अमरीका में राजनीतिक मूल्यों में गिरावट

punjabkesari.in Friday, Oct 28, 2016 - 02:07 AM (IST)

(बलबीर पुंज): विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमरीका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, यह आगामी 8 नवम्बर के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद ज्ञात होगा। 240 वर्ष पुराने अमरीकी लोकतंत्र में यह चुनाव कई दृष्टि से ऐतिहासिक है। यहां पहली बार कोई महिला राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी बनी है। 

सर्वप्रथम अमरीका में राजनीतिक शुचिता का स्तर गर्त में धंस गया है। इस बार कट्टर इस्लाम के बढ़ते खतरे के साथ-साथ भारत को भी केंद्र में रखकर यहां का राष्ट्रपति चुनाव लड़ा जा रहा है। अमरीका की राजनीति में इस तरह की चीजें दुर्लभ दिखती हैं। गत माह न्यूजर्सी में कश्मीरी पंडितों और बंगलादेशी हिंदुओं द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने हिंदुओं और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर प्रशंसा की थी। बकौल ट्रंप, ‘‘मैं प्रधानमंत्री मोदी के साथ काम करने के लिए तैयार हूं। मैं हिंदुओं का बड़ा प्रशंसक हूं। यदि मैं राष्ट्रपति बना तो भारतीय और हिंदू समुदाय व्हाइट हाऊस के सच्चे दोस्त होंगे।’’ 

डोनाल्ड ट्रंप यदि भारत के प्रशंसक हैं तो उनकी प्रतिद्वंद्वी डैमोक्रेटिक पार्टी भी भारत और नरेंद्र मोदी के पक्ष में खड़ी दिखाई देती है।  गत अढ़ाई वर्षों में वर्तमान अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दोस्ती किस कदर परवान चढ़ी है, वह सर्वविदित है। अब चाहे अमरीका का अगला राष्ट्रपति डैमोक्रेटिक हो या रिपब्लिकन, दोनों भारत को अपना भरोसेमंद साथी मानते हैं। 

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जबकि अमरीका को सबसे पुराने लिखे हुए संविधान वाले देश का गौरव प्राप्त है। किंतु अमरीकी राजनीति का स्तर जिस तरह जमींदोज हुआ है, क्या उसका वैश्विक असर होगा? भारत में जिस राजनीतिक मर्यादा के ह्रास की बात स्वघोषित बुद्धिजीवियों और मीडिया के बड़े भाग द्वारा की जाती है, क्या उनकी नजर में अमरीका का वर्तमान राष्ट्रपति चुनाव राजनीतिक मूल्यों की कसौटी पर खरा उतरता है?

अमरीका में इस बार राष्ट्रपति पद के चुनाव में राजनीतिक मर्यादा और भाषा की सारी सीमाएं टूट चुकी हैं। व्यापारी व अरबपति डोनाल्ड ट्रंप और पूर्व राष्ट्रपति बिल किलंटन की पत्नी हिलेरी किलंटन के बीच सीधा मुकाबला है। रिपब्लिकन प्रत्याशी ट्रंप और डैमोक्रेटिक  उम्मीदवार किंलटन एक-दूसरे पर हमला करने के लिए निजी बातों को सार्वजनिक कर रहे हैं। जुबानी हमला करने के लिए जिस शब्दावली का उपयोग किया जा रहा है, उससे प्रतीत होता है कि यह चुनाव अमरीकी इतिहास में सबसे छिछली भाषा के उपयोग के लिए याद रखा जाएगा। 

दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच अब तक हुई ‘प्रैजीडैंशियल डिबेट’ तार्किक मुद्दों से पूरी तरह स्तरहीन रही है। जिस तरह वहां महिलाओं का अपमान हो रहा है, वैसा आज तक विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश के चुनाव में नहीं हुआ है। घृणात्मक वातावरण में, दोनों प्रत्याशी हर दिन शूद्र राजनीति का नया रिकार्ड भी स्थापित कर रहे हैं। शब्दों के साथ-साथ शारीरिक हाव-भाव को लेकर भी एक-दूसरे पर छींटाकशी निचले दर्जे तक पहुंच चुकी है। 

अश्लील टिप्पणियों के कारण आलोचनाओं का सामना कर रहे डोनाल्ड ट्रंप ने पूर्व राष्ट्रपति और हिलेरी के पति बिल किलंटन पर भी जुबानी हमला किया है। बिल के प्रेम-प्रसंगों का जिक्र करते हुए ट्रंप ने उन्हें महिलाओं का शिकारी बता दिया। ट्रंप द्वारा अतीत में कही गई कुछ घोर महिला विरोधी टिप्पणियां भी सार्वजनिक हुई हैं। वर्ष 2005 के एक वीडियो टेप में ट्रंप महिलाओं पर अश्लील टिप्पणी करते हुए दिख रहे हैं। 10 से अधिक महिलाएं  ट्रंप पर यौन उत्पीडऩ़ का आरोप लगा चुकी हैं।

