धूल चेहरे पर थी लेकिन हम आईना साफ करते रहे

punjabkesari.in Tuesday, Feb 07, 2023 - 05:58 AM (IST)

आजकल 4000 किलोमीटर लंबी राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा समाचार पत्रों व इलैक्ट्रानिक मीडिया में खूब सुर्खियां बटोर रही है। बड़े-बड़े लेखों के संदर्भ यात्रा की कामयाबी के पहलुओं को उजागर कर अपना-अपना दृष्टिकोण पुख्ता निरीक्षण भाव से रख रहे हैं। यह दिखाने की चेष्टा हो रही है कि भारत को राहुल गांधी की इस यात्रा से फिर से जोड़ने की कवायद हो रही है। भारत टूटा ही कब था जिसको जोडऩे की बात हो रही है? 

हकीकत यह है कि इस यात्रा के माध्यम से वास्तव में टूटे-फूटे विपक्ष व कांग्रेस को एकजुट कर राहुल को एकछत्र नेता के रूप में उभार 2024 में मोदी को पटखनी देने के लिए उसके समकक्ष राहुल गांधी को खड़ा करने की ख्वाहिश पाली जा रही थी। मुद्दा यह है कि इस ध्येय पूर्ति के लिए यात्रा के माध्यम से ‘भारत जोडऩे’ चले राहुल गांधी क्या संपूर्ण विपक्ष व अपनी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं को जोड़ पाए? या लीक से हटकर राहुल कौन-सा ऐसा सकारात्मक एजैंडा भारतीयों के समक्ष रख पाए जिससे उनके लक्ष्य की पूर्ति संभव हो? कांग्रेस शायद भूल जाती है कि देश पिछले एक दशक से नकारात्मक भाव को त्याग सकारात्मक भाव से इतना परिपक्व हो चुका है कि वह मुड़कर पीछे देखने को तैयार नहीं। 

मोदी की तथाकथित नाकामियों पर ध्यान केंद्रित करने की जगह राहुल उनसे बेहतर इस देश के लिए क्या और कैसे कर सकते हैं, के उत्साहपूर्ण संकल्प को उजागर वह इस यात्रा के दौरान नहीं कर पाए? उलटा यात्रा दौरान कांग्रेस अपनी वशिष्ठ शैली अनुरूप ही खुद की गलतियां सुधारने की जगह दोष मोदी पर मढ़कर सुरखुरू होने की कवायद करती रही। 

यात्रा से विपक्ष रहा क्यों नदारद? : यात्रा में विपक्ष से न ममता दिखीं, न के.सी.आर., न अखिलेश यादव, न मायावती, न नवीन पटनायक, न नीतीश व लालू। जब राहुल को एक छत्र चेहरा स्थापित करने की महत्वाकांक्षा इतनी प्रबल होगी तो यही होगा। 7 सितम्बर को कन्याकुमारी से शुरू हुई 135 दिवसीय यह यात्रा श्रीनगर के लाल चौक तक पहुंचते-पहुंचते विपक्षी एकता अभाव में इतनी घिस गई कि सम्पूर्ण विपक्ष तो क्या कांग्रेस (यू.पी.ए.) के अपने रहे सहयोगियों को भी नहीं जोड़ पाई जिसमें से ज्यादातर ने बहाने बनाकर यात्रा से दूरी बना ली। यहां तक कि अपने राज्यों जहां कभी वे सत्ता में सहयोगी रहे, यात्रा गुजरते समय उत्साहित भी नहीं दिखे। 

गुरु बन गए घंटाल : यात्रा के संयोजक जय राम रमेश भी नि:सहाय दिखाई दिए। वह कांग्रेस के कुछ दिग्गजों के यात्रा के दौरान दिए बयानों से अपना पिंड छुड़ाते दिखे लेकिन बावजूद इसके राहुल के तथाकथित राजनीतिक गुरु श्रीमान दिग्विजय सिंह व राशिद अलवी के बयान गले की फांस बन गए। पल्ला तो बहुत झाड़ा लेकिन सच्चाई कि छुपाए नहीं छुपती, वह सात पत्तों को फाड़कर भी उजागर हो ही जाती है। आने वाला समय बताएगा कि इन बयानों के संदर्भ में चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा? वीर सावरकर और आर.एस.एस. के खिलाफ उनके बोल मोदी के विरुद्ध विपक्ष को एकजुट करेंगे या आमजन  को मोदी के हक में, इस यक्ष प्रश्न का उत्तर समय ही बताएगा? 

