सरकार पहले कार्रवाई करती है, उसके परिणामों पर विचार बाद में

punjabkesari.in Monday, Jun 20, 2022 - 05:11 AM (IST)

अग्निवीर के मुद्दे पर एक बार फिर सरकार ने कार्रवाई पहले की और इसके परिणामों पर मनन बाद में किया। एक ऐसे प्रयोग का क्या अर्थ है जिसने भर्ती के एक छोटे से हिस्से को प्रभावित किया और अचानक मौजूदा सारी प्रक्रिया को बदल दिया गया। इस योजना में इस वर्ष उन लोगों को आवेदन करने की इजाजत दी गई थी जिनकी आयु 21 वर्ष से अधिक हो और फिर बेरोजगार अग्नि वीरों के लिए अद्र्धसैनिक बलों में आरक्षण की योजना की घोषणा की गई जो हमें यह बताता है कि जो लोग भी इस योजना को लाए उन्होंने इस पर गहन विचार नहीं किया। 

हिंसा की लगभग संभावना पहले से ही थी। इस वर्ष के शुरू में इन्हीं क्षेत्रों में ऐसी ही घटनाएं भड़क उठी थीं जब रेलवे के लिए भर्ती की प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई। इस बार वे युवा जो किसी सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए प्रशिक्षण ले रहे थे और उन्होंने महामारी के कारण 2 वर्षों तक इंतजार किया था (पात्रता के लिए अधिक आयु का होने के जोखिम के साथ) और अब उन्हें यह बता दिया गया कि जिस योजना के लिए वह तैयारी कर रहे थे वह समाप्त कर दी गई है। 

उन्हें उनके पिता या पूर्वजों की तरह सेना में भर्ती नहीं किया जाएगा जिसमें गर्व के साथ सेवानिवृत्ति की पात्रता मिलती है और हमेशा फौजी कह कर बुलाया जाता है। वे अनुबंध पर होंगे तथा उनमें से अधिकतर को 4 वर्षों में घर वापस भेज दिया जाएगा। उन्होंने इसके लिए तैयारी नहीं की थी। सरकार हिंसा की घटनाओं के लिए विपक्ष को दोष दे रही है लेकिन उसके इन आरोपों में कोई विश्वसनीयता नहीं है। 

एक संकेत, कि सरकार जानती थी कि समस्या पैदा होने वाली है, यह था कि प्रधानमंत्री ने योजना की घोषणा अथवा उद्घाटन नहीं किया। इस योजना को लागू करने के लिए रक्षा मंत्री तथा सेना प्रमुखों को भेजा गया। नरेंद्र मोदी के विश्वस्त लोग यही कहेंगे कि इसमें कुछ गलत नहीं है और इसी तरह इसकी घोषणा की जानी चाहिए थी। हां, मगर यह इस तरह नहीं है जैसे कि 2014 के बाद से घटनाएं घट रही हैं। किसी भी आयात के मामले में केवल एक ही व्यक्ति होता है जो यह कहने के लिए कैमरों के सामने आता है कि बहुत बढिय़ा तथा नई चीजें होने वाली हैं। 225 वर्ष पुरानी भर्ती की परम्परा को समाप्त करके रातोंरात इसे बदलना, यह एक ऐसा मास्टरस्ट्रोक है जिसकी घोषणा केवल मोदी जी कर सकते हैं। 

अग्निवीर भी कृषि कानूनों, सी.ए.ए., नोटबंदी तथा लॉकडाऊन जैसी चीजों की सूची में शामिल हो गए हैं जिनकी घोषणा सरकार ने पहले की तथा बाद में उन पर विचार किया। प्रश्न यह है कि क्या इसका अंत भी कृषि कानूनों तथा सी.ए.ए. की ही तरह होगा जिन्हें रोक लिया गया अथवा प्रतिरोध के कारण ताक पर टांग दिया गया।

