हार न मानने वाली गर्भवती महिला कांस्टेबल की प्रेरक कहानी!
punjabkesari.in Friday, Oct 31, 2025 - 05:03 AM (IST)
कभी समाज ने यह मान लिया था कि गर्भवती महिलाएं सिर्फ विश्राम और देखभाल के लिए होती हैं। लेकिन समय ने दिखा दिया कि अगर इच्छाशक्ति दृढ़ हो तो स्त्री के सामने कोई प्रतिबंध टिक नहीं सकता। दिल्ली पुलिस की एक बहादुर महिला कांस्टेबल ने इस सत्य को अपनी मेहनत, समर्पण और जज्बे से साकार कर दिखाया। गर्भवती होने के बावजूद उन्होंने वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता में भाग लिया और न सिर्फ भाग लिया बल्कि पदक भी जीता। यह सिर्फ खेल की जीत नहीं बल्कि मानसिक और सामाजिक बंधनों पर विजय का संदेश भी है। यह कहानी उस नारी की है जो दिन-रात समाज की सुरक्षा में तैनात रहती है। पुलिस की ड्यूटी अपने आप में चुनौतीपूर्ण होती है। लंबे समय तक ड्यूटी पर रहना, तनाव भरे हालात से निपटना और शारीरिक रूप से मजबूत रहना। ऐसे में किसी महिला के लिए जो गर्भवती भी हो, अपने फिटनैस स्तर को इतना बनाए रखना कि वह राष्ट्रीय स्तर की वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता जीत सके, असाधारण बात है। लेकिन इस महिला कांस्टेबल ने यह कर दिखाया।
दिल्ली पुलिस की कांस्टेबल सोनिका यादव की प्रेरणादायक कहानी साहित्य में एक मिसाल है। 7 महीने की गर्भवती होने के बाद भी उन्होंने 2025 में आंध्र प्रदेश के अमरावती में आयोजित ऑल इंडिया पुलिस वेटलिफ्टिंग क्लस्टर चैंपियनशिप में 145 किलोग्राम वजन उठाकर कांस्य पदक जीता। यह उपलब्धि न केवल उनकी शारीरिक ताकत का प्रदर्शन है बल्कि महिलाओं के साहस, लगन और सीमाओं को पार करने की क्षमता की नई परिभाषा भी प्रस्तुत करती है। उनकी यात्रा आसान नहीं थी। जब उन्हें पता चला कि वे मां बनने वाली हैं, बहुतों ने सलाह दी कि खेल से दूरी बना लें, पूरी तरह विश्राम करें। लेकिन उन्होंने डाक्टरों की निगरानी में सीमाओं को समझते हुए प्रशिक्षण जारी रखा। यह उनके अनुशासन, मानसिक दृढ़ता और आत्म-नियंत्रण की अद्भुत मिसाल थी। उनकी दिनचर्या में ड्यूटी के साथ सुबह की एक्सरसाइज, नियंत्रित आहार और नियमित चिकित्सकीय जांच शामिल थी। कई लोग सोच सकते हैं कि गर्भावस्था में खेलना खतरनाक हो सकता है। लेकिन यह समझना आवश्यक है कि हर गर्भावस्था अलग होती है और सही चिकित्सकीय मार्गदर्शन में हल्के-फुल्के शारीरिक व्यायाम न केवल सुरक्षित होते हैं बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी भी। सोनिका ने इसे एक मिशन की तरह लिया। वे यह दिखाना चाहती थीं कि मातृत्व और कत्र्तव्य के बीच कोई विरोध नहीं है।
जब प्रतियोगिता का दिन आया तो मंच पर उतरते समय दर्शकों ने देखा कि वह गर्भवती हैं। लेकिन उनके चेहरे पर किसी प्रकार का भय या हिचक नहीं थी, बस आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय था। उन्होंने जब वजन उठाया, तो पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। उनके प्रदर्शन ने यह साबित किया कि स्त्रियां सिर्फ परिवार का नहीं बल्कि समाज की ऊर्जा और प्रेरणा का भी केंद्र हैं। अंतत: उन्होंने मैडल जीता लेकिन उससे भी बड़ा पुरस्कार था लोगों के दिलों में प्रशंसा और आदर का मिलना। सोनिका की इस उपलब्धि ने यह संदेश दिया कि समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों और पारंपरिक धारणाओं को तोड़ा जा सकता है। वह न केवल एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपनी जिम्मेदारियां निभा रही हैं बल्कि खेलों के क्षेत्र में भी उज्जवल उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं।
दिल्ली पुलिस ने भी इस उपलब्धि पर गर्व व्यक्त किया। उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि ऐसी कहानियां प्रेरणा देती हैं कि फिटनैस और पेशेवर जिम्मेदारी एक साथ निभाई जा सकती है। पुलिस विभाग में अब कई महिला अधिकारी फिटनैस कार्यक्रमों से जुड़ रही हैं और अपने रोल मॉडल के रूप में कांस्टेबल सोनिका को देख रही हैं।
समाज के लिए यह कहानी एक विशेष संदेश लाती है। भारत में अब भी अनेक महिलाएं ऐसे माहौल में काम करती हैं जहां गर्भावस्था को कमजोरी या ‘आराम का दौर’ समझा जाता है। यह सोच बदलनी होगी। सही चिकित्सकीय सलाह और समर्थन से महिलाएं अपने पेशेवर जीवन को जारी रख सकती हैं। साथ ही, संस्थानों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि गर्भवती कर्मियों को सुविधाएं, सम्मान और समान अवसर मिलें। हम यह भी नहीं भूल सकते कि इस कहानी के पीछे परिवार का सहयोग कितना महत्वपूर्ण रहा। उनके पति और ससुराल वालों ने न सिर्फ उनका हौसला बढ़ाया बल्कि घरेलू जिम्मेदारियां बांटकर उन्हें सफल होने में मदद की। यही वह सामाजिक सांझेदारी है जो परिवर्तन की असली नींव होती है। यह लेख किसी एक महिला की कहानी भर नहीं बल्कि उस युग की शुरुआत है जहां मातृत्व और महत्वाकांक्षा एक साथ चल सकते हैं। यह एक प्रतीक है कि महिलाएं केवल जीवन देने वाली नहीं बल्कि समाज को दिशा देने वाली भी हैं। उनकी इच्छाशक्ति हर बार यह साबित करती है कि सीमाएं वे स्वयं तय करती हैं, चाहे वह खेल का मैदान हो या कानून की रक्षा का मोर्चा।-रजनीश कपूर
