भारत-पाकिस्तान के खूनी बंटवारे की विभीषिका

Tuesday, Sep 14, 2021 - 05:06 AM (IST)

अगस्त को लाल किले की प्राचीर से बोलते हुए मोदी जी ने ठीक कहा कि हिंदुस्तान की वर्तमान पीढ़ी को कम से कम यह तो ज्ञान हो कि इस आजादी की कितनी भयानक कीमत देश को चुकानी पड़ी। लीथ एंडरसन के अंग्रेजी के एक लेख के अनुसार सिर्फ 7 दिनों में 6 लाख लोग इस खूनी आजादी में मारे गए।  15 अगस्त के 3 महीने पहले और 2 महीने बाद इस आजादी ने 12 लाख जानें ले लीं। किसी भी खूनी क्रांति में इतनी जानें नहीं गईं। 

15 अगस्त की आजादी के लिए 10 लाख आदमी पंजाब और बंगाल में पाकिस्तान से जिंदा ही नहीं आए। हिंदू-सिखों की सामूहिक हत्याओं को आज सब भूल गए। अरबों की स पत्ति नष्ट हो गई। लाशों से भरी एक गाड़ी लाहौर जाती, दूसरी लाशों से भरी गाड़ी भारत पहुंच जाती। गाड़ी पर लिखा होता ‘प्रैजैंट फ्रॉम पाकिस्तान’। 

लाखों औरतों की अस्मत लूटी गई। कई नौजवान हिंदू औरतें पाकिस्तान में छूट गईं। कई माता-पिताओं ने अपनी जवान बेटियों की इज्जत बचाने के लिए उनको स्वयं मार दिया। मां-बाप ने अपने रोते-बिलखते नवजात बच्चों को कुओं में फैंक दिया। लाखों-करोड़ों की सं या में बेबस, भूखे-प्यासे हिंदू-सिखों के जत्थे भारत में पनाहगुजीरों की तरह भारत पहुंचे। पाकिस्तान में लाखों-करोड़ों के मालिक, भारत में भिखमंगों की तरह कलकत्ता, पंजाब और दिल्ली की सड़कों पर मारे-मारे फिरते नजर आए। 

शहरों के शहर, गांवों के गांव, बस्तियों की बस्तियां जला दी गईं। कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी। इंसान वहशी दरिंदा बन गया था। यह नहीं कि सिर्फ हिंदू या सिख ही मर रहे थे, मुसलमानों की भी यही दशा थी। इंसानी काफिले भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत चले जा रहे थे। ऊपर से जुलाई-अगस्त के महीने। बरसात ही बरसात।

नदियां, दरिया, नाले बरसात में ऊफान पर। तब पुल या डैम कहां थे। कई जिंदगियां इन्हीं नदी-नालों में बह गईं। पशु और इंसान एक ही जगह मरे हुए थे। बदबू से हर कहीं बुरा हाल। इस आजादी में औरत सबसे ज्यादा शर्मसार हुई। रिश्तों को तार-तार होते देखा। कोई अपना-बेगाना नहीं। हजारों सालों से इकट्ठे रह रहे हिंदू, सिख और मुसलमान 15 अगस्त की आजादी के लिए एक-दूसरे को मार रहे थे। मेरी उम्र के लोग तो आज भी जब उन दिनों को याद करते हैं तो ढाहें मार कर रोने लगते हैं। 

दोस्तो, यह खेल खेला मुस्लिम लीग ने, पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने। ये दोनों भारत विभाजन के जि मेदार थे। मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त, 1946 को पाकिस्तान की मांग मनवाने के लिए ‘डायरैक्ट एक्शन डे’ मना कर कलकत्ता में हिंदुओं के खून की होली खेली। यह खेल आगामी 6 महीनों तक चला। रक्तपात होता रहा, पाकिस्तान की मांग जोर पकड़ती गई। 

