जाट आंदोलन का असर : 20 साल पीछे चला गया हरियाणा

Monday, Feb 29, 2016 - 12:52 AM (IST)

(अदिति फडऩीस): लगभग 3 माह पूर्व हरियाणा के कम से कम 3 जिलों के थानेदारों ने  मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के सचिवालय को संदेश भेजे। इन संदेशों का विषय था कि हरियाणा में मिट्टी के तेल की बिक्री में असाधारण रूप में वृद्धि हुई है तथा पेड़ गिराए जा रहे हैं। हरियाणा में कृषि उपकरणों  की सघनता बहुत अधिक है। अचानक  खंदकें खोदी जाने लगी हैं। इसका मतलब यह है कि कुछ न कुछ अनहोनी होने वाली है।  इन संदेशों के साथ-साथ थानेदारों ने राज्य सरकार से निर्देश मांगे थे कि इस स्थिति से निपटने के लिए क्या किया जाए। लेकिन उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। 

 
फिर आगजनी शुरू हो गई। इसके पीछे एक स्पष्ट कार्यशैली दिखाई देती थी कि गैर-जाट समुदायों के स्वामित्व वाली सम्पत्तियों, दुकानों, शोरूमों तथा गैरेजों पर आक्रोशपूर्ण ढंग से हल्ला बोला गया। सरकार में बैठे गैर-जाटों ने मुख्यमंत्री के आगे गुहार लगाई  कि कुछ न कुछ किया जाए। इस्तीफे की  धमकी सबसे पहले मंत्री अनिल विज ने दी जोकि अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं और खट्टर के मुखर आलोचक हैं। उनके बाद सरकार को छोड़ जाने की धमकी महिला एवं बाल विकास मंत्री कविता जैन तथा  वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने दी। 
 
लेकिन जाट मुख्यमंत्री टस से मस नहीं हुए। वह तो नौकरशाही में जाट  अफसरों को आगे बढ़ाने के पक्षधर थे, लेकिन यह सरकार गैर-जाटों को  सशक्त बनाने के नारे पर ही सत्तासीन हुई थी। इस सरकार के सत्तासीन होते ही जाट समुदाय में नेतृत्व का संकट पैदा हो गया था। तूफान से पहले जो बादल घिर रहे थे वे अक्ल के अंधों को छोड़ कर हर किसी को स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। अमन-कानून की समस्या एक ऐसा मुद्दा है जिसे राज्य सरकारें किसी ईष्र्यालु की भांति अपने अधिकार क्षेत्र में रखने पर आमादा होती हैं।
 
हम सभी जानते हैं कि किसी भी राज्य में दंगे केवल तभी हो सकते हैं यदि वहां की राज्य सरकार या तो इनकी अनुमति देती है या फिर इसे सूझ नहीं रहा था कि इन्हें नियंत्रित कैसे करना है। हरियाणा के मामले में अपराध अन्वेषण विभाग (सी.आई.डी.) एक  प्रकार से धराशायी हो चुका था। नौकरशाही में चूंकि जाट अफसरों का बोलबाला है इसलिए किसी ने भी इसके विरुद्ध उंगली तक उठाने की हिम्मत नहीं की। लेकिन हरियाणा में जो उत्पात मचा  उसके पीछे किसी निश्चित उद्देश्य  का आभास होता था। आखिर कौन था जो इस पूरी शरारत की साजिश रच रहा था और किसलिए? 
 
भूमि प्रयोजन बदलाव (सी.एल.यू.) हरियाणा में यह सबसे लाभदायक व्यवसाय बना हुआ है। अपने कार्यकाल दौरान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने सी.एल.यू. के अंतर्गत लगभग 18000 एकड़ भूमि के लिए अनुमतियां जारी कीं और डिवैल्परों ने किसानों को खदेड़ दिया तथा सरकार को यह सूचित किए बिना कि उन्होंने बिजली, पानी, सड़कों तथा सीवरेज के लिए क्या प्रावधान किया है, कृषि भूमि पर बहुमंजिला इमारतों का निर्माण कर लिया। सी.एल.यू. के लिए सरकार को जो फीस अदा की जाती है वह वास्तव में दिए जाने वाले पैसे का एक बहुत ही छोटा अंश है। 
 