नफरत से मोहब्बत की दुकान कैसे चलेगी? : यात्रा के अंतिम पड़ाव में कश्मीर आगमन पर राहुल ने इस लंबी यात्रा में कुछ हद तक कांग्रेस प्रति पनपे सहानुभूतिपूर्वक राष्ट्रभाव को दरकिनार करते हुए यह ध्यान देकर कि उनके सत्तासीन होने पर धारा 370 को कश्मीर में पुनस्र्थापित कर दिया जाएगा, संपूर्ण राष्ट्र को अपने ‘भारत जोडऩे’ के पीछे छिपे राष्ट्र विरोधी एजैंडे से चाहे अपरिपक्वता के कारण ही सही परिचित करा दिया। यानी बिल्ली थैले से बाहर आ गई। जिस राष्ट्र-विरोधी धारा 370 व 35-ए को एक ही झटके से मोदी ने उखाड़ फैंक कश्मीर में कांग्रेस के इतिहास में दिए इस दंश का मूलनाश कर देश के प्रति नफरत के बाजार पर कुछ हद तक अंकुश लगाया था उसी की फिर से बहाली कर राहुल देश के कौन से बाजार में मोहब्बत की यह कैसी दुकान खोलना चाहते हैं? कोई देश को बताएगा क्या? 

मूल से कटी यात्रा, जोड़ेगी कैसे? : जो यात्रा कांग्रेस के मूल सिद्धांत यानी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्म भूमि गुजरात, स्वर्गीय दादी इंदिरा गांधी की रायबरेली, पिता राजीव गांधी की कर्म स्थली अमेठी को न छू सकी हो वह कैसे उन बेमुख हो चुके कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं को जोड़ पाएगी जो भावनात्मक रूप से पलकें बिछाए यात्रा की राह के मुंतजिर थे? 

‘सबका साथ सबका विकास’ एजैंडे का क्या है तोड़? : मोदी सरकार ने कोरोना महामारी को मात देकर जन कल्याणकारी योजनाओं से बिना जाति, धार्मिक भेदभाव व तुष्टीकरण के न केवल देश को आत्मरक्षा, आर्थिकता व अन्य बहुउद्देशीय राष्ट्र निर्माण मूल्यों प्रति न केवल आत्मनिर्भर बनाया बल्कि विश्व के सामने भारत का सम्मान क्षितिज पर पहुंचाया। उस राष्ट्र को राहुल गांधी सकारात्मक भाव से और आगे कैसे बढ़ाएंगे व मोदी से भी बढ़कर जनकल्याण योजनाएं कैसे देंगे, के बारे में ‘मोदी के सबका साथ व सबका विकास’ का ‘बदल’ बनी यात्रा के दौरान क्यों नहीं बता पाए? ताकि लोगों का विश्वास इस यात्रा के परिणामों को प्रभावित कर सके? 

अंतत: समापन समारोह के अंतिम पड़ाव पर जैसे लाल चौक में राहुल गांधी ने राष्ट्रीय ध्वज से भी बड़े अपने कद के कटआऊट के सामने उसे फहराया उसने कांग्रेस की मानसिकता व सोच को जगजाहिर कर राष्ट्र को सोचने पर मजबूर कर दिया कि राष्ट्र बड़ा या व्यक्ति का कटआऊट? अगर मोदी को मात देनी है तो सकारात्मक सोच के साथ सकारात्मक एजैंडे के साथ कांग्रेस को आना होगा लेकिन कांग्रेस बार-बार वही गलतियां दोहरा रही है जिसकी वजह से देश ने उनके राष्ट्रीय चुनावी परिदृश्य व सत्ता से उसे दूर कर दिया था। कांग्रेस शासन दौरान हुई गलतियों जैसे धारा 370 व 35-ए को बरकरार रखना, जाति व धर्म के नाम पर तुष्टिकरण, ब्ल्यू स्टार आप्रेशन में पवित्र हरिमंदिर साहिब पर हमला, 84 के दंगों में देश में सिखों का नरसंहार जैसी अमानवीय गलतियों को अंतरात्मा से यात्रा दौरान सहर्ष स्वीकारना चाहिए था, जो नहीं हुआ।-डी.पी. चंदन 
 


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