नेताओं के शब्दबाण अब ‘निम्न स्तर’ की राजनीति पर उतरे नेता

Tuesday, May 14, 2019 - 02:28 AM (IST)

राजनीतिक विरोधी या जानी दुश्मन?  यह प्रश्र इसलिए उठ रहा है क्योंकि पिछले कुछ हफ्तों में जिस तरह से भाजपा, कांग्रेस तथा क्षेत्रीय दलों के नेताओं द्वारा एक-दूसरे पर कीचड़ उछाला गया और अभद्र तथा फूहड़ भाषा का प्रयोग किया गया, उससे राजनीतिक संवाद निचले स्तर पर पहुंच गया है। रैलियों में भीड़ की सीटियां सुनने को उत्सुक नेतागण घटिया से घटिया भाषा का इस्तेमाल करने से भी गुरेज नहीं कर रहे। ये नेता इस सोच के साथ चल रहे हैं कि जितना घटिया हो सके, उतना बेहतर यानी दिल मांगे मोर जैसी स्थिति हो गई है। कुल मिलाकर अधिकांश नेता अब निम्न स्तर की राजनीति पर उतर आए हैं। 

निश्चित तौर पर मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर कमर से नीचे वार किया जोकि उनके लिए उचित नहीं था क्योंकि हमारे यहां किसी स्वर्गवासी व्यक्ति के प्रति गलत शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता। उन्होंने कहा : ‘‘राजीव गांधी को उनके दरबारियों ने मिस्टर क्लीन घोषित किया था लेकिन उनकी मृत्यु भ्रष्टाचारी नम्बर 1 के तौर पर हुई। मैं कांग्रेस को उनके नाम पर चुनाव लडऩे की चुनौती देता हूं।’’ इसके बाद उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘राजीव ने भारतीय नौसेना के युद्घपोत आई.एन.एस. विराट का इस्तेमाल इटली के अपने ससुरालियों और दोस्तों सहित परिवार की छुट्टियां मनाने के लिए एक टैक्सी की तरह किया।’’ 

कहने की जरूरत नहीं कि इससे कांग्रेस भड़क गई और राजीव गांधी के बच्चों ने इसका उत्तर दिया। उनकी बेटी प्रियंका ने मोदी की तुलना महाभारत के पात्र अहंकारी दुर्योधन से करते हुए कहा, ‘‘इन दोनों में अहंकार और घमंड सामान्य है।’’ उधर राहुल ने उन्हें दंगई कहा। नरेन्द्र मोदी ने यह कह कर खुद को सही ठहराने की कोशिश की, ‘‘आप लोग  एक महीने से मुझे, मेरी मां और मेरे परिवार को गालियां दे रहे थे, हम भी उसी भाषा में जवाब दे सकते हैं।’’ यह ठीक है कि मोदी ने कड़े शब्दों का इस्तेमाल करने की गलती की लेकिन वास्तविकता यह है कि इस तरह की असंयमित भाषा का प्रयोग करने वाले वह अकेले नेता नहीं हैं, अन्य नेता भी वर्षों से इस तरह का भाषा का प्रयोग करते रहे हैं। 

तृणमूल कांग्रेस की ममता  बनर्जी ने कहा, ‘‘जब मोदी बंगाल आएं और कहें कि मैं जबरन वसूली करने वाला हूं, मैं उन्हें लोकतंत्र का एक करारा तमाचा लगाना चाहूंगी।’’ इसके अलावा ममता ने आगे कहा, ‘‘वह एक झूठा है...वह खून से सना हुआ व्यक्ति है....यदि मेरी पार्टी के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप गलत साबित हों तो मैं उन्हें100 ऊठक-बैठक लगाने को कहूंगी।’’ इस पर नमो ने जवाब दिया, ‘‘मैं दीदी को सलाह देना चाहता हूं कि वह अपनी पार्टी के उन नेताओं को तमाचा मारें जिन्होंने चिटफंड घोटाले में लोगों के पैसे चुराए हैं।’’ नेताओं के शब्दबाण उस समय और भी तीखे हो गए जब मोदी ने बुआ ममता और उनके भतीजे द्वारा तृणमूल की तोलाबाजी (संगठित वसूली रैकेट) टैक्स के बारे में बात की। इस पर दीदी ने जवाब दिया, ‘‘वो एक बदतमीज नालायक बेटा है जो अपनी मां और पत्नी की देखभाल नहीं करता।’’ राजद की राबड़ी देवी ने तो मोदी को ‘जल्लाद’ और ‘खूंखार मानसिकता’ वाला कह कर हद ही कर दी। 

