अकेलेपन की महामारी
punjabkesari.in Saturday, Aug 24, 2024 - 06:40 AM (IST)
पश्चिम में अकेलेपन की समस्या इतनी बढ़ती जा रही है कि हाल के दिनों में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि दुनिया में अकेलापन सबसे बड़ी महामारी के रूप में फैल रहा है। कुछ दिन पहले छपी डेविड रोबसन की पुस्तक ‘लाज आफ कनैक्शन’ में बताया गया था कि अकेलेपन को दूर करने और स्वस्थ रहने के लिए स्वाथ्यवर्धक खाना खाएं। प्रोसैस्ड खाने से दूर रहें। धूम्रपान न करें। 8 घंटे की पूरी नींद लें और सबसे बड़ी बात दोस्त बनाएं। पुस्तक में इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण दिए गए हैं कि क्यों अकेलापन जीवन के लिए इतना भारी है। लोगों से मिलना-जुलना, अपनी बात कहना और दूसरों की सुनना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कितना जरूरी है। अकेलेपन के कारण मानसिक स्वास्थ्य तो खराब होता ही है, तरह-तरह की बीमारियां भी घेर लेती हैं।
यही कारण है कि दुनिया भर की सरकारों का ध्यान इस तरफ जा रहा है। इस बात की योजनाएं बनाई जा रही हैं कि अपने लोगों के अकेलेपन को कैसे दूर किया जाए। पिछले साल जापान और ब्रिटेन ने अकेलेपन से जूझती अपनी जनसंख्या के लिए लोनलीनैस मंत्रालय बनाए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कमीशन ऑन सोशल कनैक्शन का गठन किया है। आज की डिजिटल दुनिया में लोग घरों से काम करते हैं। चीजें खरीदने के लिए उन्हें बाजार नहीं जाना पड़ता। सब कुछ ऑनलाइन घर पर ही मंगाया जा सकता है। बैंक और स्वास्थ्य सेवाएं भी घर पर ही रह कर प्राप्त की जा सकती हैं। इन बातों से साबित होता है कि एक ओर तकनीक जहां सुविधाएं प्रदान करती है, वहीं आदमी के सारे क्रिया-कलापों को भी बाधित कर देती है। जब मनुष्य घर से शाक-भाजी, घर का अन्य सामान लेने निकलता है, तो वह चलता है। उसकी शारीरिक गतिविधि बढ़ती है, जो उसे स्वस्थ रखती है। इसके अलावा, बैंकों के काम या डाक्टर से मिलने जाने पर बातचीत होती है। आज के समय में लोग किसी से कम मिलते हैं। बातचीत का आलम यह है कि जब लैंड लाइन फोन हुआ करते थे, तो न जाने कितने नंबर याद रह जाते थे।
यही नहीं दूर-दराज के रिश्तेदार दोस्तों का अक्सर फोन आ जाता था। लेकिन अब जब हर हाथ में फोन है, तब शायद ही कोई किसी को फोन करता है, घर जाकर मिलने-जुलने की बात तो कौन कहे। यह बात हिन्दुस्तान के संदर्भ में कही जा रही है। अन्य देशों, विशेषकर पश्चिमी देशों में तो लम्बे अर्से तक अकेलेपन को किसी वरदान की तरह प्रस्तुत किया गया है और इस अकेलेपन की गुलाबी तस्वीर का सबसे पहला शिकार परिवार हुआ। परिवार के बीच आदमी अकेला कभी नहीं होता। लेकिन एकल परिवार और फिर तमाम विमर्शों के कारण परिवार को मनुष्य का सबसे बड़ा शोषक बताने की प्रविधियों ने मनुष्य को अकेला कर बाजार के हवाले कर दिया। अकेला मनुष्य हर तरह से बाजार पर निर्भर हो जाता है, लेकिन बाजार से सुविधाएं तो मिल सकती हैं, आपकी भावनाओं को बांटने वाला कोई नहीं मिलता।
किसी दुख में मीठे शब्दों के लेप की जरूरत होती है, जो तकनीक नहीं दे सकती, इसके लिए हमेशा किसी दूसरे मनुष्य की ही जरूरत होती है। परिवार में लड़ाई-झगड़े भी हों, एक-दूसरे से मन मुटाव भी हों, तब भी एक रिश्ता बना रहता है। अपने यहां तो कहा भी जाता है कि किसी आपदा में बचाने के लिए सबसे पहले परिवार ही दौड़ता है। लेकिन जब परिवार को ही तमाम नकली विचारधाराओं के तहत सबसे बड़ा खलनायक सिद्ध कर दिया हो, तो कौन उसे बचाए। आज से 30 साल पहले एक परिजन इंगलैंड में थे। उन्होंने बताया था कि वहां चालीस प्रतिशत लड़के शादी नहीं करना चाहते। इन दिनों बड़ी संख्या में लड़कियां भी शादी करना नहीं चाहतीं। उसका कारण है, दोहरा दबाव। नौकरी भी करें और परिवार चलाएं, यह दोहरी जिम्मेदारी अकेले अपने दम पर उठाना मुश्किल है। इसीलिए युवा परिवार के बारे में सोचते ही नहीं हैं।
वर्षों से देखा जा रहा है कि अपने देश में गांव के गांव खाली हो गए हैं। छोटे शहर और महानगरों का यही हाल है। युवा पीढ़ी अपने घरों से दूर काम-काज के लिए चली गई है। इन जगहों पर सिर्फ वृद्ध बचे हैं। नगरों में बच्चे अकेले हैं और पैतृक स्थानों पर बुजुर्ग। आस-पड़ोस में ऐसी आत्मीयता भी कम होती जा रही है, जो किसी की देख-रेख कर ले। जरूरत पडऩे पर भाग ले। पश्चिम ने देखभाल करने को भी केयर इकोनामी नाम दिया है। वहां कोई किसी की देखभाल भावनात्मक कारणों से कर सकता है, ऐसा सोचा ही नहीं जाता, जैसे भावनाओं को भी पैसे और बाजार से जोड़ दिया है। आज भी पश्चिमी देशों में जाओ तो वहां लोग कहते हैं कि भारत में पारिवारिक संबंध बहुत मजबूत हैं। काश, उनके यहां भी वैसा ही होता। अपना परिवार पहले तोड़ा, फिर वह विचार दुनिया को भी सौंप दिया कि अकेलापन कितना अच्छा है। मनुष्य को अकेले ही रहना चाहिए।-क्षमा शर्मा