मेरी राय में अग्निवीर योजना जारी रहेगी क्योंकि इस तरह के हिंसक प्रदर्शन अधिक लम्बे समय तक जारी नहीं रहते तथा जो युवा वर्तमान में अपने गुस्से का प्रदर्शन कर रहे हैं आखिरकार अपने घरों को लौट जाएंगे। हमने इससे पहले नौकरियों के मुद्दे पर हिंसा देखी, उदाहरण के लिए 2015 में पाटीदार आंदोलन के दौरान जो शुरू में एक जन आंदोलन दिखाई देता था कुछ दिन बाद धीरे-धीरे कमजोर होता गया और दरअसल आरक्षण एवं नौकरियों के लिए उनकी कोई भी मांग पूर्णत: पूरी नहीं हो पाई। 

केवल लम्बे समय तक चले शांतिपूर्ण जन आंदोलनों, जैसे कि सी.ए.ए. तथा कृषि कानूनों के मामले में, ने विजय प्राप्त की। युवाओं के लिए बेहतर होता कि अग्निवीर योजना पर गुस्सा दिखाने की बजाय वे दीर्घकाल को ध्यान में रखते हुए शांतिपूर्ण रवैया अपनाते मगर उनके पास कोई संगठित नेतृत्व के साथ-साथ एक औपचारिक समूह भी नहीं है। 

चीज यह है कि बेरोजगारी तथा नौकरियों का न होना निजी तौर पर शर्म का मामला है। ऐसे लोगों के समूह को गतिशील करना आसान नहीं जो अन्यों के साथ एक समूह के तौर पर अपनी पहचान बनाए जिन्हें काम नहीं मिल पाता। यहां तक कि यदि वे साथ आते भी हैं, जैसा कि इस वर्ष 2 बार उन्होंने किया, उन्हें अपनी भावनाओं तथा निराशा को व्यक्त करने के लिए गुस्सा दिखाने की बजाय एक शांतिपूर्ण आंदोलन करना चाहिए। इस कारण मेरा मानना है कि यह विशेष घटनाक्रम पृष्ठभूमि में चला जाएगा तथा सरकार अग्निवीर योजना को आगे बढ़ाने में सक्षम होगी। मेरे से अधिक ज्ञानवान लोगों ने इस योजना के लाभों अथवा खामियों के बारे में लिखा है लेकिन दोनों पक्षों को सुनने के बाद यह स्पष्ट है कि दोषों की प्रकृति आपत्तिजनक है जबकि इसके गुण विशुद्ध तौर पर कम धन खर्च करने के बारे में हैं। 

यहां ध्यान देने वाली अंतिम चीज यह है कि जहां बेरोजगारी को लेकर लोगों को गतिशील करना आसान नहीं है, समस्या गहरी है तथा दूर नहीं होगी। सामयिक कार्यबल सर्वेक्षण से सरकार द्वारा इस माह जारी आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में नौकरियां बढऩे की बजाय उनमें कमी आ रही है। आज जो लोग ‘नौकरी में हैं’, उनमें से पूरे 17 प्रतिशत वे हैं जो बिना भुगतान वाले घरेलू कर्मचारी श्रेणी में हैं, अर्थात वे गृहिणियां हैं। इतिहास में पहली बार भारत ने देखा है कि लोग निर्माण तथा सेवाओं से दूर होकर कृषि क्षेत्र में जा रहे हैं। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह वृद्धि बेरोजगारी के लिए एक प्रॉक्सी है। इसका अर्थ यह हुआ कि जो लोग शहरों में नौकरियों से गांवों में वापस लौटे हैं वे कृषक होने का दावा करते हैं क्योंकि वह यह कहने में अत्यंत शॄमदगी महसूस करते हैं कि वे बिल्कुल काम नहीं कर रहे (एक बार फिर बेरोजगारी की शर्म)। 

कुल मिलाकर सरकार के आंकड़े तथा निजी फर्म सी.एम.आई.ई. में कोई अंतर नहीं है, जिसका कहना है कि 15 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय, जो काम कर रहे हैं अथवा काम की तलाश में है, की संख्या लगभग 40 करोड़ है। प्रतिभागिता की दर दक्षिण एशिया में सर्वाधिक कम तथा विश्व में सर्वाधिक कम में से एक है। नए भारत में नौकरियां नहीं हैं तथा सेना भर्ती को लेकर गुस्सा एक अधिक बड़ी समस्या का लक्षण है।-आकार पटेल 


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