अंग्रेज 1857 की ‘आजादी की लड़ाई’ में हिंदुओं और मुसलमानों की एकता को देख कर घबरा गया था। उसने इस हिंदू-मुसलमानों की एकता को खत्म करने की योजना ‘डिवाइड एंड रूल’ अपनाई। इसका वर्णन अमरीकी लेखक स्टेनले बालपर्ट की पुस्तक ‘दि लास्ट ईयर ऑफ द ब्रिटिश ए पायर इन इंडिया’ में है। उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि लॉर्ड माऊंटबैटन 15 अगस्त की मानवीय बर्बरता और त्रासदी का पूरी तरह जिम्मेदार था। जब ब्रिटिश पार्लियामैंट ने हिंदुस्तान की आजादी का दिन जून, 1948 तय किया था तो भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माऊंटबैटन नेे 15 अगस्त, 1947 को भारत-पाकिस्तान का बंटवारा क्यों किया? वह इस हिंसा का पूरा जिम्मेदार था। उसने सारी प्लानिंग क्यों नहीं की? 

15 अगस्त की इस विभीषिका का अगर कोई दूसरा अंग्रेज जिम्मेदार था तो वह था भारत-पाकिस्तान की ‘बाऊंड्री-कमीशन’ का चेयरमैन रैडक्लिफ। भारत-पाकिस्तान के बीच की सीमाएं तय करने का वह उत्तरदायी था। उसने अंतिम दिन तक भारत-पाक की सीमाओं को गुप्त रखा। लोग भ्रमित रहे। अंतिम पल तक उन्हें पता ही नहीं चला कि कौन कहां-कहां जाएगा। कइयों को आखिर तक यही अंदेशा रहा कि एक-दो दिन की बात है, वे फिर अपने-अपने घरों को लौट आएंगे। इसी भूल में सब लुट गए। उदाहरण के तौर पर बताना चाहूंगा कि पंजाब के वर्तमान जिले गुरदासपुर और पठानकोट 3 दिन तक पाकिस्तान का हिस्सा बने रहे। भला हो जस्टिस मोह मद महाजन का कि उन्होंने अंतिम समय ये दोनों सरहदी जिले भारत को सौंप दिए। 

पंजाब के पूर्व डी.जी.पी. जुलियो रिबेरो अपने लेख में रोष प्रकट कर रहे थे कि मोदी साहिब ने 15 अगस्त आजादी के दिन पर ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाने की बात कर आजादी के दिन का मजा किरकिरा कर दिया है परन्तु मैं समझता हूं कि आजादी की कीमत क्या है, मोदी साहिब ने वर्तमान पीढ़ी को यह बताने का साहसिक कार्य किया। आजादी यूं ही नहीं मिली। लाखों देशभक्तों ने इसके लिए बलिदान दिए। अंग्रेजों की यातनाएं सहीं। फांसी तक देशभक्त चढ़े। आजादी के साथ पाकिस्तान के अलावा भी वह दिया जो बहुमूल्य, सुंदर और जरखेज था। मैं पाकिस्तान देख कर आया हूं और उस खूबसूरत इलाके को पाकिस्तान बनाने वालों पर गुस्सा आता है। 

‘भारत विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ पर यदि आप सचमुच ही गंभीर हैं तो राम मनोहर लोहिया की पुस्तक ‘दि गिल्टी मैन ऑफ पार्टीशन’ या ‘भारत में ब्रिटिश राज्य के अंतिम दिन’ पुस्तक जिसके लेखक लिओनार्ड भोसले हैं, अवश्य पढ़ें। आपको पता चलेगा कि 15 अगस्त की कीमत हमको कितनी भयानक चुकानी पड़ी। तभी तो पश्चाताप करते हुए पंडित नेहरू कह उठे थे, ‘हमें पता होता कि आजादी की प्राप्ति इतनी भयानक होगी, इतनी जानें इस आजादी में जाएंगी तो हम यह आजादी कभी न लेते।’ अत: आजादी दिवस मनाने वाले, हमारे देश के मंत्रिगण, हमारे अफसर 14 अगस्त को भारत-विभाजन की त्रासदी का इतिहास तो वर्तमान पीढ़ी को बताएं, जो सिर्फ आजादी ही मनाती रही है उसकी पीड़ा का उसे पता नहीं।- मा.मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री पंजाब)

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