लाभ मिला है। 

इसे आगे बनाए रखा गया तो वह सरकार को सत्ता से हटाने में सफल होंगे। विपक्ष की रणनीति बिल्कुल साफ है देश में सरकार के हर समय अस्थिर होने का संदेश देना, इससे लगातार टकराव करते रहना, आरोप लगाते रहना तथा जब भी मौका आए सरकार को झकझोर कर गिराने का प्रयास करना। साफ है कि सरकार भी ईंट का जवाब पत्थर से देने का संदेश दे रही है। इसमें हमें संसद के सुचारू रूप से संचालन या भविष्य में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच राष्ट्र व जनता के हितों को लेकर स्वाभाविक सहयोग और समन्वय की कल्पना नहीं करनी चाहिए।-अवधेश कुमार
 


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