अयोध्या का विवादास्पद स्थल हिन्दुओं को सौंपने में ही देश का भला

Friday, Mar 24, 2017 - 12:48 AM (IST)

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में बातचीत से हल निकालने की बात कही है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे.एस. खेहर ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह मामला संवेदनशील और आस्था से जुड़ा है। इसलिए बातचीत से अदालत के बाहर इसका हल निकालने का प्रयास होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जरूरत पडऩे पर अदालत इसमें मध्यस्थता भी कर सकती है।

जिस समय 90 के दशक में इस मामले पर खूब राजनीति हो रही थी, इसकी आड़ में कुछ दलों और संगठनों, जिन्हें कोई जानता भी नहीं था, ने खूब खेल खेला और जमकर फायदा उठाया। इस मामले पर मैंने 19 फरवरी 1993 को पंजाब केसरी में एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था: ‘हम हिन्दू-मुसलमान की बजाय भारतीय बनकर अयोध्या का मसला अभी भी हल कर सकते हैं।’ उस समय अयोध्या मसले को लेकर जगह-जगह हुई हिंसा, तोडफ़ोड़ से मेरे मन को भारी ठेस पहुंची। मैंने उस समय लोगों के चेहरे पर डर देखा। मैं सोचता था कि क्या देश के लोग हमेशा ऐसे ही लड़ते रहेंगे। हमारे बड़े हमें सन् 1947 की यादें/बातें सुनाते थे और उस डर को 1993 में हम साक्षात देख रहे थे। 

उस लेख में मैंने भारत के मुस्लिम भाइयों को इशारे से समझाने का प्रयास किया था कि अगर चाहें तो स्वेच्छा से मुस्लिम इसका हल निकाल सकते हैं। मेरा इशारा उस समय यह था कि मुसलमान बड़े दिल वाले बनकर खुशी-खुशी वह जगह हिन्दुओं को सौंप दें। उस समय कोई सोशल मीडिया, इंटरनैट आदि इतने ज्यादा नहीं थे। मुझे सिर्फ चंद प्रतिक्रियाएं पत्रों के माध्यम से मिली थीं जो सकारात्मक थीं। रोजी-रोटी के जुगाड़ में उलझ कर मैं भी लिखता रहा मगर यदा-कदा लेकिन उस समय के शासकों तक मेरी बात शायद नहीं पहुंची थी। 

आज के समय में मैं फिर यही बात कहूंगा जो सुप्रीम कोर्ट ने कही है क्योंकि आस्था के मामले मिल-बैठ कर सुलझाए जाते हैं। दिलों को बड़ा करना पड़ता है। इसमें जरूरत मुसलमानों को अपना दिल बड़ा करने की है। उन्हें शायद आस्था के महत्व को देखते हुए उस स्थान की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है लेकिन यहां अपने हिन्दू भाइयों की आस्था ज्यादा महत्व रखती है। यही हमें समझने की जरूरत है। मैं आज के नौजवान मुसलमानों और हिन्दुओं को बताना चाहता हूं कि इस विवाद से जितने झगड़े, हिसा, लूटपाट हुई इसकी भरपाई तो देर-सवेर हो गई लेकिन जो नुक्सान आपसी सौहार्द का हुआ, उसकी भरपाई के लिए अभी समय लगेगा। 

उस समय मैं सोचता था कि हमारे समाज में अशिक्षा और अज्ञानता की वजह से हमारे मुस्लिम समाज व हिन्दू समाज को कुछ कट्टरपंथी लोग बहका लेते हैं लेकिन दुर्भाग्य से आज हमारे शिक्षित नौजवान, चाहे हिन्दू हों या मुसलमान, कुछ ज्यादा ही बहकावे में आ जाते हैं। मेरा मानना है देश दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करे। देश का विकास, मतलब हर देशवासी का विकास है। इसके लिए हमें पहले वातावरण बनाना है। हमें देश की तरक्की में रोड़ा बने कुछ मामलों को हल करना है।अयोध्या का मामला तो दोहरा नुक्सान कर रहा है। 

देश के विकास का भी और आपसी सौहार्द का भी। क्यों न हम मिलजुल कर इस कांटे को अलग कर दें। अयोध्या हिन्दू भाइयों के धार्मिक महत्व का केन्द्र है। हमें खुलकर हिन्दुओं को वह स्थान सौंपना चाहिए। इससे हिन्दुओं में हमारे प्रति सम्मान बढ़ेगा। रही बात मस्जिद की तो जब सऊदी अरब जैसे देश में सड़क की राह में आ रही मस्जिद हटाई जा सकती है तो फिर हमारे विकास और सौहार्द की राह में आड़े आ रही उस बिना महत्व की जगह को हम क्यों न देश को सौंप दें। 

किन्तु इसके खिलाफ हमारे कुछ दकियानूसी और छोटी सोच वाले लोग ही हमें उकसाएंगे और हमें बरगलाएंगे क्योंकि ऐसा करने से वे खुद को साबित करना चाहते हैं और यह भी सच है कि हमें नकारात्मक बातें जल्दी भाती हैं, जबकि सकारात्मक बातों में हम उलझ जाते हैं। विवादित स्थल हिन्दुओं को सौंपने की मेरी बात शायद कट्टरपंथी विचारों वाले लोगों को बुरी लगेंगी। हो सकता है वे तर्क-वितर्क करें लेकिन ये सब इस समय नहीं क्योंकि हमें बड़ा बनने का एक बार फिर मौका मिला है। सब तर्क-वितर्कों को दरकिनार करके हमें एक मिसाल दुनिया को देनी है।

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