मुफ्त राशन का निर्णय सही परन्तु ‘नाकाफी’

Thursday, Jul 02, 2020 - 03:33 AM (IST)

80 करोड़ लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रति परिवार मुफ्त गेहूं अथवा चावल तथा एक किलोग्राम चना देने की स्कीम के विस्तार की घोषणा स्वागतयोग्य कदम है। हालांकि इस घोषणा के समय तथा राजनीतिक इच्छा के बारे में विपक्ष द्वारा सवाल उठाए गए हैं। भारतीय नागरिक मोदी से यह आशा भी लगाए हुए थे कि वह चीन के साथ तनाव तथा अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान के बारे में उठाए जाने वाले कदमों के बारे में सुनेंगे। मगर उन्होंने इन मुद्दों का कोई जिक्र नहीं किया। 

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले ही तीन माह के लिए इस स्कीम की घोषणा तब की थी जब प्रवासियों का एक विशाल प्रवास शुरू हुआ था। हालांकि ऐसी घोषणा प्रवासियों की जड़ नहीं पकड़ पाई। शायद प्रवासियों के बीच शंका इस बात की थी कि राशन कार्डों की गैर हस्तांतरणीयता उन्हें उनके कार्यस्थलों पर खाद्यान्न को पाने के हक से वंचित कर देगी। प्रधानमंत्री के एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड का निर्णय उस शंका को मिटा देगा। शायद यह घोषणा यदि पहले से आ जाती तो प्रवासियों के प्रवास को रोका जा सकता था। प्रति व्यक्ति पांच किलोग्राम गेहूं या चावल तथा प्रति परिवार एक किलोग्राम चना या दाल उपलब्ध करवाने की स्कीम का विस्तार अभी भी अपर्याप्त दिख रहा है क्योंकि यह राष्ट्र खाद्य सुरक्षा विधेयक के अन्तर्गत कुछ सबसिडी दरों को दिए जाने वाले खाद्यान्न तथा दालों के प्रावधान के अतिरिक्त है। 

देश के गोदाम खाद्यान्नों से भरे पड़े हैं और उनको स्टोरेज करने की बेहद विकट परेशानी आ रही है। 16 अप्रैल को मैंने इसी समाचारपत्र में अपना एक आलेख लिखा था जिसमें सुझाया गया था कि सरकार को इन गोदामों को लोगों के लिए खोल देना चाहिए और गरीब लोगों में नि:शुल्क बांट देना चाहिए। उस आलेख में मैंने लिखा, ‘‘हमारे गोदाम जरूरत से ज्यादा गेहूं तथा चावल के भंडार से भरे पड़े हैं। वास्तव में लीकेज के कारण ज्यादातर भंडारण क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इन्हें या तो चूहे या अन्य जीव प्रत्येक वर्ष खा जाते हैं।

रिपोर्टों के अनुसार सरकार के पास 71 मिलियन मीट्रिक टन का खाद्यान्न स्टॉक है। जबकि राष्ट्र को 22 मिलियन मीट्रिक टन की जरूरत दरकार है। इसके अतिरिक्त रबी की फसल भी कटने को तैयार है और इसके लिए पंजाब, हरियाणा तथा आसपास के राज्यों को धन्यवाद करना होगा। वह दिन बीत गए जब खाद्यान्न की किल्लत होती थी। खाद्य विशेषज्ञों में से एक का कहना है कि एक टी.वी. डिबेट के दौरान कहा गया कि यदि सरकार सभी गरीबों को नि:शुल्क राशन बांट दे, जो बिना किसी राशन कार्ड की अनिवार्यता से हो, तब कुल बाहर आने वाला खाद्यान्न 20 मिलियन मीट्रिक टन का होगा।’’ 

यह समय सरकार के लिए सभी अतिरिक्त स्टॉक को खोलने का है। वह जरूरतमंदों को राशन नि:शुल्क आबंटित करें। किसान इस समय बेहद विकट संकट से जूझ रहे हैं क्योंकि उन्हें फसलों की कटाई तथा उन्हें बाजार में बेचने की दिक्कत आ रही है। किसानों को भी पर्याप्त मात्रा में सहूलियतें तथा ऋण उपलब्ध करवाए जाएं ताकि वह वर्तमान संकट को झेल सकें। नवीनतम उपलब्ध आंकड़े कहते हैं कि गोदामों में खाद्य स्टॉक भरने के बाद 100 मिलियन मीट्रिक टन के करीब हो चला है। (आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार एक जून तक यह 97 मिलियन मीट्रिक टन था)। एक अन्य शोध के अनुसार फसल की कटाई के बाद खाद्यान्न  का कुल घाटा 12 से 16 मिलियन मीट्रिक टन होता है, जो चूहों तथा अस्त-व्यस्त स्टोरेज के कारण होता है। इसके अलावा बाढ़ तथा परिवहन के कारण भी यह नुक्सान होता है। 

कई अर्थशास्त्री तथा कृषि विशेषज्ञ फ्री राशन के आबंटन का समर्थन नहीं करते। वह कहते हैं कि किसानों को उचित मुआवजा दिया जाए। उनका यह भी कहना है कि स्वतंत्रता के बाद किसानों की दशा बड़ी बदत्तर हो चली है। वह दिन लद गए जब हमें अमरीका तथा अन्य देशों के घटिया क्वालिटी के गेहूं पर निर्भर होना पड़ता था। वास्तव में परेशानी अतिरिक्त खाद्यान्न की है। इसलिए हमें कृषि कार्यों के आधुनिकीकरण की जरूरत है। सरकार को कृषि क्षेत्र पर और ज्यादा ध्यान देना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के भरपूर योगदान की प्रशंसा की। मगर अब समय आ गया है कि हमें किसानों के हितों के लिए नई कृषि पालिसी का गठन करना चाहिए।-विपिन पब्बी

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