सरकार-विपक्ष को एकजुट रुख अपनाना होगा

punjabkesari.in Friday, Jun 06, 2025 - 05:55 AM (IST)

भारत -पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए संघर्ष पर अपने रुख को लेकर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस अंधेरे में टटोलती और तिनके का सहारा लेती दिख रही है। इसके नेताओं द्वारा अपनाए गए विरोधाभासी रुख से पार्टी की विश्वसनीयता और कम हो रही है और इसके सदस्यों और समर्थकों में भ्रम फैल रहा है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी के कुछ हालिया बयान न केवल अपरिपक्व हैं बल्कि खराब संवाद वाले भी हैं। सोशल मीडिया पर एक वीडियो में वे पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मजाक उड़ाते नजर आ रहे हैं। उन्हें यह कहते हुए सुना जा सकता है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ‘नरेंद्र को आत्मसमर्पण करने के लिए’ कहा और प्रधानमंत्री ने तुरंत ऐसा करने के लिए सहमति दे दी। 

राहुल गांधी सरकार पर भारत के नुकसान की घोषणा करने और इस मुद्दे पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने पर भी जोर दे रहे थे। किसी भी देश के इतिहास में ऐसे समय आते हैं जब सभी नागरिकों को एकजुट होकर सरकार के पीछे मजबूती से खड़ा होना चाहिए। बाद में सरकार को उसके कार्र्यों और विफलताओं के लिए फटकार लगाने के लिए पर्याप्त अवसर मिलते हैं। साथ ही, यह भी सच है कि सरकार को ज्यादा संवादात्मक होना चाहिए था और यह बताना चाहिए था कि अचानक युद्ध विराम क्यों हुआ? जबकि गोदी मीडिया और अंधभक्त सभी उत्तेजित थे और खून के प्यासे थे। युद्ध विराम की पहली घोषणा ट्रम्प की ओर से की गई, जो पूरी तरह से टालने योग्य बात थी।

हालांकि, इन सवालों का भी इंतजार किया जा सकता है। सरकार ने विभिन्न देशों में भारत के रुख से अवगत कराने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने की सराहनीय पहल की। कांग्रेस नेता शशि थरूर को सबसे महत्वपूर्ण देश अमरीका में प्रतिनिधिमंडल का प्रमुख बनाने का उसका फैसला एक ‘मास्टर स्ट्रोक’ था। चौंकाने वाली बात यह है कि कांग्रेस ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के लिए नामित पार्टी नेताओं में उनका नाम शामिल नहीं किया। यह इस तथ्य के बावजूद है कि शशि थरूर पार्टी के सबसे मुखर और तीखे नेता हैं। 

सूची से उनका नाम न होना पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में असुरक्षा की भावना को दर्शाता है। उम्मीदों के मुताबिक उन्होंने भारत के विचारों को फैलाने में सराहनीय काम किया। कांग्रेस के एक अन्य नेता सलमान खुर्शीद ने भी देश के रुख को स्पष्ट रूप से व्यक्त करके सभी को प्रभावित किया। यह याद रखना अच्छा होगा कि कांग्रेस भी संकट के समय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजती रही है और ऐसे प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व करने के लिए वह सर्वश्रेष्ठ विपक्षी नेताओं का चयन करती रही है। सबसे पहले, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1971 में बंगलादेश को आजाद कराने के लिए युद्ध से पहले तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से जुड़े संकट पर भारत का रुख बताने के लिए अपने सबसे शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी जयप्रकाश नारायण को पश्चिमी राजधानियों में भेजा था। जैसा कि सर्वविदित है, नारायण ने बाद में एक आंदोलन का नेतृत्व किया जिसकी परिणति आपातकाल लगाने और उस अवधि के दौरान उनकी खुद की गिरफ्तारी के रूप में हुई। 

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भी सबसे स्पष्ट और तीखे नेता अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र में देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा था। जब ऐसी कार्रवाई की आवश्यकता होती है तो योग्यता ही एकमात्र मानदंड होना चाहिए और शशि थरूर नि:संदेह वर्तमान परिस्थितियों में सबसे अच्छा विकल्प थे। हालांकि,राहुल गांधी मल्लिकार्जुन खरगे और जयराम रमेश जैसे अन्य नेताओं को लगता है कि सरकार को घेरने का यह सही समय है और वे सार्वजनिक रूप से सवाल उठाने के अलावा संसद के विशेष सत्र की मांग कर रहे हैं। भले ही संसद लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है और सरकार इसके प्रति जवाबदेह है लेकिन ऐसे मुद्दे हैं जिन पर संसद या अन्य खुली बैठकों में बहस नहीं की जा सकती। यह सरकार को जानकारी सांझा करने से मुक्त नहीं करता है। इसे संबंधित पक्षों से सम्पर्क करना चाहिए और राष्ट्रीय हित से समझौता किए बिना विस्तृत चर्चा करनी चाहिए।-विपिन पब्बी
 


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