एक बाबू के लिए अभी खेल खत्म नहीं हुआ

punjabkesari.in Saturday, Sep 04, 2021 - 03:40 AM (IST)

गुजरात को 1986 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी पंकज कुमार बतौर नए प्रमुख सचिव मिले हैं। मगर बाबुओं के बीच कुमार के पूर्वाधिकारी अनिल गोपीशंकर मुकीम के बारे में ज्यादा उत्सुकता है, जो अपना विस्तृत कार्यकाल खत्म कर चुके हैं। इसीलिए कहा जा रहा है कि गोपीशंकर के लिए अभी खेल खत्म नहीं हुआ। 

राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने हाल ही की एक कैबिनेट मीटिंग के दौरान संकेत दिया है कि गुजरात अभी भी गोपीशंकर के परामर्श तथा उनकी सेवाएं प्राप्त करने के लिए इच्छुक हैं। पर्यवेक्षक हालांकि अभी भी संदेह में हैं कि क्या गोपीशंकर राज्य में रुकेंगे या फिर दिल्ली की ओर प्रस्थान करेंगे जहां पर उनके केंद्र में अच्छे घनिष्ठ संबंध हैं। ऐसा निश्चित लग रहा है कि गोपी शंकर सेवानिवृत्ति के बाद के आधिकारिक पद पर बने रहेंगे। या तो गुजरात में या फिर वह दिल्ली में स्थापित होंगे। 

कुछ बाबुओं का मानना है कि रूपाणी गोपीशंकर मुकीम को गुजरात इलैक्ट्रिसिटी रैगुलेटरी अथॉरिटी प्रमुख या फिर प्रतिष्ठित गुजरात इंटरनैशनल फाइनांस टैक-सिटी (गिफ्ट) के निदेशक के तौर पर उन्हें लगा सकते हैं। ऐसी भी चर्चा है कि केंद्र के साथ उनके खड़े होने के कारण उन्हें अगला प्रमुख विजीलैंस आयुक्त बनाया जा सकता है। या फिर उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) में लिया जा सकता है। यहां पर कुछ रिक्तियां खाली होंगी और चुने हुए लोगों को वहां लगाया जा सकता है। गुजरात बाबुओं के लिए मोदी के दिल में हमदर्दी को देखते हुए यह सब आश्चर्यजनक बात नहीं लगती। ऐसा भी माना जाता है कि अनिल गोपीशंकर मुकीम को उनकी दोष रहित सेवाओं के लिए पुरस्कृत किया जा सकता है। 

गुमराह हुई सरकारों को नजदीक से देख रहा सर्वोच्च न्यायालय : सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक कारणों के लिए बाबुओं के निलम्बन के ट्रैंड से मुंह फेर लिया है। न्यायालय ने छत्तीसगढ़ पुलिस को निर्देश दिया है कि वह अपने ही निलम्बित वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी गुरजिंद्र पाल सिंह को गिरफ्तार न करे, जिनके खिलाफ राज्य सरकार ने देशद्रोह तथा आय से ज्यादा सम्पत्ति अर्जित करने के दो आपराधिक मामले दर्ज किए हैं। हालांकि न्यायालय ने राज्य सरकार को वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ चल रही जांच को जारी रखने का हुक्म सुनाया है। यह एक विचलित प्रवृत्ति है जहां पर सत्ताधारी सरकारें उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करना आरंभ करती हैं जिन्होंने पूर्व की सरकारों का समर्थन किया होता है। यह कोई नई बात नहीं। यह ट्रैंड वर्षों से मानक के अनुसार चल रहा है। 

सत्ताधारी सरकारें अपने पसंदीदा अधिकारियों को आगे लेकर आती हैं तथा उन अधिकारियों को दंडित करती हैं जो पुरानी व्यवस्था से जुड़े रहे हैं। वास्तव में ऐसा बहुत कम देखा गया है जहां एक सरकार वरिष्ठ बाबुओं के साथ किसी भी प्रतिशोध की राजनीति में संलिप्त नहीं रहती। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का यह मतलब नहीं कि गुरजिंद्र पाल सिंह मुश्किल से बाहर हो गए हैं। उनके खिलाफ मामला चलता रहेगा मगर कुछ अन्यों के लिए यह राहत भरी खबर जरूर है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय गुमराह हुई सरकारों को नजदीक से देख रही है। 

एम.पी.एस.सी. उनकी महत्वपूर्ण  नियुक्तियों में देरी : हालांकि महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग  (एम.पी.एस.सी.) के चेयरमैन सतीश गवई इस सप्ताह सेवानिवृत्त हो रहे हैं, राज्य सरकार ने यह उल्लेख किया है कि उनके वारिस की तलाश अब जारी है। एम.पी.एस.सी. में खाली पदों को भरने के लिए डैड लाइन निकल जाने के लिए नौकरशाह महाराष्ट्र की बाढ़ स्थिति को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। चेयरमैन गवई के अलावा 4 अन्य सदस्यों के पद भी रिक्त पड़े हुए हैं। गवई ने यह मुद्दा सरकार के आगे अनेकों समय उठाया है। सरकार के ढिलमुल रवैये के कारण 2000 पद को भरना बाकी है जिसमें इंजीनियर तथा डिप्टी कलैक्टर के पद शामिल हैं।  स्टाफ की नियुक्तियों में एम.पी.एस.सी. एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके पास 6 सदस्य हैं मगर लम्बे समय से गवई तथा अन्य सदस्य दयानंद मेषराम जहाज को आगे चला रहे हैं।-दिल्ली का बाबू दिलीप चेरियन
 


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