विज्ञापन का बाजार और नारी-देह का सवाल

punjabkesari.in Wednesday, Jun 15, 2022 - 07:17 AM (IST)

अभी चंद दिनों पहले ही मार्कीट में परफ्यूम का एक विज्ञापन आया, जिसने कई सवाल खड़े किए। ऐसी क्या वजह है कि विज्ञापन के केंद्र में रखकर महिलाओं की अश्लील छवि परोसी जाती है। हालांकि दिल्ली महिला आयोग ने विज्ञापन पर आपत्ति जताई, जिसके बाद उसके प्रसारण पर रोक लगा दी गई। पर फिर भी यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर इस प्रकार के विज्ञापन बनाने के पीछे की वजह क्या है? क्यों समाज में विज्ञापनों के माध्यम से गंदगी फैलाई जा रही है? ये विज्ञापन स्त्री-शरीर केंद्रित ही क्यों होते हैं? ऐसी क्या वजह है जो उत्पाद की बिक्री बढ़ाने के लिए महिलाओं के अंग प्रदर्शन का सहारा लिया जाता है? 

एक शोध के अनुसार विज्ञापनों की दुनिया आज के समय में अरबों रुपए की हो चली है और यहां पर ‘लैंगिक स्टीरियोटाइपिंग’ होती है। विज्ञापन अधिकतर महिलाओं को घर की सैटिंग्स में दिखाते हैं और पुरुषों को बिजनैस सैटिंग में। यदि महिला को किन्हीं प्रॉडक्टस को लांच करने के लिए सामने भी लाया जाता है तो उसकी देह का व्यावसायिक इस्तेमाल ही होता है, जबकि अश्लील प्रदर्शन कानून के विरुद्ध है। 

वर्तमान समय में विज्ञापनों में अश्लीलता का दौर अपने चरम पर है। हमारे समाज ने अश्लीलता को भले कभी मान्यता न दी हो पर अपना मौन समर्थन जरूर प्रदान किया है। यही वजह है कि अब ये विज्ञापन टैलीविजन के माध्यम से हर घर तक अपनी पैठ बना चुके हैं। आज के दौर में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं रहा, जहां बाजारवाद की चकाचौंध न हो। इसी के चलते आज मीडिया में प्रसारित विज्ञापन हो या खबर, अश्लीलता की कहीं कोई कमी नहीं। 

गौर करने वाली बात यह है कि इनका कोई विरोध तक नहीं करता। आधुनिकता की चाह में फूहड़ता का कैसा घिनौना खेल खेला जा रहा है। मुनाफे की चाह में महिलाओं को कामुकता का चोला पहना कर परोसा जा रहा है। विज्ञापन कम्पनियां अपने लाभ के चलते यह तक भूल जाती हैं कि उनके अपने घरों में भी मां-बहनें होंगी। क्या वे ये विज्ञापन नहीं देखती होंगी?

विज्ञापन में महिलाओं को दिखाया जाना गलत नहीं है, बल्कि सवाल यह है कि महिलाओं को किस रूप में दिखाया जा रहा है? हद तो तब हो जाती है, जब पुरुषों के बनियान और जांघिए तक में स्त्री को प्रदॢशत किया जाता है और किसी पुरुष की अंडरवियर को देखकर महिला उस पर मोहित हो जाती है। ऐसे में सवाल यही है कि क्या जिस स्त्री स्वरूप की हमारे संस्कृति में देवी से तुलना की गई है, क्या वह अब इसी की हकदार बची है? 

दुर्गंधनाशकों के विज्ञापनों में तो अधनंगी स्त्रियां पुरुषों के साथ एक खास किस्म की कामुक मुद्रा में प्रस्तुत की जाती हैं। इसका एकमात्र मकसद है, स्त्रियों के कामोत्तेजक हाव-भाव और सम्मोहक अंदाज के जरिए पुरुष दर्शकों को आकॢषत करना। लेकिन हम पैसे बनाने और किसी ब्रांड को चमकाने के लिए स्त्री की यह कैसी छवि गढ़ रहे हैं? 

विज्ञापनों के संदर्भ में यूनिसेफ की रिपोर्ट में भी लैंगिक भेदभाव की बात कही गई है। कोरोना काल में न जाने कितनी महिलाओं का रोजगार छिन गया। यहां तक कि उन्हें घरेलू ङ्क्षहसा तक का सामना करना पड़ा। पर किसी भी विज्ञापन कंपनी का ध्यान इस ओर नहीं गया। कोई विज्ञापन नहीं दिखा जो महिलाओं की प्रताडऩा के खिलाफ हो, उनकी वास्तविक स्थिति को दिखा सके। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि आज तमाम विज्ञापन कंपनियां बने-बनाए ढर्रे पर ही चल रही हैं। महिलाओं को कामुक और सुंदर दिखाना ही उनकी प्राथमिकता है। बाइक से लेकर शेविंग क्रीम तक के विज्ञापनों में महिलाओं को कामुक और पुरुषों के आकर्षण की वस्तु के रूप में दिखाया जाता है। 

ऐसे में विज्ञापन कंपनियों को अपनी दोगली मानसिकता से बाहर निकलना होगा। विज्ञापनों के माध्यम से महिलाओं की स्वच्छ छवि को दिखाना होगा। महिलाओं को भी आगे बढ़कर उन विज्ञापन का विरोध करना होगा, जिनमें उनकी छवि को धूमिल किया जा रहा है। खासकर उन एक्ट्रैसेस को भी समझना होगा कि वे एक महिला के रूप में स्वयं का नहीं, बल्कि समस्त महिला जाति का प्रतिनिधित्व कर रही हैं।-सोनम लववंशी
 


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