‘द केरल स्टोरी’ कुछ आगे की कहानी भी है
punjabkesari.in Monday, May 08, 2023 - 04:38 AM (IST)

फिल्म अब सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं है, वह और भी बहुत कुछ कहती है, जिसका एक पक्ष भी हो सकता है। ऐसा पक्ष जो कुछ को रास न आए। इसलिए फिल्म पर विवाद होता है। पिछले साल विवादों में आई ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बाद बीते हफ्ते ‘द केरल स्टोरी’ आई। फिल्म का धर्म परिवर्तन एक विषय है और दूसरा आई.एस.आई.एस. के उद्देश्य के काम आने और महिलाओं को सीरिया तथा अफगानिस्तान भेजे जाने का।
केरल से सीरिया भेजे जाने के मामले अनेक हैं। यूं तो धर्मांतरण की समस्या पूरे देश में है लेकिन केरल, आंध्र और तेलंगाना समेत दक्षिण के राज्यों में ज्यादा। केरल का आई.एस.आई.एस. कनैक्शन तो अलग है। इसको समझने के लिए पहले केरल के सामाजिक ढांचे को भी समझना होगा। वर्ष 2017 में अमरीका ने जब आई.एस.आई.एस. के गढ़ खुरासान प्रांत पर इस आतंकी संगठन को निशाना बनाते हुए मदर ऑफ बम, जी.यू.बी.-46-बी गिराया तो जो लोग मरे उनमें 13 भारतीय भी थे।
इनमें से भी कई केरल के थे। मरने वालों में एक डाक्टर, एक स्कूल कर्मचारी, दो साल का बच्चा और उनकी गर्भवती पत्नियां भी शामिल थीं। केरल के कन्नूर में उन दिनों अब्दुल रशीद अब्दुल्ला एक उपदेशक के रूप में सक्रिय था, वह समुदाय के लोगों को कट्टरपंथी बनाकर उन्हें अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहा था। अब्दुल्ला खुद एक इंजीनियर था और अपनी नौकरी छोड़कर आई.एस.आई.एस. के लिए काम करने लगा था।
उसने 2014 में नरेंद्र मोदी के रूप में हिंदुत्व की जीत को अपने समुदाय को गुमराह करने के लिए मोहरा बनाया। उसने कन्नूर के लोगों को डराया कि सरकार संविधान को बदलकर मुसलमानों का उत्पीडऩ करेगी। अब थोड़ा और पीछे चलते हैं, जहां से सुदीप्तो सेन की फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ अपनी लाइन पकड़ती है। 24 जुलाई 2010 को नई दिल्ली में एक पत्रकार सम्मेलन में केरल के कम्युनिस्ट नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन एक बयान देते हैं।
वह राज्य में पी.एफ.आई. की गतिविधियों को एक चेतावनी बताते हुए कहते हैं कि इस संगठन का उद्देश्य अगले 20 साल में केरल को मुस्लिम बहुल क्षेत्र में बदल देना है। गैर-मुस्लिमों को पैसे का लालच देकर धर्मांतरण के लिए विवश किया जा रहा है। ‘द केरल स्टोरी’ को एक सत्यकथा होने का दावा किया जा रहा है और इसे सैंसर बोर्ड ने ‘ए’ प्रमाणपत्र दिया है। फिल्म के आने के पहले दावा किया गया कि केरल में 32,000 महिलाओं का इस्लाम में धर्मांतरण कराकर देश से बाहर भेजा गया।
धर्म परिवर्तन के कुछ आंकड़े 2012 में केरल विधानसभा एक पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने सदन में दिए थे। सदन में उनका बयान था कि वर्ष 2006-12 के बीच केरल में 2667 महिलाओं का धर्मांतरण किया गया। यानी तत्कालीन मुख्यमंत्री भी मान रहे थे कि महिलाओं का धर्मांतरण किया जा रहा है। फिल्म बताती है कि योजनाबद्ध तरीके से दूसरे धर्म की लड़कियों से निकटता बढ़ा कर उनका शोषण किया जाता है। अंतत: इस्लाम कबूल करने के लिए तैयार किया जाता है।
फिल्म निर्देशक सुदीप्तो का दावा है कि कुछ लोग सिर्फ फिल्म का इसलिए विरोध कर रहे हैं ताकि वास्तविक कहानी बाहर न आने पाए। उनका यह भी दावा है कि फिल्म के लिए 7 साल तक रिसर्च किया गया। एक हफ्ते पहले इस फिल्म को जे.एन.यू. में भी दिखाया गया और 2-3 दिन से तो कर्नाटक के चुनाव प्रचार में भी इसकी खूब चर्चा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इसका रैलियों में उल्लेख कर रहे हैं। फिल्म का विरोध कांग्रेस ने किया और मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया।
कोर्ट ने भी रोक लगाने से मना कर दिया और उल्लेख किया कि फिल्म सैंसर बोर्ड से पारित होने के बाद इसे रोकने का कोई अर्थ नहीं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म एक किस्से पर आधारित है या 32 हजार पर। बस तथ्य गलत नहीं हों। मेरठ में आज से 20 साल पहले भी मैंने ऐसी स्थितियों को देखा है जब लड़कियों के स्कूलों और कॉलेजों के आगे अपना नाम गुड्डू, बबलू बताने वाले लड़के खड़े रहते थे। महंगी बाइक, गले में भारी सोने की चेन और खूब रुतबा दिखाते हुए ये लड़के अपने आपको किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं समझते थे।
उनका पहला उद्देश्य या निशाना वे लड़कियां होती थीं जो छोटे कस्बों या गांवों से आती थीं। तय है कि इन लड़कियों को पैसे के प्रदर्शन से फंसाकर घुमाना आसान होता था और ये अपनी यौन इच्छाएं पूरी करने में समर्थ हो जाते थे। इसका दूसरा चरण तब शुरू होता था, जब लड़की शादी के लिए कहती थी तो उस पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया जाता था। उनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं होता था। यह हाल अन्य राज्यों में भी है जहां समुदायों में आर्थिक अंतर है।
हैदराबाद, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पूर्वोत्तर सब जगह ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे। खबरों का भंडार ऐसा मिल जाएगा। हैदराबाद तो ऐसी घटनाओं का केंद्र रहा है जहां से अरब के रईसों से ऐसी लड़कियों की शादी की जाती। कुछ वर्ष पहले तक तो इनमें नाबालिग लड़कियों को ले जाने की खबरें भी खूब होती रही हैं। इसीलिए जो इस फिल्म का तथ्य और आंकड़ों को ही मुद्दा बना रहे हैं, उन्हें भी यह सोचना चाहिए कि अगर कोई एक घटना भी सही है तो क्या वह फिल्म की कहानी नहीं हो सकती?
जो इस फिल्म का विरोध कर रहे हैं, माना जा सकता है कि वे धोखे देकर प्यार और फिर धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य करने की प्रवृत्ति के हक में हैं। मेरा मानना है कि यह सिर्फ हिंदू- मुस्लिम का मामला नहीं। सभी धर्मों की कच्ची समझ वाली लड़कियां ऐसे दुष्चक्र में फंस सकती हैं। सतर्कता के लिए निगाह रखना जरूरी है और अगर ऐसा हो रहा है तो कानूनी तौर से ज्यादा सामाजिक तौर पर सतर्कता के व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत है। -अकु श्रीवास्तव