सरकार नहीं मानती कि अर्थव्यवस्था संकट में है
punjabkesari.in Sunday, Nov 12, 2023 - 05:25 AM (IST)

देश में कई अर्थशास्त्री हैं और बैंक अर्थशास्त्री भी हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों की मानें तो भारत की अर्थव्यवस्था या इसके प्रबंधन में कुछ भी गलत नहीं है और इससे भी बेहतर, कभी भी गलत नहीं हो सकता है। यदि आप बैंक अर्थशास्त्रियों पर विश्वास करते हैं, तो आर.बी.आई. स्वर्ग में है और भारत की अर्थव्यवस्था के साथ सब कुछ ठीक है (जब तक कि आर.बी.आई. इसके विपरीत संकेत नहीं देता)। काश वे उतने ही सच्चे होते जितने वे वफादार होते हैं। 1 अक्तूबर, 2023 को, हमने वर्तमान सरकार के अंतिम आधे वर्ष में कदम रखा, जो 30 मई, 2024 को 10 वर्ष पूरे करेगी। अप्रैल और मई 2024 शासन के लिए एक आभासी अवकाश होगा। इसलिए यह अर्थव्यवस्था की स्थिति की समीक्षा करने का एक अच्छा समय है।
भारत जैसे विकासशील देश में, सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की वृद्धि दर किसी भी अन्य मीट्रिक से अधिक एक संख्या है, जो अर्थव्यवस्था की स्थिति को दर्शाती है। इसलिए मैं भाजपा के शासन के 10 वर्षों में विकास दर से शुरूआत करता हूं। एन.एस.ओ. के आंकड़ों के मुताबिक, पहले 9 साल में औसत विकास दर 5.7 फीसदी थी। 2023-24 में सरकार द्वारा अनुमानित 6.5 प्रतिशत की विकास दर को जोडऩे पर 10 वर्षों का औसत 5.8 प्रतिशत होगा। इसकी तुलना यू.पी.ए.-ढ्ढ और यू.पी.ए.-ढ्ढढ्ढ के तहत हासिल की गई विकास दर से करें। यू.पी.ए.-ढ्ढ के 5 साल का औसत 8.5 फीसदी था और यू.पी.ए.-ढ्ढ और यू.पी.ए.-ढ्ढढ्ढ के 10 साल का औसत 7.5 फीसदी था।
कुछ अर्थशास्त्री 1.8 प्रतिशत की गिरावट को महत्वहीन बताकर खारिज कर सकते हैं। यह बिल्कुल गलत होगा। गिरावट का राष्ट्रीय सुरक्षा, बुनियादी ढांचे के खर्च, निवेश, रोजगार सृजन, कल्याणकारी उपायों, घरेलू खपत, बचत, गरीबी में कमी और शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
दो शीर्ष चिंताएं : लोगों के मन में दो चिंताएं सबसे ऊपर हैं-महंगाई और बेरोजगारी। बढ़ती कीमतों के कारण, अमीरों को छोड़कर जैसे कि शीर्ष 10 प्रतिशत-हर परिवार को घरेलू बजट को संतुलित करना मुश्किल हो रहा है। अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (नई शृंखला) जो 2013-14 में 112 पर था, दिसंबर 2022 में बढ़कर 174 हो गया। खाद्य मुद्रास्फीति 10 प्रतिशत के करीब है। इसका तात्कालिक परिणाम घरेलू खपत में कटौती है। आय के हर स्तर पर, परिवार खर्च में बचत कर रहे हैं या अपनी बचत में कटौती कर रहे हैं। परिवारों की शुद्ध वित्तीय संपत्ति गिरकर 5.1 प्रतिशत के निचले स्तर पर आ गई है। एफ.एम.सी.जी. कंपनियों ने ब्रांड के प्रति वफादारी बनाए रखने के लिए समान कीमत पर छोटे पैकेज पेश किए हैं। दोपहिया वाहनों की बिक्री में कमी घरेलू खपत पर मूल्य वृद्धि के प्रभाव का एक अच्छा संकेतक है।
