चुनावी मौसम जनता के लिए बना एक डरावना खेल

Saturday, Feb 23, 2019 - 03:56 AM (IST)

चूंकि चुनावों का मौसम आ गया है, वास्तव में यह अब जनता के लिए एक डरावना खेल बन गया है। जिस रास्ते पर भारत की राजनीति जा रही है कुछ लोग उसे लेकर दुख महसूस करते हैं। 

चुनाव गौरवशाली ढंग तथा शांतिपूर्वक नहीं लड़े जाते। यह एक गंदा खेल बनता जा रहा है, जिसमें हर कोई भाग ले सकता है लेकिन दोष किसे दें? क्या हम अपने राजनीतिज्ञों को दोष दें या जनता को अथवा सिस्टम को दोष दें? मेरा मानना है कि खुद राजनीतिज्ञ ही जहां तक सम्भव हो सके लड़ाई को गंदा बनाते हैं। निजी दोषारोपण, जो अभी तक नहीं सुने गए थे, हर ओर सुनाई देते हैं। संस्थाओं का इस्तेमाल किसी एक या सभी विरोधियों के खिलाफ किया जा रहा है। भ्रष्टाचार के मामले, सही हों या गलत, उनसे सभी को निशाना बनाया जा रहा है। इसलिए ऐसा नहीं है कि फलां पसंदीदा है तथा अन्य नहीं। 

कई तरह के डर
आज जीवन स्वतंत्र नहीं रहा क्योंकि हर कोई डर में जी रहा है। लोगों को डर है कि उन पर छापा पड़ जाएगा, उन्हें पकड़ लिया जाएगा और यहां तक कि किसी न किसी छोटे से मामले में गिरफ्तार कर लिया जाएगा, जिसे असावधानी के चलते नजरअंदाज कर दिया गया हो। सभी एजैंसियों के पास आपको गिरफ्तार करने का अधिकार है और फिर आपको स्वयं को निर्दोष साबित करना पड़ता है। लोग बोलने से डरते हैं, बाहर जाने से डरते हैं और यहां तक कि किसी पसंदीदा व्यक्ति के साथ दिखाई देने से डरते हैं। मैंने अपने पूरे जीवन में ऐसा माहौल नहीं देखा था। 

बहुत से व्यवसायी देश को छोड़ कर जा चुके हैं, कई सलाखों के पीछे हैं और बहुत से भूमिगत हो गए हैं। मैं नहीं जानती कि यह अच्छा है या बुरा लेकिन जनता में डर एक अच्छी चीज नहीं है। किसी भी देश के विकास हेतु एक स्वच्छ समाज आवश्यक है, एक कर चुकाने वाला समाज जो देश को होने वाले सभी नुक्सानों को भी सहने वाला हो। मगर कहीं न कहीं किसी न किसी से गलती हो सकती है लेकिन क्या उसने ऐसा जानबूझ कर किया है, कोई भी पूर्ण या परफैक्ट नहीं है। किसी छोटी गलती को किसी चुनावी वर्ष में एक बहुत बड़ा मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। यदि यह ऐसे ही चलता रहा तो लोग राजनीति को छुएंगे भी नहीं। 

भरोसा रखना होगा
हमने जे.एन.यू. के लड़कों को गिरफ्तार तथा प्रताडि़त होते देखा है, हमने किसी अलग पार्टी की ओर झुकाव वाले व्यवसायियों को परेशान किए जाते देखा है, हमने बदले के कई खेल खेले जाते देखे हैं और सभी पार्टियां ऐसा करती हैं लेकिन किसी दिन कहीं न कहीं इसे रुकना होगा। हमें सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास करना होगा, अपनी संस्थाओं पर भरोसा रखना होगा, अपने सांसदों पर भरोसा रखना होगा लेकिन उन पर कितना विश्वास बचा है? हर बार जब कुछ होता है तो हम सुप्रीम कोर्ट की तरफ देखते हैं जिसने अधिकतर हमें निराश नहीं किया। एक भारतीय होने के नाते मुझे अपने देश के कानून में पूर्ण विश्वास है और यदि मैंने कुछ गलत नहीं किया है तो क्यों मैं अपना देश छोड़कर भागूं? 

क्यों मैं किसी अन्य देश की नागरिकता लूं या किसी और जगह दूसरे दर्जे की नागरिक बनूं? मैं दुनिया में किसी भी अन्य जगह के मुकाबले अपने देश में अधिक सुरक्षित हूं और क्यों मैं अपने बाकी जीवन में एक धोखेबाज की तरह जीना चाहूंगी? क्यों मैं टैक्स के कुछ रुपए बचाने के लिए भागूं? मेरा मानना है कि बेहतर होगा अपना कर चुका कर एक स्वतंत्र नागरिक की तरह अपने ही देश में रहें। सच हमेशा विजयी होता है चाहे प्रवर्तन निदेशालय सहित कितनी ही एजैंसियां आप पर विदेश अथवा देश में नजर रखती हों और आप पकड़े जाएं। मैं समझती हूं कि मैं विजय माल्या या मोहुल चोकसी बनने की बजाय कम धन के साथ जीवन जीना चाहूंगी। 

मैं गांधियों तथा वाड्रा को देखती हूं कि वे किस दौर से गुजर रहे हैं और मुझे कहीं न कहीं उन्हें लेकर खराब महसूस होता है। मेरे लेखन के गत कई वर्षों के दौरान मैंने ऐसे कई मामले देखे हैं या क्योंकि मैं एक राजनीतिक परिवार से हूं इसलिए ऐेसे मामलों के प्रति जागरूक रहती हूं। मगर हम उनसे लड़ते हैं, भागते नहीं। मुझे याद है जब 1977 में मेेरे पिता चम्बा से अपना पहला चुनाव हार गए और 1981 में उनके जीतने तक हम सामान्य नागरिकों की तरह जीवन जी रहे थे लेकिन तब कोई बदले की राजनीति नहीं थी और न ही दिलों में दुर्भाव था। चुनावों में कुछ जीतते थे और कुछ हार जाते थे लेकिन विपक्षी तथा सत्ताधारी मित्रों की तरह रहते थे। विधानसभा और फिर चुनावों में जो होता था उसे वहीं छोड़ दिया जाता था, निजी जीवन में नहीं ढोया जाता था। विभिन्न राजनीतिक दलों के राजनीतिज्ञ जन्मजात शत्रु नहीं थे। 

मानवता व ईमानदारी के लिए सम्मान
आज की राजनीति बहुत गंदी हो गई है और खुद लोग भूल चुके हैं कि पार्टियों के बीच मित्र या मित्रता क्या है। मैं आशा करती हूं कि यह रुकेगा और राजनीतिक प्रताडऩा को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। सब में मानवता तथा ईमानदारी के प्रति सम्मान होना चाहिए। आप सबको एक ही रंग में नहीं रंग सकते और न ही सबके साथ एक जैसा व्यवहार कर सकते हैं तथा इसी तरह आप अपनी राजनीतिक लड़ाइयां लडऩे के लिए कानून लागू करने वाली एजैंसियों का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते। यह रुकना चाहिए अन्यथा इन संस्थाओं में किसी का विश्वास नहीं रहेगा, जिन्होंने हमारे देश तथा हमारे लोगों की सुरक्षा की है। जनता की नजरों में आज प्रत्येक शीर्ष एजैंसी की साख गिर चुकी है जो किसी भी गौरवशाली भारतीय के लिए दुखदायी है।-देवी चेरियन

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