पारसी समुदाय का कम होना चिंताजनक

punjabkesari.in Friday, Apr 11, 2025 - 05:13 AM (IST)

लैफ्टिनैंट जनरल रोस्तम केखुशरु नानावटी ने ‘सीधे निशाना साधना’ कहां और कब सीखा? उन्होंने ये गुण और अन्य बहुत ही उत्कृष्ट गुण अपने पिता केखुशरु जहांगीर नानावटी  से ग्रहण किए, जब वे (रोस्तम) किशोरावस्था में थे।वरिष्ठ नानावटी जब सेवानिवृत्त हुए तब वे महाराष्ट्र राज्य के पुलिस महानिरीक्षक थे। मैं अपने 30वें दशक के मध्य में था, जब मुझे पूना (अब पुणे) शहर का अंतिम पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया। रोस्तम के पिता उस समय राज्य पुलिस प्रमुख थे। 60 के दशक में कोई पुलिस महानिदेशक नहीं था। यह नामकरण 2 दशक बाद 80 के दशक की शुरूआत में दिया गया था।

पीछे मुड़कर देखने पर मुझे एहसास हुआ कि यह रोस्तम के पिता ही रहे होंगे जिन्होंने मेरी उस नियुक्ति के लिए सिफारिश की थी जो उस समय तक सेवा में मुझसे बहुत वरिष्ठ अधिकारियों का विशेषाधिकार रखते थे। मुझे शोलापुर में अपनी पोस्टिंग से स्थानांतरित होने का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। मुझे तब ही इस स्थानांतरण के बारे में पता चला जब मैंने अपने कार्यालय से भेजी गई (डाक) मेल खोली, जब मैं कर्नाटक और महाराष्ट्र की सीमा पर अकालकोट के ग्रामीण पुलिस स्टेशन का निरीक्षण कर रहा था। सीनियर नानावटी अपने व्यवहार में पूरी तरह से निष्पक्ष और पारदर्शी थे। उनकी कोई पसंद या नापसंद नहीं थी, वे अधिकारियों का निष्पक्ष और विवेकपूर्ण तरीके से मूल्यांकन करते थे, ईमानदारी और योग्यता के उच्च मानकों की अपेक्षा करते थे और आगे बढ़कर नेतृत्व करते थे। इसलिए जब मैंने लैफ्टिनैंट जनरल रोस्तम के. नानावटी की एक सैन्य जीवनी पुस्तक पढ़ी  जो ऊधमपुर में उत्तरी कमान के जी.ओ.सी. इन सी. के रूप में भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुए थे, तो मुझे अपने प्रिय बॉस के बेटे द्वारा सेना में अपने 42 वर्षों के दौरान एक सैनिक के रूप में प्रदर्शित किए गए नेतृत्व के उत्कृष्ट गुणों के बारे में पढ़कर थोड़ा भी आश्चर्य नहीं हुआ।

सीनियर नानावटी 1963 से 1966 तक 3 साल के लिए महाराष्ट्र के आई.जी.पी. थे। जी.सी. (जैंटलमैन कैडेट) आर.के. नानावटी अपने पिता के आई.जी.पी. बनने से पहले ही जुलाई 1961 में देहरादून में आई.एम.ए. (भारतीय सैन्य अकादमी)में शामिल हो चुके थे। रोस्तम ने 31वें नियमित कोर्स के साथ दिसम्बर 1962 में उत्तीर्णता प्राप्त की, जोकि तय समय से 6 महीने पहले था, क्योंकि उस समय 1962 का भारत-चीन युद्ध चल रहा था। उन्होंने अपने कोर्स में ‘स्वॉर्ड ऑफ  ऑनर’ जीता और 2/8 गोरखाओं में कमीशन प्राप्त किया। एक और रोचक जानकारी जो मेरे दिमाग में आती है, वह यह है कि अक्तूबर, 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मुझसे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल की जिम्मेदारी संभालने को कहा। मैंने अपनी पत्नी से वादा किया था कि मुंबई में अपने तय घर से भटकने के मेरे दिन खत्म हो गए हैं। इसलिए, मैंने मना कर दिया। 