दूसरी सबसे बड़ी चिंता बेरोजगारी है। दावों के विपरीत, पिछले 10 वर्षों में लाखों नौकरियां पैदा नहीं हुई हैं और निश्चित रूप से 1 वर्ष में 2 करोड़ नौकरियां देने का वायदा भी नहीं किया गया है (जैसा कि चुनावी जुमला बताया गया है)। आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 10 सालों में एक साल को छोड़कर हर साल बेरोजगारी दर 7 फीसदी से ऊपर रही है। स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2023 रिपोर्ट के अनुसार स्नातकों के बीच बेरोजगारी दर 42 प्रतिशत है। 2022 में युवाओं (15-24 वर्ष) के बीच बेरोजगारी दर 23.22 प्रतिशत थी। आज अधिकांश ‘रोजगार’ स्व-रोजगार (57 प्रतिशत) है। नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों का अनुपात 24 प्रतिशत से गिरकर 21 प्रतिशत हो गया है। सी.एम.आई.ई. डाटा से पता चलता है कि वर्तमान सरकार के तहत (2015-2023 के दौरान) सरकारी नौकरियों की संख्या में 22 प्रतिशत की गिरावट आई है।
चाय की पत्तियां पढऩा : वित्त मंत्रालय मासिक समीक्षा प्रकाशित करता है। 23 अक्तूबर को जारी सितंबर 2023 की समीक्षा कोड भाषा में बोलती है : निकट अवधि के वैश्विक दृष्टिकोण के लिए जोखिम, लगातार लागत दबाव, मुद्रास्फीति की उम्मीदों में ऊपर की ओर बहाव, लंबे समय तक उच्च नीति दरें, तरलता और क्रैडिट जोखिमों का अचानक पुनर्मूल्यांकन, कमोडिटी में प्रतिकूल आपूर्ति झटके बाजार और ऊर्जा की कीमतों में उछाल। स्पष्ट शब्दों में समीक्षा का निराशाजनक निष्कर्ष यह है कि आर्थिक दृष्टिकोण निराशाजनक है, विकास धीमा हो जाएगा, कीमतें बढ़ेंगी, ब्याज दरें अधिक होंगी, घरेलू खपत कम हो जाएगी, बचत घट जाएगी और उधार बढ़ जाएगा।
एक रेटिंग एजैंसी के एक अर्थशास्त्री ने हाल ही में लिखा, ‘‘बैंक ऋण वृद्धि 15 प्रतिशत से अधिक मजबूत बनी हुई है, जबकि खुदरा ऋण वृद्धि 18 प्रतिशत से अधिक है।’’ वास्तव में प्रभावशाली है, जब तक कि कोई डाटा का गहराई से अध्ययन नहीं करता और पता नहीं चलता कि ऋण वृद्धि व्यक्तिगत ऋण (23 प्रतिशत) और स्वर्ण ऋण (22 प्रतिशत) में वृद्धि से प्रेरित है। अगस्त 2023 में उद्योग में ऋण वृद्धि सिर्फ 6.1 प्रतिशत थी। पिछली 4 तिमाहियों में औसत मासिक आय में 9.2 प्रतिशत की गिरावट आई है (12,700 रुपए से 11,600 रुपए तक) और एक ग्रामीण आकस्मिक मजदूर के लिए औसत दैनिक वेतन 409 रुपए से गिरकर 388 रुपए हो गया है। यह एक उचित अनुमान है कि वृद्धि व्यक्तिगत ऋण और स्वर्ण ऋण उपभोग के लिए थे।
तीन इंजन रुके : अर्थशास्त्रियों ने बताया है कि अकेले सरकारी निवेश का इंजन काम करता दिख रहा है जबकि निजी निवेश, निजी खपत और निर्यात ठप्प हो गए हैं। निर्यात में तेजी लाने, निजी निवेश को प्रोत्साहित करने और अधिक खपत को प्रोत्साहित करने के तरीके और साधन मौजूद हैं। जब तक सरकार कमजोरियों और खतरों से इन्कार करती है तब तक उसे ताकत और अवसर नहीं मिल सकते। यह एक कठिन शरद ऋतु रही है, सर्दी कठोर हो सकती है और हम केवल आशा कर सकते हैं कि बसंत खुशियां लाएगा।-पी. चिदम्बरम