ट्रंप अपनी प्रतिद्वंद्वी हिलेरी पर आरोप लगाते हैं कि वह नशे में रहती हैं और ड्रग्स के  सेवन से उन्होंने अपनी शारीरिक क्षमताओं को बढ़ाया है। ट्रंप ने ऐलान किया था कि यदि वह अमरीका के अगले राष्ट्रपति बनते हैं तो सबसे पहले वह हिलेरी किलंटन को जेल भेजेंगे। 11 सितम्बर को एक कार्यक्रम के दौरान हिलेरी किलंटन गिर गई थीं। उसके बाद ट्रंप ने उन्हें शारीरिक रूप से अक्षम बताया था। इससे पूर्व ट्रंप ने एक कार्यक्रम का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘चर्चा के दौरान हिलेरी किलंटन का बाथरूम ब्रेक लेना घिनौना था। मैं जानता हूं कि वह कहां गई थीं।’’

वर्तमान अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव गरिमाहीनता और महिलाओं के प्रति निर्लज्जता की अभिव्यक्ति का पर्याय बन चुका है। व्यक्तिगत जीवन में डोनाल्ड ट्रंप जिस भाषा का उपयोग करते रहे हैं या कर रहे हैं, वह कहीं से भी सभ्य और सुसंस्कृत प्रतीत नहीं होती। हाल ही में एक खबर भी प्रकाश में आई थी कि ट्रंप महिलाओं के सौंदर्य से संबंधित प्रतियोगिताओं के प्रायोजक केवल इसलिए बनना चाहते थे क्योंकि इस सामथ्र्य से वह पूरे प्रतियोगिता क्षेत्र में कहीं भी आ-जा सकते थे और वहां पर भी जहां प्रतिभागी तैयार होती थीं। संभवत: किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र के मंदिर में राजनीतिक मर्यादा शून्य के कगार पर पहुंच जाएगी। 

अमरीका में बढ़ती अशिष्टता और प्रतिद्वंद्वी को हराने व सत्ता हथियाने के लिए घटिया से घटिया तरीकों को अपनाना विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र को शोभा नहीं देता है। आज अमरीका में राजनीतिक संवाद केवल एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए किया जा रहा है। रिपब्लिकन उम्मीदवारी की दौड़ में भी डोनाल्ड ट्रंप और उन्हीं की पार्टी के टेड क्रूज के बीच राजनीतिक जंग महिलाओं की अस्मत तक जा पहुंची थी। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे की पत्नियों और बच्चों पर निजी हमले किए थे। 

ट्रंप ने अपने सार्वजनिक और निजी जीवन में जिस तरह महिलाओं के साथ यौन आचरण और उनके निजी अंगों के बारे में चर्चा की है, उससे स्पष्ट है कि अमरीका में महिलाओं के प्रति मानसिकता किस मुहाने पर खड़ी है। वास्तव में अमरीकी समाज के सांस्कृतिक खोखलेपन ने इस प्रथा को आधिकारिक रूप से पैठ जमाने का अवसर दिया है। मान्यता है कि भाषा मनुष्य का मान और मनुष्यता की पहचान है परंतु अमरीका में मर्यादित और संयमित भाषा की निरंतर उपेक्षा की जा रही है। 

डोनाल्ड ट्रंप ने अंतिम बहस में न केवल अमरीका अपितु समस्त विश्व को यह कहकर भी स्तब्ध कर दिया कि यदि चुनाव परिणाम उनके पक्ष में नहीं आए तो वह उसे स्वीकार नहीं करेंगे। कई विशेषज्ञ इस मानसिकता को खतरनाक मानते हैं। अमरीका की परंपरागत तीनों बहसों में हिलेरी ने जीत प्राप्त की है, किंतु तीसरी एवं अंतिम बहस में उनकी जीत का अंतर कम हुआ है। न्यूयार्क में उन्होंने पहली बहस में 35 अंकों के अंतर से और सेंट-लुइस की दूसरी बहस में 23 अंकों के साथ जीत दर्ज की तो अंतिम व तीसरी बहस में हिलेरी 13 प्रतिशत अंकों की बढ़त के साथ विजेता बनकर उभरी हैं। 

यह कटु सत्य है कि भारतीय राजनीति में भी भाषा का स्तर गिरा है। बड़बोलेपन के चलते सामान्य शिष्टाचार को देश के कई राजनेता तिलांजलि दे चुके हैं। चाहे ‘मौत का सौदागर’ और ‘खून की दलाली’ जैसी शब्दावली हो या जनप्रतिनिधियों द्वारा बलात्कार केलिए महिलाओं की भड़काऊ पोशाक को जिम्मेदार ठहराना, इसकी ताॢकक परिणति है। राजनीति में विरोध दर्शाना तथा अपने पक्ष की बात करना सामान्य प्रतिक्रिया है किंतु अमरीका के वर्तमान चुनाव में जिस तरह महिलाओं के चरित्र का सरेआम तिरस्कार किया गया है या किया जा रहा है, वह किसी विडम्बना से कम नहीं है।

हम भारतीय अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन को लेकर अक्सर अमरीका का उदाहरण देते हैं कि वह देश तकनीक और विज्ञान के मामले में हमसे कितना आगे है किंतु स्तरहीन राजनीति, सार्वजनिक संवाद और अशिष्टता के मापदंड स्थापित करने के मामले में प्रतीत होता है कि 240 वर्ष पुराना लोकतंत्र सबसे बड़े लोकतंत्र से कहीं आगे है। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News