मुझे याद है कि प्रधानमंत्री ने खुद मुझसे कहा था कि सेना के अधिकारी भी मुझे उस भूमिका में चाहते हैं! रोस्तम के सैनिक दिनों का वर्णन करने वाली किताब पढऩे के बाद मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या जिन सेना अधिकारियों के बारे में उन्होंने बात की थी, उनमें रोस्तम भी शामिल थे। रोस्तम फरवरी 2001 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों की जिम्मेदारी के साथ उत्तरी कमान के जी.ओ.सी..इन.सी. बन गए। तारीखें मेल नहीं खातीं। प्रसिद्ध सैन्य इतिहासकार एयर वाइस मार्शल (सेवानिवृत्त) अर्जुन सुब्रमण्यम द्वारा लिखित पुस्तक में रोस्तम के बारे में पढ़ते हुए मुझे यह स्वीकार करना होगा कि यह किसी सैन्य नेता के जीवन का पहला विवरण है जिसे मैंने कभी पढ़ा है।

यह मुझे अर्नवाज (एर्ना ) रोस्तम की बड़ी बहन ने व्यक्तिगत रूप से सौंपा था, जिन्हें मैं उनकी किशोरावस्था से वर्षों से जानता हूं। एर्ना को हमेशा अपने छोटे भाई पर बहुत गर्व था। ए.वी.एम.अर्जुन सुब्रमण्यम की पुस्तक को आई.पी.एस. प्रोबेशनर्स को भी पढऩा चाहिए। भाग्य के एक विचित्र संयोग से जनरल नानावटी ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों और नागालैंड तथा मणिपुर में विद्रोहियों से निपटने के लिए भेजे गए सैनिकों की कमान संभाली। उस भूमिका में उनका अनुभव अमूल्य है। इसी तरह की भूमिकाओं के लिए तैनात पुलिस अधिकारी रोस्तम से बहुत कुछ सीख सकते हैं।

पारसी समुदाय कम होता जा रहा है। यह एक बड़ी त्रासदी है। यह एक ऐसा समुदाय था और है जो अपने वजन से कहीं अधिक काम करता है। फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ एक पारसी थे। नौसेना के प्रमुख एडमिरल जल कुर्सेटजी थे और वायु सेना के प्रमुख एयर चीफ  मार्शल एस्पी इंजीनियर और फली मेजर थे। चिकित्सा पेशे और कानून के अभ्यास में पारसी चमकते हैं। मुंबई के प्रमुख चिकित्सक डा. फारुख उदवाडिया और कानूनी दिग्गज नानी पालकीवाला और फली नरीमन ऐसे नाम हैं जिन्हें मुंबई में हर कोई पहचानता है। लेकिन यह वे शिखर नहीं हैं जिन पर वे पहुंचे हैं बल्कि सच्चाई, ईमानदारी और न्याय के मजबूत नैतिक मूल्य हैं जो इस छोटे से समुदाय को पारिभाषित करते हैं।मेरे दो पड़पोतों में से एक आज सिर्फ  4 साल का है। उसके पिता पारसी हैं। मेरी छोटी बेटी के 2 बच्चे एक पारसी से शादी से हुए। उसकी बेटी ने एक शाह से शादी की जो एक गुजराती हिंदू था जिसकी अपनी मां एक पारसी थी जो तब मर गई जब उसके बेटे छोटे थे।

मेरे दो पड़पोते (मेरी छोटी बेटी के पोते) एक-चौथाई गुजराती हिंदू, एक-चौथाई गोवा ईसाई और दो-चौथाई पारसी हैं। यह मेरे 3 पड़पोतों में पारसी जीन है जिस पर मैं भरोसा करता हूं, जो उन्हें विरासत में मिले अन्य जीनों के साथ मिलकर हमारे देश के अच्छे नागरिक और सबसे बढ़कर अच्छे इंसान बनने के लिए प्रेरित करते हैं।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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