आगरा शिखर सम्मेलन की विफलता और मोदी का उत्थान

punjabkesari.in Monday, Feb 27, 2023 - 05:00 AM (IST)

जनरल परवेज मुशर्रफ के निधन को अलग नजरिए से देखा गया। विडम्बना यह है कि आगरा शिखर सम्मेलन की विफलता ने इसे संभवत: सबसे ऐतिहासिक भारत-पाक घटना बना दिया। असफलता कट्टर हिंदुत्व के लिए प्रस्थान का बिंदू बन गई जिसने दोगुने समय में गहरी जड़ें जमा लीं। पाकिस्तान के सामान्य दृष्टिकोण पर भारतीय राजनीति विभाजित हो गई थी। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विदेश मंत्री जसवंत सिंह पाकिस्तान की ओर एक नर्म रवैया रखते थे मगर बाकी भाजपा नेतृत्व दृढ़ता से ऐसे विचारों को चुनौती देता था।

इस बारे में विशेष रूप से विवेक काटजू जैसे कट्टरपंथियों द्वारा लगातार जानकारी दी गई थी। दोनों दृष्टिकोणों के बीच झगड़े का कारण भाजपा की आंतरिक राजनीति है। यह दिन के उजाले की तरह स्पष्ट था कि वाजपेयी दृढ़ता से एक नर्म मंच के पक्ष में थे जो पाकिस्तान के प्रति एक ऐसा रवैया रखते थे जो उनके लिए एक मंत्र बन गया था। उनका कहना था, ‘‘हम अपने पड़ोसियों को नहीं बदल सकते। हमें उनके साथ रहना होगा।’’ इस दृष्टिकोण के ठीक विपरीत कट्टर हिंदुत्व था जो एक स्थायी पाकिस्तान विरोधी राष्ट्रवाद पर आधारित था।

मुसलमानों और कश्मीरियों का संदेह इस दृष्टिकोण का अभिन्न अंग था। चुनाव के समय कठोर या नर्म हिंदुत्व रणनीति का विषय बन गया। चूंकि जुलाई में आगरा शिखर सम्मेलन हुआ था तो भाजपा नेतृत्व के एक वर्ग ने यू.पी. विधानसभा के प्रमुख चुनावों पर अपनी नजरें गड़ा दी थीं जो 6 महीने में फरवरी के अंत में होने वाले थे। यू.पी. चुनाव के स्पष्ट उद्देश्य के लिए कट्टरपंथियों ने जीतने के लिए हर ताकत का इस्तेमाल किया।

वाजपेयी के अधिक समावेशी विचार को खारिज करने के लिए शिखर सम्मेलन को कुछ हास्यपूर्ण स्पर्शों से सजाया गया था। जब वाजपेयी शिखर सम्मेलन के लिए बने कमरे में बैठे थे  तो वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण अडवानी ने प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण में कुछ अंतिम समय के संशोधन के लिए उन्हें पीछे छोड़ दिया। ओसामा-बिन-लादेन के गिरोह ने इस्लामिक आतंक को हाई ग्लोबल प्रोफाइल में लाते हुए ट्विन टावर के लिए उड़ान भरी। 9/11 को विश्व राजनीति का निर्माण करना था जो उस चरण में एक ध्रुवीय दुनिया थी जिसमें यह एकमात्र फोकस था।

यह एक अद्भुत संयोग था कि अक्तूबर 2001 के पहले सप्ताह में केशु भाई पटेल को गुजरात के मुख्यमंत्री के पद से मुक्त करने के लिए नरेंद्र मोदी अहमदाबाद पहुंचे। बिना सदन के सदस्य बने मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने। मोदी को 7 अक्तूबर को मुख्यमंत्री के रूप में अभिषिक्त किया गया था, ठीक उसी दिन जिस दिन अमरीकियों ने अफगानिस्तान पर मिसाइल हमले किए थे। भारत-अमरीकी मामलों में ज्यादा शर्मनाक एक घटना वाशिंगटन के साथ-साथ नई दिल्ली में शॄमदगी की हद को प्रदॢशत करती है।

नई दिल्ली में अमरीकी राजदूत राबर्ट ब्लैकविल ने गोलमेज लंच की मेजबानी करने की परम्परा स्थापित की थी। ऐसे ही एक भोज का विषय अमरीका के नेेतृत्व में आतंक के विरुद्ध युद्ध में पाकिस्तान की भूमिका थी। तब विपक्ष में बैठे प्रणब मुखर्जी ने बड़े गुस्से में हाथ उठाया और कहा, ‘‘आप अच्छी तरह से जानते हैं कि पाकिस्तान हमें सीमा पार आतंकवाद से त्रस्त कर रहा है और अचानक आपने आतंकवाद के खिलाफ अपने वैश्विक युद्ध में पाकिस्तान को एक अग्रिम पंक्ति के देश के रूप में गले लगा लिया।’’

ब्लैकविल ने इसे हल्का करने की कोशिश की और कहा, ‘‘पाकिस्तान के साथ आपका झगड़ा एक क्षेत्रीय मामला है। इस समय आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध में पाकिस्तान हमारा भागीदार है।’’ भारतीय मेहमानों ने टेबल के चारों ओर कितनी निराशा महसूस की, यह बात लम्बे समय तक मेरे दिमाग में अंकित रहेगी। 13 दिसम्बर को भारतीय संसद पर हमले के कारण ‘आप्रेशन पराक्रम’ हुआ जिसने भारतीय और पाकिस्तान सैनिकों को आमने-सामने की लड़ाई में ला खड़ा कर दिया।

नई दिल्ली ने सबसे ज्यादा पाक विरोधी प्रचार संसद हमले से किया। यू.पी. चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले थे। भाजपा हार गई। परिणाम 24 फरवरी को घोषित किए गए। स्वयं सेवकों की निराशा की कल्पना करें। उनमें से हजारों स्वयं सेवक अयोध्या से चले गए। उनमें से कुछ साबरमती एक्सप्रैस में सवार हो गए जो अहमदाबाद के रास्ते से 27 फरवरी 2002 की सुबह गोधरा से गुजरी।

जहां एक डिब्बे में आग लगा दी गई जिसके परिणामस्वरूप 56 यात्रियों की मौत हो गई जो कार सेवक हो सकते थे। रात होते-होते अहमदाबाद और गुजरात के कई कस्बे अभूतपूर्व मुस्लिम विरोधी नरसंहार की चपेट में आ गए। गांधी पीस फाऊंडेशन के राजीव वोहरा और टोपी पहने ‘द इकोनॉमिस्ट’ के संवाददाता से जब मैं गोधरा कलैक्टर जयंती रवि के कार्यालय पहुंचा तो उन्होंने वस्तुत: अपने हाथ खड़े कर दिए।

रवि के मामले का अध्ययन करने से पहले ही गोधरा कांड की फाइल आतंकवाद निरोधक दस्ते के महानिदेशक विजय विपुल को सौंप दी गई थी। सच्ची मुस्लिम विरोधी ज्यादतियों ने क्रमिक रूप से राजनीतिक सफलता प्राप्त की लेकिन यह प्रवृत्ति तब शुरू हुई जब दुनिया वास्तव में वैश्विक इस्लामोफोबिया के कफन में थी। -सईद नकवी


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