नवम्बर 2015 में आखिर मुर्दों ने कफन फाड़ कर बोलना शुरू कर दिया। हुड्डा सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने लगभग 7 वर्ष पूर्व हरियाणा राज्य औद्योगिक एवं ढांचा विकास निगम द्वारा अलॉट किए गए  202 औद्योगिक प्लाटों का आबंटन रद्द कर दिया। 
 
अपने आदेश में माननीय हाईकोर्ट ने कहा, ‘‘पूरी प्रक्रिया तयशुदा ढंग से इस प्रकार तैयार की गई थी कि  आबंटन समिति की इच्छा अथवा मन की मौज के अनुरूप चहेते आवेदकों को इन प्लाटों का आबंटन किया जा सके। आबंटन समिति की मीटिंगों की कार्रवाई की शैली तथा विषय वस्तु की पड़ताल से पता चलता है कि प्लाटों का आबंटन पूर्व निर्धारित  ढंग से किया गया था।’’
 
दिसम्बर 2015 में हरियाणा की खट्टर सरकार ने आदेश जारी किया कि हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण  (हुडा) के चेयरमैन पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी डी.पी.एस. नागल और हुडा के 2 अन्य अधिकारियों के विरुद्ध पंचकूला में औद्योगिक प्लाटों के आबंटन में हुई अनियमितताओं के संबंध  में आपराधिक मामला दर्ज किया जाए। 
 
मुख्यमंत्री ने विजीलैंस ब्यूरो को एफ.आई.आर. दर्ज करने तथा  मामला सी.बी.आई. के हवाले करने  को भी कहा। एफ.आई.आर. दर्ज किए जाने के बाद जांच-पड़ताल सी.बी.आई. के हवाले करने का अर्थ यह था कि कोई प्रारंभिक जांच-पड़ताल नहीं होगी बल्कि सीधे ही विजीलैंस ब्यूरो को सी.बी.आई. उठा लेगी और अगली कार्रवाई शुरू कर देगी। ऐसा करना इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि इससे जांच प्रक्रिया स्वत: ही तेज रफ्तार से आगे बढ़ती है। 
 
आबंटन का मुख्य फोकस 2012-13 में आवेदन करने वाले 14 आवेदकों पर था जबकि कुल 582 लोगों को प्लाट मिले थे।
इन लाभाथयों में पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी रेणु हुड्डा, भतीजा राजिंद्र हुड्डा-पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के  जज (जो अब रिटायर्ड हो चुके हैं) एम.एस. खुल्लर  की बहू मनजोत कौर, पूर्व अतिरिक्त  महाअधिवक्ता नरेन्द्र हुड्डा की पत्नी नंदिता हुड्डा, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के पूर्व  ओ.एस.डी. डी.आर. बेरी की बहू मोना बेरी तथा अन्य शामिल हैं। यह दिसम्बर 2015 की बात है और इसी समय जाटों ने नौकरियों में आरक्षण की मांग उठाते हुए हरियाणा में अस्थिरता पैदा करने की तैयारियां शुरू की थीं। 
 
यदि खट्टर सरकार कुछ अधिक सक्रियता दिखाती तो यह इस साजिश को समय रहते भांप सकती थी। लेकिन  जरा इसकी प्रतिक्रिया पर गौर फरमाएं: सरकार ने आरक्षण कोटे की जाटों की मांग स्वीकार कर ली है। यदि आरक्षण कोटे की घोषणा नए सिरे से की जाती है तो हरियाणा सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण पर लगाई गई 50 प्रतिशत की सीलग के आदेश का उल्लंघन कर रहा होगा, इसलिए यदि विधानसभा के आगामी सत्र में जाटों के लिए आरक्षण स्वीकार किया जाता है तो यह केवल यादव तथा सैनी समुदाय को वर्तमान में मिल रहे आरक्षण में से काट कर ही दिया जा सकेगा।  
 
यह भी कोई हैरानी की बात नहीं कि ये दोनों समुदाय ही अब मुखर होते जा रहे हैं और सरकार की आलोचना कर रहे हैं। हरियाणा में वर्तमान में जो घटनाएं हुई हैं उन्होंने इस राज्य को 20 साल पीछे धकेल दिया है। लेकिन यह तो केवल आगाज (प्रारंभ) ही है। आगे-आगे देखिए अंजाम क्या होता है। 
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