चुनावों में प्रयोग की जा रही भाषा उस समय और भी घटिया स्तर पर पहुंच गई जब एक कांग्रेसी मंत्री ने मोदी को ‘गंदी नाली का कीड़ा और गंगू तेली’ कहा। एक अन्य नेता ने कहा, ‘‘वो एक पागल कुत्ता है और भस्मासुर है.... रैबीज बीमारी से पीड़ित बंदर है, राजनीतिक दाऊद इब्राहिम है।’’ इसके अलावा उन्हें चूहा, लहू पुरुष और असत्य का सौदागर, रावण, सांप, बिच्छू, गंदा आदमी, जहर बोने वाला कहा गया है। भाजपा को कांग्रेस पर उस समय प्रहार करने का अवसर मिला जब राहुल गांधी के गुरु सैम पित्रोदा ने 1984 के सिख नरसंहार के बारे में कहा, ‘‘हुआ तो हुआ।’’ इस पर भाजपा ने कांग्रेस पर खूनी होने का आरोप लगाया। ऐसा लगता है कि नेता लोग किसी भी तरह से मतदाताओं को गुदगुदाना चाहते हैं और इस खेल में वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। 

अफसोस की बात यह है कि कोई भी गंभीर प्रश्रों का हल नहीं करना चाहता..नेताओं का संवाद ज्यादा से ज्यादा जहरीला क्यों होता जा रहा है? क्या इस तरह की भाषा और व्यवहार का समर्थन किया जा सकता है? दिल्ली में भाजपा पर आरोप है कि उसने आप के केजरीवाल को ‘कुत्ता’ और एक महिला उम्मीदवार को ‘वेश्या’ कहा। स्पष्ट तौर पर कहूं तो मुझे नेताओं के इस गिरगिट वाले रंग को देख कर कोई हैरानी नहीं हो रही है जिसमें उन्होंने सार्वजनिक शालीनता को तिलांजलि दे दी है। अब वे दिन नहीं रहे जब नेता लोग उपहास और व्यंग्य की भाषा का इस्तेमाल करते थे। आज, एक विरोधी और एक दुश्मन के बीच की लाइन धुंधली होती जा रही है और घटिया स्तर की बातचीत करना एक रिवाज बनता जा रहा है। लोगों को खुश करने के लिए शिष्टाचार और शालीनता को छोड़ कर जहरीली भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। अपने राजनीतिक विरोधियों और पार्टियों के खिलाफ तू-तू, मैं-मैं आम बात हो गई है। 

ऐसा देखा जा रहा है कि हमारी राजनीतिक प्रणाली शिष्टाचार के मामले में दिवालिएपन की शिकार हो गई है और नेताओं ने नैतिकता को छोड़ कर लालच को अपना लिया है। इससे अनैतिकता को बढ़ावा मिल रहा है। इन सभी उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हमारी राजनीति गिरावट की ओर अग्रसर है जहां शासन कला और जादू-टोने, सही और गलत के बीच कोई फर्क नहीं रह गया है। आज से पहले राजनीति इतने निचले स्तर तक कभी नहीं पहुंची थी। एक-दूसरे को बदनाम करने तथा  चरित्र हनन करने के बावजूद कोई भी नेता अपने को गलत नहीं मानता।  किसी को भी मर्यादा और शालीनता की कोई परवाह नहीं है। सभी नेता  एक-दूसरे से आगे निकलना चाहते हैं, चाहे इस खेल में उन्हें कोई भी हथकंडा क्यों न अपनाना पड़े। इन सब बातों के परिणामस्वरूप  लोकतंत्र की विचारधारा को नुक्सान हो रहा है। हालांकि आम जनता इस तरह के फूहड़पन, लैंगिक असंवेदनशीलता और घृणा के पक्ष में नहीं है। 

सावधानी बरतें नेता
ऐसे हालात में आगे क्या होने वाला है? स्पष्ट तौर पर यही समय है कि नेता लोग इस बात को समझें  कि वे राजनीति को किस हद तक नीचे ले जाएंगे। भारतीय लोकतंत्र में  चरित्रहीनता को कितनी जगह दी जाएगी? बेशक, हमारे नेताओं को बांटने वाली राजनीति और व्यक्तिगत हमलों को छोड़ कर जनता और देश से जुड़े मसलों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा तथा चुनाव प्रचार के नैरेटिव को वापस सम्मानजनक संवाद की पटरी पर लाना होगा जहां अभद्र भाषा के लिए जीरो टोलरैंस हो।  उद्देश्य यह होना चाहिए कि राजनीतिक या सार्वजनिक संवाद में  मर्यादा की एक लक्ष्मण रेखा तय की जाए और यदि कोई नेता इस संवाद के स्तर को गिराता है तो वह मतदाता  और देश की नजर में असभ्य माने जाने की कीमत पर ऐसा करेगा। हमारे नेताओं को एक पुरानी कहावत याद रखनी चाहिए : यदि आप किसी व्यक्ति की ओर एक उंगली उठाओगे तो बाकी चार उंगलियां तुम्हारी ओर उठेंगी। सनसनी फैलाने की यह आंधी कब तक चलेगी? एक राष्ट्र के तौर पर हम शर्म और नैतिकता की हदों को  नहीं लांघ सकते।-पूनम आई. कौशिश

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