महिला आरक्षण का मामला लम्बी कानूनी लड़ाई का शिकार हो सकता है

punjabkesari.in Monday, Sep 25, 2023 - 05:35 AM (IST)

कई दशकों की जद्दोजहद के बाद महिला आरक्षण का कानून संसद से पारित हो गया। राज्यों की विधानसभा में अनुमोदन के बाद इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति भी मिल जाएगी लेकिन यह कानून कब और कैसे लागू होगा, इस बारे कानूनी उलझनें बढ़ गई हैं। नए कानून के तहत सीटों के परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण लागू होगा। भारत में हर 10 साल में जनगणना होती है, लेकिन कोविड की वजह से 2021 की जनगणना में विलम्ब हो गया है। जून 2023 में रजिस्ट्रार जनरल ने जनगणना के लिए प्रशासनिक सीमाएं तय करने की तारीख 1 जनवरी 2024 तक बढ़ा दी थी। अगले साल लोकसभा के आम चुनाव होने हैं इसलिए डिजिटल जनगणना का काम नई सरकार के गठन के बाद 2025 में ही पूरा हो पाएगा। 

लोकसभा में फिलहाल 543 सीटें हैं, जिनकी संख्या 1971 की जनगणना पर आधारित हैं। 1971 की जनगणना के अनुसार हर 10 लाख की आबादी में एक लोकसभा सांसद सीट का गठन हुआ था। संविधान के 42वें संशोधन से परिसीमन की प्रक्रिया को सन् 2000 तक रोक दिया गया था। उसके बाद 84वें संविधान संशोधन से परिसीमन की प्रक्रिया को 25 साल के लिए स्थगित कर दिया गया। उसके अनुसार परिसीमन की प्रक्रिया 2026 में शुरू होगी, जिसके लिए संसद के कानून से परिसीमन आयोग का गठन होगा। बढ़ी आबादी के अनुसार उत्तर भारत के राज्यों में सीटों की संख्या ज्यादा बढऩे से दक्षिण के राज्यों में असंतोष बढ़ा तो परिसीमन के साथ महिला आरक्षण का मामला खटाई में पड़ सकता है। 

जातिगत जनगणना और आरक्षण की अवधि-तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने तो विधायिका में महिलाओं के साथ ओ.बी.सी. के लिए 33 फीसदी आरक्षण की मांग की है। उनकी मांग को मान लिया जाए तो एस.सी./एस.टी., महिला और ओ.बी.सी. मिलकर लगभग 90 फीसदी सीटें आरक्षित हो जाएंगी। सरकारी नौकरियों में एस.सी./एस.टी./ओ.बी.सी. और महिलाओं को आरक्षण की व्यवस्था है। इस बारे में चल रहे अधिकांश विवादों की जड़ में जनगणना के सामाजिक और आर्थिक आंकड़ों का अभाव है। संविधान के अनुसार जनगणना का अधिकार केन्द्र सरकार के पास है, लेकिन राज्यों में सियासी लाभ के लिए जातिगत जनगणना का ट्रैंड शुरू हो गया है। महिला आरक्षण कानून को जब 2029 के चुनावों में लागू करने की स्थिति बनेगी तब इसके दायरे में ओ.बी.सी. महिलाओं को शामिल करने के लिए जातिगत जनगणना की मांग उठ सकती है। 

नए कानून के अनुसार महिला आरक्षण 15 साल के लिए लागू होगा और उसके बाद संसद इस पर नए सिरे से विचार करेगी। संविधान के अनुसार एस.सी./एस.टी. वर्ग के लिए 10 साल के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में आरक्षण का प्रावधान था। 2019 में 104वें संविधान संशोधन के माध्यम से लोकसभा और विधानसभाओं में एस.सी./एस.टी. वर्ग के लिए आरक्षण को 10 साल के लिए बढ़ा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला कई सालों से लम्बित है, जिस पर नवम्बर में 3 बड़े मुद्दों पर बहस होगी।  पहला, क्या आरक्षण की अवधि को बढ़ाना संवैधानिक रूप से सही है? दूसरा आरक्षण को बढ़ाने के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने के आंकड़े कितने न्यायोचित हैं? तीसरा, लगातार बढ़ाए जा रहे आरक्षण की वजह से दूसरे वंचित वर्गों के अधिकारों का उल्लंधन क्या संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है? इस मामले में सुप्रीमकोर्ट के फैसले से महिला आरक्षण के भविष्य का भी निर्धारण होगा। 

2024 के चुनावों में महिला आरक्षण क्यों नहीं-बिल पर बहस के दौरान संसद में यह मांग हुई कि महिला आरक्षण को तत्काल प्रभाव से 2024 के आम चुनावों में लागू किया जाए। उसके जवाब में सुशील मोदी ने कहा कि ऐसा करने से आरक्षण कानून को सुप्रीम कोर्ट रद्द कर सकता है। मंत्रियों के अनुसार आरक्षण को लागू करने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है। लेकिन संवैधानिक से ज्यादा राजनीतिक अड़चनों की वजह से इस कानून को तुरंत प्रभाव से लागू नहीं किया गया। नए कानून के अनुसार एस.सी./एस.टी. वर्ग के महिला आरक्षण के भीतर भी 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। उसके अनुसार एस.सी. के लिए आरक्षित 84 में से 28 और एस.टी. के लिए आरक्षित 47 में 16 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जातीं। इसके अलावा बकाया 412 अनारक्षित सीटों में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होने पर सिर्फ 266 सीटें ही बगैर रिजर्वेशन के बचतीं। 

इन सीटों में भी महिला उम्मीदवारों को लडऩे की छूट होने की स्थिति में पार्टियों को बड़े पैमाने पर दिग्गज नेताओं की छंटनी करनी पड़ती। इन सियासी उलझनों से बचने के लिए जनगणना और परिसीमन से जोड़कर महिला आरक्षण को फिर से अधर में लटका दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट में एल.जी.बी.टी. और सेम सैक्स मैरिज के मामलों पर सुनवाई हो रही है। उन फैसलों से महिलाओं की कानूनी परिभाषा पर विवाद शुरू होने पर महिला आरक्षण का मामला लम्बी कानूनी लड़ाई का शिकार हो सकता है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट) 
 


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