उत्तराधिकार का खेल, कौन बनेगा ‘सचिवों का सचिव’

Sunday, Mar 19, 2017 - 11:23 PM (IST)

राज्य विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आ चुके हैं और दिल्ली में अब घरेलू मामलों पर ध्यान दिया जाना शुरू कर दिया गया है। इन दिनों जिन मामलों में दिलचस्पी बढ़ रही है, उनमें देश के सबसे वरिष्ठ बाबू पद भी हैं। मंत्रिमंडल सचिव पी.के. सिन्हा का कार्यकाल जून में समाप्त हो रहा है और 1977 बैच के यू.पी. काडर के इस अधिकारी की जगह पर आने के लिए वरिष्ठ बाबुओं में दौड़ शुरू हो गई है। 

मंत्रिमंडल सचिव का पद हालांकि 2 साल के तय कार्यकाल के तौर पर होता है लेकिन हमेशा इस नियम पर अमल नहीं किया जाता है। सिन्हा के पूर्वाधिकारी अजीत सेठ इस पद पर 4 साल तक बने रहे, उनका नियमित कार्यकाल 2013 में समाप्त हो गया था और उसके 2 साल बाद तक उन्हें 2 बार सेवा विस्तार भी दिया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय या बाबू गलियारों से अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं है कि सिन्हा को सेवा विस्तार मिलने जा रहा है। कुछ लोगों का कहना है कि अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी लेकिन इस पद पर आने के लिए वरिष्ठ बाबुओं में दौड़ अंदरखाते शुरू हो गई है। 

अगर वरिष्ठता क्रम को ध्यान में रखें तो मध्य प्रदेश काडर के 1980 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी पी.डी. मीणा, भारत सरकार के सर्वाधिक वरिष्ठ सेवारत सचिव हैं और इस क्रम में सबसे ऊपर हैं, पर हमेशा वरिष्ठता को ध्यान में नहीं रखा जाता है। 1980 बैच के हरियाणा काडर के वित्त सचिव अशोक लवासाइस दौड़ में सबसे आगे चल रहे हैं, हालांकि वह नवम्बर में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। अभी तक अन्य दावेदारों में 1981 बैच के पैट्रोलियम सचिव के.डी. त्रिपाठी और 1981 बैच के पंजाब काडर के अधिकारी अंजुलि चिब दुग्गल भी शामिल हैं। कार्मिक सचिव बी.पी. शर्मा भी इस दौड़ में शामिल हैं। शिक्षा सचिव अनिल स्वरूप का नाम भी शामिल है। अनुमान लगाने का खेल अभी शुरू ही हुआ है और फैसले का दिन आने तक यह खेल और भी दिलचस्प हो जाएगा।

वहीं गुजरात में काम कर चुके आई.ए.एस. अधिकारी के. कैलाशनाथन का मामला भी सभी के लिए दिलचस्प बना हुआ है जो कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दिनों से विश्वासपात्र हैं। उनको लेकर चर्चाएं चल रही हैं। उन्हें भी दिल्ली लाया जा सकता है। अब देखना यह होगा कि क्या वह एडीशनल पिंसीपल सचिव पी.के. मिश्रा का विकल्प बनेंगे या कुछ और ही सामने आएगा? इस संबंध में और अधिक अपडेट्स के लिए यहीं पर नजर बनाए रखें।

आई.ए.एस. खो रहे हैं अपनी जमीन
क्या आई.ए.एस. लॉबी मोदी सरकार के साथ अपनी निकटता को खो रही है? लम्बे समय से ये आरोप लगते आ रहे हैं कि अन्य ऑल इंडिया सॢवसेज की तरफ से आरोप लगता आ रहा है कि सभी प्रमुख पदों को आई.ए.एस. द्वारा कब्जा लिया गया है और 2014 से वे धीरे-धीरे अपनी पकड़ को खो रहे हैं। कुछ जानकारों का दावा है कि तब से कई आई.ए.एस. अधिकारी केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने से बच रहे हैं और ऐसे में प्रधानमंत्री कार्यालय खुशी-खुशी से गैर-आई.ए.एस. अधिकारियों को उन पदों पर नियुक्त कर रहे हैं, जिन पर पहले सिर्फ ‘मुंह में चांदी का चम्मच लेकर’, बने आई.ए.एस. अधिकारियों को ही नियुक्त किया जाता था। 

अब तक मोदी सरकार द्वारा संयुक्त सचिव पदों को लेकर करीब 300 नियुक्ति आदेश जारी किए गए हैं और इनमें से एक तिहाई पद गैर-आई.ए.एस. अधिकारियों द्वारा हासिल किए गए हैं। लम्बे समय से उन्हें कुलीन आई.ए.एस. अधिकारियों के गरीब भाई-भतीजों के तौर पर ही देखा जाता रहा है। कई प्रमुख मंत्रालयों जैसे गृह, पैट्रोलियम, रक्षा, खनन, सड़क परिवहन और विद्युत में कई गैर-आई.ए.एस. अधिकारियों को संयुक्त सचिव के तौर पर नियुक्त किया गया। ये पद केन्द्र में नौकरशाही के पदक्रमांक में प्रमुख नीति-निर्माता पदों में शामिल हैं। 

हालांकि, गत सप्ताह, जब केन्द्र सरकार ने 16 नए संयुक्त सचिव रैंक के अधिकारियों को नियुक्त किया तो इस चयन की सबसे खास बात यह थी कि चुने गए 16 अधिकारियों में से 10 गैर-आई.ए.एस. सेवाओं से थे। इन 10 गैर-आई.ए.एस. अधिकारियों में से 2-2 भारतीय वन्य सेवा (आई.एफ.ओ.एस.), भारतीय लेखा परीक्षा सेवा (आई.ए. और ए.एस.), केन्द्रीय सचिवालय सेवा (सी.एस.एस.) अधिकारी हैं और 1-1 अधिकारी आई.आर.एस.-आई.टी., भारतीय सूचना सेवा (आई. आई.एस.), भारतीय डाक सेवा (आई.पी.ओ.ए.एस.) और भारतीय रेलवे लेखा सेवा (आई.आर.ए.एस.) अधिकारी शामिल हैं। 

इन नियुक्तियों से मोदी सरकार ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि प्रमुख मंत्रालयों में वरिष्ठ पदों के लिए सिर्फ आई.ए.एस. अधिकारियों से ही प्रतिभाओं को चुना जाना जरूरी नहीं है। सरकार के इन कदमों से आई.ए.एस. बाबुओं की नाराजगी बढऩा तय है, पर वे कर भी कुछ नहीं पा रहे हैं। अब सरकार इन कदमों से उन्हें और क्या संदेश देना चाहती है, इसका खुलासा भी आने वाले दिनों में हो ही जाएगा।     

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